बाम्बे हाई कोर्ट का फैसला : पति के दोस्त के खिलाफ नहीं हो सकता 498ए का मुकदमा

बाम्बे हाई कोर्ट का फैसला : पति के दोस्त के खिलाफ नहीं हो सकता 498ए का मुकदमा

प्रेषित समय :12:55:38 PM / Fri, Aug 1st, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नागपुर. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि पति के मित्र पर क्रूरता के लिए भारतीय दंड संहिता (बीएनएस) की धारा 498ए तहत कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि पति का मित्र रिश्तेदार की वैधानिक परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है.

दरअसल, 2022 में एक महिला ने उसके प्रति हो रही क्रूरता को लेकर एफआईआर दर्ज करवाई थी. इस एफआईआर में महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पति, उसके माता-पिता और उसके पति के दोस्त ने उसके साथ क्रूरता की.

कोर्ट ने की यह अहम टिप्पणी

न्यायमूर्ति अनिल पानसरे और न्यायमूर्ति एमएम नेर्लिकर की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि किसी दोस्त को रिश्तेदार नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह न तो खून का रिश्तेदार होता है और न ही उसका विवाह या गोद लेने के माध्यम से कोई रिश्ता होता है. कोर्ट ने कहा कि इसलिए सभी तथ्यों पर विचार करने और आईपीसी की धारा 498 ए को स्पष्ट रूप से पढऩे पर, कोर्ट इस निर्णय पर पहुंचा है कि पति का दोस्त आईपीसी की धारा 498 ए के तहत पति के रिश्तेदार की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा.

दोस्त पर लगाए आरोप

शिकायतकर्ता पत्नी ने एफआईआर में ससुरालजन के साथ-साथ दोस्त के पति पर भी क्रूरता का आरोप लगाया था. दर्ज एफआईआर में महिला द्वारा लगाए गए आरोप में बताया गया कि पति का दोस्त बार-बार ससुराल आता था और उसके पति को पत्नी के पिता से जमीन का एक टुकड़ा और कार मांगने के लिए उकसाता था. महिला ने यह भी आरोप लगाया गया कि उसने पति को अपनी पत्नी के साथ न रहने और मांगें पूरी न होने पर उसे उसके मायके वापस भेज देने के लिए उकसाया करता था.

सर्वोच्च न्यायालय ने रिश्तेदार की थी व्याख्या

इस मामले को लेकर अभियोजन पक्ष ने कोर्ट से रिश्तेदार की व्यापक व्याख्या करने का आग्रह किया. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा गया था कि प्रेमिका या एक महिला जिसके साथ शादी करती है, अगर उसका बाहर किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध है तो उसे भी धारा 498 ए के तहत रिश्तेदार नहीं माना जा सकता है.

दोस्त के खिलाफ कार्यवाही हुई रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने इसी तर्क को लागू करते हुए न्यायालय ने कहा कि एक मित्र को प्रावधान में परिकल्पित रिश्तेदार का दर्जा प्राप्त नहीं होता है. इसलिए कोर्ट ने दोस्त के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी. कोर्ट ने कहा कि पति और उसके माता-पिता के खिलाफ मामला जारी रहेगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-