भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीराधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष यह पावन पर्व 31 अगस्त, रविवार को है. जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद ब्रज के रावल गांव में राधा जी का अवतरण हुआ था. पुराणों में राधा जी को भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा और उनकी आध्यात्मिक शक्ति कहा गया है. इसी कारण उन्हें "राधारमण" भी पुकारा जाता है.श्रीराधा अष्टमी का व्रत केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भक्त और भगवान के बीच प्रेम और समर्पण का अद्भुत उत्सव है. इस दिन का पालन करने से न केवल घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है, बल्कि आत्मा भी परमानंद के रस से परिपूर्ण हो जाती है. इसलिए 31 अगस्त को प्रत्येक भक्त को राधा जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए.
राधा जी का जन्म और महत्व
भविष्य पुराण और गर्ग संहिता में उल्लेख है कि द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब महाराज वृषभानु की पत्नी माता कीर्ति के गर्भ से राधा रानी का अवतरण हुआ. उनका जन्म स्थल ब्रज का रावल गांव माना जाता है.
स्कंद पुराण में कहा गया है कि राधा जी श्रीकृष्ण की आत्मा हैं. पद्म पुराण में इन्हें "परमानंद रस" का स्वरूप माना गया है. राधा और कृष्ण दोनों मिलकर "युगल सरकार" कहलाते हैं. नारद पुराण में वर्णन है कि राधाष्टमी का व्रत करने से भक्त ब्रज के गूढ़ और दुर्लभ रहस्यों को जान पाता है.
राधा अष्टमी की महिमा
शास्त्रों में कहा गया है कि जो भक्त राधा जी की उपासना करता है, उसके घर में कभी धन, समृद्धि और सुख-संपदा की कमी नहीं रहती. राधा जी को भक्ति का सर्वोच्च रूप माना गया है. श्रीकृष्ण के साथ उनका संबंध केवल दैहिक या लौकिक नहीं, बल्कि आत्मिक और आध्यात्मिक है. इस दिन विशेष रूप से राधा नाम का कीर्तन, जप और पूजन करने का महत्व है.
राधा अष्टमी व्रत एवं पूजन विधि
स्नान और संकल्प – प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. घर के मंदिर या किसी कृष्ण-राधा मंदिर में दीप प्रज्वलित कर व्रत का संकल्प लें.
व्रत का पालन – भक्तजन दिनभर उपवास रखते हैं. फलाहार या निर्जल व्रत भी किया जाता है.
मूर्ति या चित्र का पूजन – राधा-कृष्ण की मूर्ति अथवा चित्र को गंगाजल से स्नान कराकर पुष्प, चंदन, धूप-दीप और वस्त्र अर्पित करें.
मंत्रजप और भजन – इस दिन “राधे राधे” नामजप, राधा-कृष्ण के भजन और कीर्तन करने का विशेष महत्व है.
कथा श्रवण – राधा जन्म कथा, श्रीमद्भागवत या गर्ग संहिता का श्रवण करें.
दक्षिणा और दान – ब्राह्मणों को वस्त्र, फल और दक्षिणा अर्पित करें. यह व्रत तभी पूर्ण माना जाता है जब इसका पुण्य दूसरों के साथ बांटा जाए.
संध्या आरती और प्रसाद – दिनभर पूजा के उपरांत संध्या समय आरती करें और प्रसाद वितरित करें.
राधा अष्टमी का आध्यात्मिक संदेश
राधा जी का जीवन केवल प्रेम का प्रतीक नहीं, बल्कि भक्ति की पराकाष्ठा का दर्शन है. उनका नाम लेते ही हृदय में समर्पण, त्याग और शुद्ध भक्ति का भाव जाग्रत होता है. पुराणों में कहा गया है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण के बिना राधा का अस्तित्व नहीं. यही कारण है कि भक्त उन्हें युगल रूप में पूजते हैं.

