भारतीय खेल इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जुड़ गया है—19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने 2025 के FIDE महिला विश्व कप को जीतकर न केवल भारतीय शतरंज की गौरवगाथा को आगे बढ़ाया है, बल्कि ग्रैंडमास्टर (GM) बनने का सपना भी साकार किया है. यह उपलब्धि न केवल व्यक्तिगत संघर्ष और परिश्रम का प्रमाण है, बल्कि समूचे भारत, विशेषकर युवा महिलाओं के लिए प्रेरणा का अद्वितीय स्तंभ बनकर उभरी है.
एक शांत और चुपचाप उभरता सितारा
दिव्या देशमुख का नाम पहले भी शतरंज की दुनिया में गूंजता रहा है. नागपुर से ताल्लुक रखने वाली दिव्या ने मात्र 6 वर्ष की उम्र से शतरंज की बिसात पर अपने मोहरे सजाने शुरू कर दिए थे. जब अधिकांश बच्चे खेलने में मशगूल होते हैं, दिव्या ने अपने कौशल से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रतिभा की चमक दिखा दी थी. 2022 में जब उन्होंने महिला इंटरनेशनल मास्टर (WIM) और फिर इंटरनेशनल मास्टर (IM) का खिताब जीता, तब भी यह संकेत स्पष्ट था कि वह जल्द ही ग्रैंडमास्टर की श्रेणी में प्रवेश करेंगी.
FIDE महिला विश्व कप 2025: एक ऐतिहासिक प्रदर्शन
FIDE महिला विश्व कप जैसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में भाग लेना ही गौरव की बात होती है. लेकिन दिव्या ने यहाँ भाग लेने से कहीं आगे बढ़ते हुए, चेस जगत की दिग्गजों को एक के बाद एक मात देकर सबको चौंका दिया. फाइनल राउंड में उन्होंने रूस की अनुभवी खिलाड़ी अलेक्ज़ान्द्रा को मात दी—और यह जीत सिर्फ एक बाज़ी नहीं, बल्कि वर्षों की मेहनत, अभ्यास और मानसिक दृढ़ता की पराकाष्ठा थी.
यह जीत उन्हें दुनिया की सबसे युवा ग्रैंडमास्टर्स की सूची में शामिल कर देती है—वह भी एक ऐसे दौर में जब खेल के डिजिटल और वैश्विक स्वरूप में प्रतिस्पर्धा अत्यधिक तीव्र हो चुकी है.
एक प्रेरणा बनती भारतीय बेटी
दिव्या देशमुख की यह उपलब्धि इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उस मानसिकता को तोड़ती है जो यह मानती है कि महिलाएं केवल परंपरागत भूमिकाओं तक सीमित रहें. शतरंज जैसे खेल में, जहाँ मानसिक धैर्य, रणनीति, पूर्वानुमान और निर्णय क्षमता की आवश्यकता होती है, दिव्या का यह प्रदर्शन स्त्रियों की सोच और प्रतिभा की व्यापकता को प्रमाणित करता है.
दिव्या के अनुसार, “शतरंज में आप खुद को हर दिन चुनौती देते हैं. यह केवल खेल नहीं है—यह आत्मानुशासन, साहस और आत्म-विश्वास की यात्रा है.” उनकी यह दृष्टि दर्शाती है कि शतरंज उनके लिए केवल प्रतियोगिता नहीं, बल्कि आत्मविकास का माध्यम भी है.
परिवार और कोचिंग का योगदान
हर सफल खिलाड़ी के पीछे एक मजबूत सहयोग तंत्र होता है—और दिव्या का परिवार इस मामले में उत्कृष्ट रहा है. उनके माता-पिता ने न केवल शिक्षा और खेल के बीच संतुलन बनाए रखा, बल्कि मानसिक प्रोत्साहन भी लगातार दिया. वहीं, उनके कोच अभिजीत कुंटे और अन्य प्रशिक्षकों ने उन्हें वैश्विक स्तर के मुकाबलों के लिए तैयार किया.
भारत की बेटियों के लिए संदेश
भारत में आज भी कई प्रतिभाशाली बालिकाएं संसाधनों, अवसरों या सामाजिक दायित्वों के कारण पीछे रह जाती हैं. दिव्या की सफलता यह संदेश देती है कि यदि अभिभावक और संस्थाएं दृढ़ निश्चय के साथ सहयोग करें, तो भारत की बेटियाँ किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर तिरंगा लहराने में सक्षम हैं.
सरकार और निजी क्षेत्र को भी चाहिए कि वे ऐसी खिलाड़ियों की पहचान कर समय रहते सहयोग प्रदान करें—ट्रेनिंग, स्पॉन्सरशिप, और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में भागीदारी के लिए आवश्यक आर्थिक और तकनीकी सहायता.
भविष्य की राह
अब जबकि दिव्या ग्रैंडमास्टर बन चुकी हैं, उनकी राह और भी ज़िम्मेदारीपूर्ण हो गई है. वह अब भारत की उन चंद महिला खिलाड़ियों में शामिल हैं जिन्हें ओलंपियाड, विश्व चैंपियनशिप और अन्य शीर्ष स्तर के टूर्नामेंट्स में देश का प्रतिनिधित्व करना है. उन्हें न केवल अपनी रैंकिंग बनाए रखनी होगी, बल्कि एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में युवाओं का मार्गदर्शन भी करना होगा.
दिव्या देशमुख की ग्रैंडमास्टर पदवी केवल एक व्यक्ति की जीत नहीं, यह भारत की बौद्धिक विरासत, महिला सशक्तिकरण और युवाओं की ऊर्जा का प्रतीक है. आज जब हम शिक्षा, नवाचार और प्रतिस्पर्धा के नए युग में प्रवेश कर रहे हैं, दिव्या जैसी शख्सियतें हमें यह सिखाती हैं कि सपने, अगर जुनून से देखे जाएं, तो वो सिर्फ पूरे ही नहीं होते—वे इतिहास भी रचते हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

