सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जज को आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोका, कहा- बेतुके और त्रुटिपूर्ण आदेश पारित करना अक्षम्य !

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जज को आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोका

प्रेषित समय :21:23:43 PM / Tue, Aug 5th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अभिमनोज
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के एक जज को आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोकते हुए कहा है कि- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को ‘कार्यकाल समाप्त होने तक’ आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटा दिया गया है.

मीडिया रिपोर्ट्स हैं कि- यह कार्रवाई तब की गई जब जस्टिस ने एक दीवानी विवाद में त्रुटिपूर्ण आपराधिक प्रकृति के समन को बनाए रखा.

इस पर सख्त रुख अपनाते हुए जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने उन न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति तक उनके रोस्टर से आपराधिक मामलों को हटाने का निर्देश दिया और उन्हें एक खंडपीठ में वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ बैठने का कार्य सौंपा.

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें ‘मैसर्स शिखर केमिकल्स‘ द्वारा कमर्शियल लेन-देन के एक मामले में समन आदेश को रद्द करने के अनुरोध वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसमें शिकायतकर्ता ने ‘शिखर केमिकल्स’ को 52.34 लाख रुपये मूल्य का धागा बेचा था, जिसमें से 47.75 लाख रुपये का भुगतान किया गया, परन्तु शेष राशि का भुगतान नहीं किया गया.

इसके बाद, ललिता टेक्सटाइल्स ने शेष राशि की वसूली के लिए एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई, शिकायतकर्ता का बयान दर्ज किया गया और एक मजिस्ट्रेट अदालत ने आवेदक के खिलाफ समन जारी किया, ‘मैसर्स शिखर केमिकल्स’ ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया और कहा कि- यह विवाद पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का है, लेकिन. उच्च न्यायालय ने आवेदक की याचिका खारिज कर दी.

इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने कहा था कि- शिकायतकर्ता को राशि वसूलने के लिए दीवानी उपाय अपनाने के लिए कहना अनुचित है, क्योंकि इसमें बहुत समय लगता है.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को ‘त्रुटिपूर्ण’ बताते हुए कहा कि- न्यायाधीश ने यहां तक कह दिया कि शिकायतकर्ता को शेष राशि की वसूली के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दी जानी चाहिए, हाईकोर्ट का यह आदेश सबसे खराब और सबसे त्रुटिपूर्ण आदेशों में से एक था.

अदालत का कहना था कि- संबंधित हाईकोर्ट न्यायाधीश ने न केवल स्वयं के लिए अपमानजनक स्थिति उत्पन्न की है, वरन न्याय का भी मजाक बना दिया है, हम यह समझने में असमर्थ हैं कि- हाईकोर्ट के स्तर पर भारतीय न्यायपालिका के साथ क्या समस्या है, कभी-कभी हमे आश्चर्य होता है कि क्या ऐसे आदेश किसी बाहरी प्रभाव में दिये जाते हैं या यह कानून की सरासर अज्ञानता है, जो भी हो- ऐसे बेतुके और त्रुटिपूर्ण आदेश पारित करना अक्षम्य है!

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-