एशिया कप 2025 टीम चयन में भर्ती की पारदर्शिता पर सवाल, श्रेयस अय्यर का नाम मिस, पक्षपात का आरोप

एशिया कप 2025 टीम चयन में भर्ती की पारदर्शिता पर सवाल, श्रेयस अय्यर का नाम मिस, पक्षपात का आरोप

प्रेषित समय :21:19:01 PM / Tue, Aug 19th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

एशिया कप 2025 को लेकर भारतीय क्रिकेट टीम की घोषणा के साथ ही चयन प्रक्रिया एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गई है. क्रिकेट प्रेमी और विशेषज्ञ जहां टीम की मजबूती और संतुलन पर चर्चा कर रहे हैं, वहीं खिलाड़ियों की चयन प्रक्रिया को लेकर कई गंभीर सवाल भी उठने लगे हैं. सबसे बड़ा सवाल इस बार उस बल्लेबाज के बाहर रहने को लेकर है जिसने पिछले दो सालों में लगातार प्रदर्शन कर भारतीय क्रिकेट में अपनी अहम जगह बनाई थी—श्रेयस अय्यर. उनके नाम का टीम में न होना न केवल क्रिकेट प्रेमियों बल्कि विशेषज्ञों को भी हैरान कर रहा है. इस मुद्दे ने यह बहस छेड़ दी है कि क्या टीम चयन में वास्तव में पारदर्शिता है या फिर चयन समिति व्यक्तिगत पसंद-नापसंद, गुटबाजी और दबाव में फैसले ले रही है.

श्रेयस अय्यर पिछले कुछ वर्षों से भारतीय मध्यक्रम का अहम हिस्सा रहे हैं. टेस्ट हो, वनडे या फिर टी20, उन्होंने लगभग हर फॉर्मेट में अपनी जिम्मेदारी निभाई है. हालांकि चोट के कारण वे कुछ समय के लिए टीम से बाहर हुए थे, लेकिन वापसी के बाद उन्होंने घरेलू क्रिकेट और आईपीएल में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर अपनी फिटनेस और फॉर्म का सबूत दिया. इसके बावजूद उनका एशिया कप 2025 की टीम में चयन न होना, यह दर्शाता है कि केवल प्रदर्शन ही इस देश में चयन का आधार नहीं है.

कहा जा रहा है कि चयनकर्ताओं ने युवा खिलाड़ियों को मौका देने के नाम पर श्रेयस अय्यर को टीम से बाहर रखा. लेकिन अगर इसी तर्क को देखें, तो कई ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्हें लगातार खराब प्रदर्शन के बावजूद टीम में जगह मिली है. उदाहरण के लिए, कुछ वरिष्ठ खिलाड़ी जिनकी फिटनेस और फॉर्म सवालों के घेरे में है, उन्हें केवल अनुभव के आधार पर टीम में शामिल कर लिया गया. वहीं, अय्यर जैसे खिलाड़ी जिन्हें हाल के सीजन में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद अनदेखा किया गया, यह एक दोहरे मानदंड को दिखाता है.

खेलों के इतिहास में यह नई बात नहीं है. भारतीय क्रिकेट टीम में चयन हमेशा से विवादित रहा है. चाहे वह अतीत में मोहम्मद कैफ, अंबाती रायडू या युवराज सिंह जैसे खिलाड़ियों का मामला हो, कई बार चयनकर्ताओं पर पक्षपात और राजनीति करने के आरोप लगे हैं. चयन समिति पर यह आरोप भी लगता है कि वे बड़े नामों और ताकतवर लॉबी से प्रभावित होकर निर्णय लेते हैं. यह प्रवृत्ति आज भी जारी है और इसका सबसे ताजा उदाहरण श्रेयस अय्यर के मामले में देखा जा सकता है.

सोशल मीडिया पर क्रिकेट प्रशंसक इस मुद्दे को लेकर खासे नाराज़ हैं. ट्विटर और इंस्टाग्राम पर “Justice for Shreyas Iyer” जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं. कई पूर्व क्रिकेटरों ने भी अपनी नाराज़गी जाहिर की है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अय्यर का बाहर होना क्रिकेट के भविष्य के लिए गलत संदेश है, क्योंकि यह युवा खिलाड़ियों को यह आभास कराता है कि केवल मेहनत और प्रदर्शन से चयन पाना संभव नहीं है. वहीं, कुछ का यह भी मानना है कि चयनकर्ताओं के पास अपनी रणनीति होती है और उन्हें आने वाले बड़े टूर्नामेंट्स को ध्यान में रखकर निर्णय लेना होता है. लेकिन यह तर्क तब कमजोर पड़ जाता है जब प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को दरकिनार कर कमजोर या औसत प्रदर्शन करने वालों को तरजीह दी जाती है.

