सोशल मीडिया से कमाई की चाहत, युवा भारत का नया करियर विकल्प

सोशल मीडिया से कमाई की चाहत, युवा भारत का नया करियर विकल्प

प्रेषित समय :15:43:52 PM / Wed, Sep 17th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

भारत की नई पीढ़ी अब अपने भविष्य को लेकर पारंपरिक राहों पर ही नहीं चल रही है। नौकरी, पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं की भीड़ में एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो सोशल मीडिया को कमाई और पहचान का जरिया मानकर नए रास्तों पर निकल पड़ा है। रील्स, शॉर्ट वीडियो और कंटेंट क्रिएशन अब युवाओं की महत्वाकांक्षाओं का केंद्र बन चुके हैं।

हाशी मृधा का सपना

बैरकपुर की 19 वर्षीय हाशी मृधा की कहानी इस बदलाव की मिसाल है। कभी भारतीय सेना या फुटबॉल में करियर बनाने का सपना देखने वाली हाशी अब सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। उनकी माँ एक मेहनतकश महिला हैं, जो सुबह चार बजे उठकर काम पर जाती हैं। हाशी कहती हैं, “मैं चाहती हूँ कि मेरी माँ को अब काम न करना पड़े। मैं इतना कमाना चाहती हूँ कि उन्हें आराम मिले।”
बारहवीं कक्षा पूरी करने के बाद कॉलेज न जाने वाली हाशी ने सोशल मीडिया पर रील्स बनाना शुरू किया। शुरू में उनके पास अपना स्मार्टफोन तक नहीं था। पड़ोसियों से फोन उधार लेना पड़ता था। चोरी हो जाने पर उन्होंने बैंक से कर्ज़ लेकर और थोड़ी बचत जोड़कर एक नया फोन खरीदा। आज उनकी हर रील 10–15 सेकंड की होती है, जिसमें छोटे-छोटे संवाद और आकर्षक संगीत होते हैं।

दंपती का संघर्ष और उम्मीद

सोशल मीडिया सिर्फ युवाओं का ही नहीं, बल्कि पारिवारिक प्रयास का भी नया मंच बन चुका है। पश्चिम मिदनापुर के अशुतोष मुखिया और उनकी पत्नी सोहेली रोज़ाना रील बनाते हैं। वे पुराने बांग्ला गीतों पर लिप-सिंक करते हैं। फिलहाल आय शून्य है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि एक दिन लोकप्रियता उन्हें कमाई भी दिलाएगी। अशुतोष दिन में दिहाड़ी काम करते हैं और रात को पत्नी संग वीडियो शूट करते हैं।

श्रमिक से डिजिटल क्रिएटर

न्यू टाउन की लक्ष्मी मंडल, जो एक दफ्तर की सफाईकर्मी हैं, रोज़ काम खत्म करने के बाद मेकअप करके रील बनाती हैं। उन्हें प्रेरणा अपनी बहू से मिली, जो पहले से रील बनाकर आमदनी कर रही है। लक्ष्मी चाहती हैं कि जब उनकी खुद की कमाई शुरू होगी, तो वे अपनी नौकरी छोड़ देंगी।

युवा और नई सोच

लेखिका वंदना वासुदेवन कहती हैं, “आज ग्रामीण इलाकों के युवा खेतों में काम करने की बजाय सोशल मीडिया को करियर बना रहे हैं। वे पारंपरिक नौकरियों से हटकर गिग वर्क और कंटेंट क्रिएशन की तरफ बढ़ रहे हैं।”
उन्होंने मुन्नार की सड़कों पर युवाओं को अचानक नाचते हुए और वीडियो शूट करते देखा। हैदराबाद में एक डिलीवरी बॉय से बात की, जो खुद का यूट्यूब चैनल खोलने की तैयारी कर रहा था। यह बदलाव दर्शाता है कि युवाओं में अब स्थायी नौकरी की बजाय आज़ादी और त्वरित कमाई की चाह बढ़ रही है।

