अलीगढ़ से मुंबई तक ई-सिम टेक की काली चाल, डिजिटल भविष्य की सुरक्षा पर खगोलीय संकट की छाया

अलीगढ़ से मुंबई तक ई-सिम टेक की काली चाल, डिजिटल भविष्य की सुरक्षा पर खगोलीय संकट की छाया

प्रेषित समय :21:41:17 PM / Wed, Jul 30th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

विशेष रिपोर्ट, नई दिल्ली. जब देश "डिजिटल इंडिया" की रफ्तार से भाग रहा है, उसी समय टेकनीक का दूसरा अंधेरा चेहराःंटा ई-सिम और सिम-स्वैपिंग के जरिए संगठित साइबर ठगीयों ने बैंक खातों से करोड़ों की रकम उड़ा दी है. बीते दो वर्षों में अलीगढ़ से लेकर मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, नोएडा और राजकोट तक एसी घटनाओं की कड़ी सामने आई हैं, जिन्होंने यह साबित कर दिया कि अब खतरा केवल केवल पासवर्ड या OTP तक सीमित नहीं बल्कि आपकी डिजिटल पहचान की हैक का जोखम बन चुकी है.

फ्रॉड का राष्ट्रीय स्वरूप

कोलकाता (2023): व्यवसायी से ₹72 लाख की SIM-स्वैप ठगी, दो गिरफ्तार.

मुंबई (जनवरी 2025): स्टील ट्रेडर के खाते से ₹7.42 करोड़ की ठगी, SMS इंटरसेप्शन की पुष्टि.

दिल्ली (मई 2024): रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर से ₹4.8 लाख की ठगी, आरोपी गिरफ्तार.

नोएडा (सितंबर 2024): महिला के खाते से ₹27 लाख की लूट, FD और लोन खाता क्लोज किया गया.

राजकोट (नवंबर 2024): सेवानिवृत्त कर्मचारी से ₹9 लाख की धोखाधड़ी, फर्जी डॉक्युमेंट्स का प्रयोग.

बिहार: साइबर ऑपरेशन में ₹40 करोड़ से अधिक की धोखाधड़ी का खुलासा.

ई-सिम फ्रॉड की कार्यप्रणाली

ई-सिम फ्रॉड में ठग फिजिकल सिम की बजाय डिजिटल माध्यम से मोबाइल नंबर अपने कब्जे में लेते हैं, OTP इंटरसेप्ट कर बैंक खातों से पैसे उड़ा लेते हैं.

व्हाट्सएप कॉल या फर्जी अधिकारी बनकर संपर्क

मोबाइल नंबर बंद कर ई-सिम एक्टिवेशन

मल्टी-स्टेज ट्रांजैक्शन द्वारा पैसे ट्रांसफर

अलीगढ़ की घटना

अलीगढ़ के एक प्रतिष्ठित व्यवसायी जागेश कुमार वार्ष्णेय को जुलाई के अंत में तब झटका लगा जब उन्हें पता चला कि उनके बैंक खाते से 27.20 लाख रुपये ग़ायब हो चुके हैं. इस हाई-प्रोफाइल साइबर क्राइम केस ने ई-सिम तकनीक की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं और स्थानीय पुलिस की जांच प्रक्रिया पर भी प्रश्नचिह्न लगा है.

पूरा मामला तब शुरू हुआ जब वार्ष्णेय को उनके बैंक से जुड़ी ईमेल अलर्ट्स मिलना बंद हो गए. 16 जुलाई को जब वह  शाखा पहुंचे तो उन्हें एक लिखित शिकायत देने को कहा गया. इसी के बाद उन्हें एक कथित बैंक अधिकारी की व्हाट्सएप कॉल आई, जिसमें उसने स्वयं को बैंक कर्मी बताते हुए खाता संबंधित जानकारी ली. व्यवसायी को यह भरोसा दिलाया गया कि अब ईमेल अलर्ट्स मिलने शुरू हो जाएंगे.