श्रेयस अय्यर का बाहर होना न केवल व्यक्तिगत स्तर पर उनके करियर को प्रभावित कर सकता है, बल्कि टीम के मध्यक्रम को भी कमजोर कर सकता है. एशिया कप जैसे टूर्नामेंट में मजबूत मध्यक्रम का होना बेहद जरूरी है, क्योंकि उपमहाद्वीप की पिचों पर बल्लेबाजी करना चुनौतीपूर्ण होता है. अय्यर की बल्लेबाजी का स्टाइल—स्पिनरों को आक्रामक तरीके से खेलना और दबाव की स्थिति में शांत रहना—टीम के लिए एक बड़ी ताकत हो सकती थी. उनकी अनुपस्थिति टीम इंडिया के लिए महत्वपूर्ण मौकों पर खल सकती है.

यहां यह सवाल भी उठता है कि क्या भारतीय क्रिकेट बोर्ड और चयन समिति खिलाड़ियों को मानसिक रूप से सुरक्षित वातावरण देने में नाकाम हो रही है. जब खिलाड़ी जानते हैं कि चाहे वे कितना भी अच्छा प्रदर्शन कर लें, फिर भी चयन केवल आंकड़ों पर नहीं बल्कि अन्य कारकों पर निर्भर करेगा, तो इससे उनकी प्रेरणा और आत्मविश्वास प्रभावित होता है. खिलाड़ियों को यह भरोसा होना चाहिए कि मैदान पर उनका प्रदर्शन ही उनका भविष्य तय करेगा. लेकिन जब बार-बार ऐसे फैसले होते हैं, तो यह भरोसा टूटने लगता है.

चयन प्रक्रिया को लेकर पारदर्शिता की कमी भी एक बड़ी समस्या है. चयन समिति अक्सर यह स्पष्ट नहीं करती कि किन आधारों पर खिलाड़ी का चयन या बहिष्कार हुआ. यही कारण है कि हर बार विवाद खड़े होते हैं. अगर चयन समिति मीडिया या प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए यह स्पष्ट करे कि किसी खिलाड़ी को क्यों बाहर किया गया और किन खिलाड़ियों को किस वजह से चुना गया, तो शायद इस तरह के विवाद न हों.

श्रेयस अय्यर का मामला इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि वह ऐसे दौर में बाहर किए गए हैं जब भारतीय क्रिकेट को एक स्थिर मध्यक्रम की सबसे ज्यादा जरूरत है. पिछले कुछ वर्षों से मध्यक्रम भारतीय टीम की सबसे बड़ी कमजोरी रहा है. कई बार देखा गया है कि शीर्ष क्रम के जल्दी आउट होने के बाद मध्यक्रम जिम्मेदारी निभाने में विफल रहा है. अय्यर जैसे बल्लेबाज इस कमी को पूरा कर सकते थे, लेकिन उन्हें नजरअंदाज करना कहीं न कहीं टीम मैनेजमेंट और चयनकर्ताओं की दूरदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है.

भारत जैसे क्रिकेट-प्रेमी देश में टीम चयन केवल खेल तक सीमित नहीं है. यह एक राष्ट्रीय भावना से जुड़ा मुद्दा है. जब जनता यह महसूस करती है कि टीम चयन निष्पक्ष नहीं है, तो उनकी आस्था भी इस खेल और इसके संस्थानों से कमजोर होती है. यही कारण है कि चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है.

पक्षपात और राजनीति से परे, चयनकर्ताओं को खिलाड़ियों की मेहनत और उनके प्रदर्शन को ही एकमात्र मानदंड बनाना चाहिए. अगर श्रेयस अय्यर जैसे खिलाड़ियों को नज़रअंदाज किया जाता है, तो यह न केवल व्यक्तिगत अन्याय है बल्कि भारतीय क्रिकेट के भविष्य के लिए भी नुकसानदायक है. इस तरह की प्रवृत्तियां प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को हतोत्साहित कर सकती हैं और लंबे समय में टीम की क्षमता को कमजोर कर सकती हैं.

इस पूरे मामले ने यह साफ कर दिया है कि भारतीय क्रिकेट में टीम चयन एक बार फिर विवाद का विषय बन गया है. श्रेयस अय्यर के नाम का बाहर रहना चयनकर्ताओं की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है. अगर भारतीय क्रिकेट को वास्तव में विश्वस्तरीय बनाना है तो सबसे पहले चयन प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना होगा. यही खिलाड़ियों के साथ-साथ करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के लिए भी न्याय होगा.

क्या आप चाहेंगे कि मैं इस लेख में श्रेयस अय्यर के पिछले 2 साल के आंकड़े (औसत, स्ट्राइक रेट, शतक/अर्धशतक आदि) और जिन खिलाड़ियों को उनकी जगह चुना गया है, उनके हालिया प्रदर्शन का तुलनात्मक विश्लेषण भी जोड़ दूं? इससे लेख और भी तथ्यपूर्ण और गहन हो जाएगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-