इंजीनियरिंग छात्र का प्लान B

शौर्यशिश समंता, 23 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्र, स्पष्ट कहते हैं कि टेक जॉब उनके लिए बैकअप है। उनकी पहली पसंद सोशल मीडिया है। बाइक मिलने के बाद उन्होंने वीडियो बनाना शुरू किया और लाखों व्यूज़ हासिल किए। आज वे इससे कमाई भी कर रहे हैं, हालांकि अनुबंध की शर्तों के चलते वे अपनी आय सार्वजनिक नहीं कर सकते।

असफल सपनों से नई उम्मीद

नादिया की अनुस्री टीवी अभिनेत्री बनना चाहती थीं। हालात ने सपनों को रोका, लेकिन सोशल मीडिया ने उन्हें मंच दिया। अब वह अपने पति और बच्चे के साथ रोज़मर्रा की ज़िंदगी साझा करती हैं। उनकी आय एक स्कूल शिक्षक से अधिक है।

शिक्षक से क्रिएटर तक

हावड़ा के सौमेन चक्रवर्ती, जो भौतिक विज्ञान पढ़ाते हैं, अपने विषय को सरल बनाने के लिए रील बनाते हैं। “क्यों अंडा उबालते समय पानी में नमक डालना चाहिए, या आंधी-तूफान से बचने के उपाय क्या हैं,” जैसे विषय उनके वीडियो में शामिल होते हैं। उनका मानना है कि एक बार 20,000 से अधिक फॉलोअर्स मिल जाएँ, तो स्थायी कमाई तय हो जाती है।

पारिवारिक उद्यम बना कंटेंट

पश्चिम मिदनापुर के सुप्रभा बिशायी की कहानी प्रेरणादायक है। महामारी में उनके पिता की मिठाई की दुकान बंद हो गई, परिवार कर्ज़ में डूब गया। सुप्रभा ने पढ़ाई छोड़ दी और सोशल मीडिया पर ‘ओल्ड डेज़ किचन’ नाम से चैनल शुरू किया। माँ खाना बनाती हैं, बेटा स्क्रिप्ट लिखता है और पिता हिसाब-किताब संभालते हैं। आज यह चैनल इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर लोकप्रिय है और पूरे परिवार का व्यवसाय बन चुका है।

क्षेत्रीय कला को नया जीवन

गंगासागर के दिब्येंदु दास ने ‘जात्रा’ को नया जीवन दिया। उनके फेसबुक पेज ‘जात्रा सागर’ के 83,000 फॉलोअर्स हैं और वे महीने में 10,000 रुपये कमाते हैं। इसी तरह, कोलकाता के कुशल दास, जो मेकअप आर्टिस्ट हैं, अपनी माँ के साथ फूड रील बनाते हैं और अच्छी कमाई कर रहे हैं।

सोशल मीडिया का अर्थशास्त्र

विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया की ओर यह रुझान सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि भारत के रोज़गार संकट का आईना है।
अर्थशास्त्री अनूप सिन्हा कहते हैं, “युवा इसलिए इस ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि इसमें पैसे की संभावना है। यह हमारे जॉब मार्केट की वास्तविकता को भी दर्शाता है।”
वहीं, प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पृथ्वीराज गুহा इसे भीड़ मानसिकता कहते हैं। उनके अनुसार, “जैसे गरीब तबके के लोग लॉटरी टिकट खरीदते हैं, वैसे ही युवा सोशल मीडिया पर सफलता की उम्मीद में जुटे रहते हैं।”

भारत का युवा अब खेतों, दफ्तरों और पारंपरिक नौकरियों तक सीमित नहीं है। उनके लिए स्मार्टफोन और इंटरनेट ही नया करियर मंच हैं। कोई माँ का बोझ कम करना चाहता है, कोई अधूरे सपनों को पूरा कर रहा है, और कोई पारिवारिक परंपरा को डिजिटल मंच पर उतार रहा है।
हालाँकि हर किसी को सफलता नहीं मिलती, लेकिन सोशल मीडिया ने यह भरोसा जगा दिया है कि एक वायरल वीडियो जीवन बदल सकता है। यही विश्वास लाखों युवाओं को इस नई डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर खींच रहा है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-