इसके कुछ ही दिन बाद, 19 जुलाई को उनके मोबाइल की आउटगोइंग सेवा बंद हो गई. जब वे जियो स्टोर पहुंचे, तो बायोमेट्रिक सत्यापन नहीं खुलने की बात कही गई. 24 जुलाई को बायोमेट्रिक सफलतापूर्वक हुआ, लेकिन 28 जुलाई को पता चला कि ई-सिम पहले ही जारी हो चुका था. यहां से उन्हें अंदेशा हुआ कि कुछ गंभीर गड़बड़ हुई है.

जैसे ही वे बैंक पहुंचे और स्टेटमेंट निकलवाया, उन्हें पता चला कि 21 से 25 जुलाई के बीच उनके खाते से 15 बार में कुल 27.20 लाख रुपये निकाले जा चुके थे. यह जानकार वे स्तब्ध रह गए. उन्होंने तुरंत साइबर क्राइम थाने में शिकायत दर्ज करवाई.

जांच में सामने आया है कि ठगों ने पहले उनके मोबाइल नंबर को ई-सिम में बदलवाया और फिर उनके ओटीपी, बैंक डिटेल्स और अन्य संवेदनशील जानकारियों का प्रयोग कर पैसे उड़ा लिए. यह एक ऐसा अपराध है जिसमें तकनीक का प्रयोग बेहद सूक्ष्म ढंग से किया गया और बायोमेट्रिक स्तर पर भी सुरक्षा को भेद दिया गया.

अलीगढ़ पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और डिजिटल फॉरेंसिक की मदद से जांच शुरू कर दी गई है. अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है लेकिन पुलिस ने टेलीकॉम कंपनियों से डिवाइस आईडी, ई-सिम एक्टिवेशन डेट, और आईपी ट्रेसिंग का विवरण मांगा है.

जांच की स्थिति

FIR दर्ज, डिजिटल फॉरेंसिक जांच जारी है, लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. टेलीकॉम कंपनियों से डिवाइस ID, ई-सिम एक्टिवेशन डिटेल्स और IP ट्रेसिंग मांगी गई है, पर पुलिस की धीमी प्रतिक्रिया से अपराधियों को बढ़त मिली.

तकनीकी और प्रशासनिक खामियां

टेलीकॉम कंपनियां बिना बायोमेट्रिक सुरक्षा ई-सिम जारी कर रही हैं

बैंकों द्वारा समय रहते पर्याप्त अलर्ट और ब्लॉकिंग विकल्प उपलब्ध नहीं

पुलिस और साइबर एजेंसियों की तकनीकी संसाधनों में कमी

डिजिटल फॉरेंसिक डेटा समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता

डिजिटल सुरक्षा: किसकी जिम्मेदारी?

नागरिक: OTP या बैंक विवरण कभी साझा न करें

टेलीकॉम कंपनियां: ई-सिम के लिए अतिरिक्त PIN या बायोमेट्रिक अनिवार्य करें

बैंक: SMS व ईमेल दोनों पर अलर्ट बाध्य करें

पुलिस: तकनीकी प्रशिक्षण, रियल-टाइम ट्रेसिंग और टेलीकॉम API एक्सेस सुनिश्चित करें

सुविधा बनाम सुरक्षा का संतुलन

ई-सिम तकनीक संचार का भविष्य हो सकती है—पर जब इसका दुरुपयोग इतना आसान हो, तो इसे बिना मजबूत सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू करना आम नागरिकों को खतरे में डालना है. SIM और e‑SIM अब केवल कनेक्टिविटी नहीं—बल्कि बैंकिंग से लेकर व्यक्तिगत पहचान तक की चाबी बन चुके हैं.

यदि सरकार, टेलीकॉम कंपनियां और आम नागरिक इस चाबी की सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देंगे, तो अगला वार किसी भी मोबाइल नंबर पर हो सकता है—और आपके खाते को चुपचाप खाली कर सकता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-