जबलपुर.शहर हर साल की तरह इस बार भी गणेश चतुर्थी के अवसर पर भक्ति, उत्साह और सामाजिक एकजुटता का अद्भुत संगम बना हुआ है. भगवान गणपति की मूर्तियों से सजी गलियाँ, रोशनी से जगमगाते पंडाल और ढोल-नगाड़ों की गूंज पूरे शहर को एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है. लेकिन इस बार का गणेश उत्सव केवल शहर की सड़कों और पंडालों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सोशल मीडिया पर भी इसकी झलक उतनी ही रंगीन और भव्य दिखाई दी. फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर लोगों ने अपने पंडाल, सजावट और आरती के लाइव वीडियो शेयर करके जबलपुर को वर्चुअल रूप से एक साझा उत्सव स्थल बना दिया.
गणेश चतुर्थी की शुरुआत के साथ ही जबलपुर के प्रमुख इलाकों—विजयनगर, अधारताल, गोरखपुर, सदर और भंवरताल—में विशाल पंडाल सजाए गए. हर पंडाल की अपनी अलग थीम थी. कहीं पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया तो कहीं ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे सामाजिक मुद्दों को मूर्तियों और सजावट में समाहित किया गया. कुछ पंडालों में गणपति की मूर्ति को प्राकृतिक मिट्टी से बनाया गया ताकि विसर्जन के समय नदी-तालाबों में प्रदूषण न फैले. इन पर्यावरण-संवेदनशील प्रयासों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुईं और शहरवासियों ने इसे खूब सराहा.
इस बार युवाओं की सक्रिय भागीदारी ने उत्सव को और भी जीवंत बना दिया. कॉलेज और स्कूल के छात्र-छात्राएँ न केवल पंडाल सजाने में जुटे बल्कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर ‘#JabalpurGaneshUtsav’ और ‘#EcoFriendlyGanpati’ जैसे हैशटैग्स भी ट्रेंड कराने में आगे रहे. यूट्यूब और इंस्टाग्राम रील्स पर गणेश वंदना और ढोल-ताशे की लाइव झलकियाँ लाखों व्यूज़ बटोर रही हैं. कई स्थानीय कलाकारों ने भी गणेश स्तुति को नए अंदाज़ में प्रस्तुत कर वीडियो बनाए, जिन्हें जनता ने हाथोंहाथ लिया.
पंडालों की खूबसूरती और भक्तों की आस्था जितनी वास्तविक दुनिया में झलक रही है, उतनी ही आभासी दुनिया में भी. परिवारजन और रिश्तेदार जो शहर से बाहर रहते हैं, वे फेसबुक लाइव और वीडियो कॉल्स के माध्यम से आरती में शामिल हो रहे हैं. एक प्रकार से यह उत्सव भौगोलिक दूरी को मिटाकर पूरे समुदाय को जोड़ने का माध्यम बन गया है.
जबलपुर के गणेश उत्सव का एक और उल्लेखनीय पहलू है सामाजिक एकजुटता. कई पंडालों ने रक्तदान शिविर, निशुल्क स्वास्थ्य जांच और गरीब परिवारों के लिए भोजन वितरण जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए. गणपति की आराधना केवल पूजा तक सीमित न रहकर सेवा और समाज कल्याण की दिशा में भी बढ़ी. इन पहलों के वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर लगातार शेयर की जा रही हैं, जिससे यह संदेश जा रहा है कि सच्ची भक्ति सेवा के रूप में प्रकट होती है.
सोशल मीडिया पर एक खास आकर्षण बच्चों और बुजुर्गों की सहभागिता रही. छोटे बच्चे गणपति के गीत गाते और नृत्य करते हुए वीडियो में दिखाई दिए, जबकि बुजुर्गों ने अपनी पुरानी यादें साझा कीं कि कैसे दशकों पहले गणेश चतुर्थी का उत्सव केवल मोहल्लों में छोटे स्तर पर होता था, लेकिन अब यह शहरव्यापी और तकनीक से जुड़ा एक बड़ा आयोजन बन चुका है.
गणेश विसर्जन की तैयारी भी सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में है. प्रशासन ने इस बार कृत्रिम टैंक और विशेष घाटों की व्यवस्था की है ताकि नदियों में प्रदूषण कम किया जा सके. कई संगठनों ने भी ‘घर पर ही विसर्जन’ को प्रोत्साहित किया और उसकी झलकियाँ ऑनलाइन साझा कीं. इससे जबलपुर शहर का गणेश उत्सव आधुनिकता और परंपरा के संतुलन का अनोखा उदाहरण बन गया.
यह कहना गलत न होगा कि गणेश चतुर्थी का यह पर्व केवल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन नहीं रहा बल्कि यह सोशल मीडिया के दौर में एक सामुदायिक उत्सव का वैश्विक रूप ले चुका है. जबलपुर की गलियाँ, पंडाल और आरती की गूंज जितनी स्थानीय है, उतनी ही विश्वव्यापी भी हो गई है. दूर-दराज के लोग भी अब डिजिटल माध्यम से इस भक्ति का हिस्सा बन पा रहे हैं.
अंततः, जबलपुर का यह गणेश उत्सव भक्ति और तकनीक का मेल, परंपरा और आधुनिकता का संगम तथा स्थानीय और वैश्विक जुड़ाव का प्रतीक बन गया है. पंडालों की रंगीन सजावट, भक्तों का उत्साह, सेवा की भावना और सोशल मीडिया की गूंज—all मिलकर इस पर्व को एक नए आयाम तक ले गए हैं. गणपति बप्पा की जयकार के साथ जबलपुर शहर आने वाले दिनों में भी यही संदेश देता रहेगा कि एकता, सेवा और सकारात्मक ऊर्जा ही जीवन का सबसे बड़ा उत्सव है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

