वडोदरा/मुंबई, 19 सितम्बरभारत के सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण हाईवे में से एक, मुंबई अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग, शुक्रवार को उस समय एक बड़ी त्रासदी का गवाह बना जब यहां लगे लंबे जाम में फंसकर एक मासूम की जिंदगी समाप्त हो गई. इलाज के लिए मुंबई ले जाए जा रहे 16 माह के बच्चे की एंबुलेंस घंटों तक जाम में फंसी रही और समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के कारण बच्चे की मौत हो गई. इस दर्दनाक घटना ने न केवल सड़क जाम और अव्यवस्थित ट्रैफिक प्रबंधन की समस्या को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि कैसे बुनियादी ढांचे की खामियों का खामियाजा सीधे तौर पर इंसानी जिंदगी को भुगतना पड़ता है.
घटना कैसे घटी
जानकारी के अनुसार, यह बच्चा नायगांव (महाराष्ट्र) के गैलेक्सी हॉस्पिटल में इलाज के लिए भर्ती था. डॉक्टरों ने परिजनों को सलाह दी थी कि बच्चे को तुरंत मुंबई के एक बड़े अस्पताल में शिफ्ट किया जाए ताकि बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा सके. बच्चे को ले जाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की गई और सुबह-सुबह उसे मुंबई की ओर रवाना किया गया.
लेकिन किस्मत ने कुछ और ही लिखा था. जैसे ही एंबुलेंस मुंबई–अहमदाबाद हाईवे पर पहुंची, वहां चल रहे मरम्मत कार्य और सड़क की खराब स्थिति के कारण भारी जाम लगा हुआ था. वाहनों की लंबी कतार में एंबुलेंस भी फंस गई. लगभग पांच घंटे तक यह जाम नहीं खुला और एंबुलेंस इंच दर इंच सरकती रही.
इस दौरान बच्चे की हालत लगातार बिगड़ती चली गई. जब बच्चे ने हिलना-डुलना बंद कर दिया तो परिजन पास के एक छोटे से गांव, सासुनाव घर, स्थित अस्पताल ले गए. वहां डॉक्टरों ने जांच के बाद बच्चे को मृत घोषित कर दिया.
सड़क की बदहाल स्थिति और जाम का संकट
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, अहमदाबाद–मुंबई हाईवे का 15 किलोमीटर लंबा हिस्सा, बामनगाम (करजन) से लेकर जामबुवा (वडोदरा जिले की सीमा) तक, पिछले कई महीनों से यात्रियों के लिए सिरदर्द बना हुआ है. यहां दो पुल—पोऱ और बामनगाम के पास—बड़े ‘बॉटलनेक’ साबित हो रहे हैं. संकरी पुलिया और गड्ढों से भरी सड़क के कारण वाहनों की आवाजाही बेहद धीमी हो जाती है.
मरम्मत कार्य के नाम पर यहां लगातार खुदाई और अव्यवस्थित निर्माण कार्य चल रहा है. नतीजा यह है कि रोजाना हजारों वाहन चालक घंटों तक जाम में फंसे रहते हैं. कई बार तो लोगों को 10–15 किलोमीटर का फासला तय करने में चार–पांच घंटे लग जाते हैं.
जनता की परेशानी और सवाल
यात्रियों का कहना है कि यह जाम आम बात हो गई है और प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही. ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी नगण्य है और जो तैनात होते भी हैं, वे भीड़ को नियंत्रित करने में नाकाम रहते हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सिर्फ यात्रा की असुविधा का मामला नहीं है, बल्कि अब यह जानलेवा समस्या बन चुकी है. एंबुलेंस, दमकल वाहन और पुलिस की गाड़ियां भी इस जाम में फंसकर बेबस हो जाती हैं. शुक्रवार को हुई इस घटना ने उनकी चिंताओं को सही साबित कर दिया है.
कानूनी और सामाजिक पहलू
भारत के संविधान में जीवन के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है. जब कोई मासूम बच्चा सड़क जाम जैसी समस्या के कारण इलाज से वंचित रह जाता है और दम तोड़ देता है, तो यह सीधे तौर पर शासन और प्रशासन की जिम्मेदारी पर सवाल खड़े करता है. सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका है कि सड़क सुरक्षा और यातायात का सुचारु प्रबंधन सरकार की जिम्मेदारी है.
यह घटना प्रशासनिक लापरवाही और बुनियादी ढांचे की कमजोरियों की ओर इशारा करती है. सवाल यह उठता है कि क्या पांच घंटे तक जाम खुलवाने के लिए कोई प्रभावी कदम उठाया गया था? और अगर नहीं, तो उस बच्चे की मौत का जिम्मेदार कौन है?
बढ़ती घटनाएं और चेतावनी संकेत
मुंबई–अहमदाबाद हाईवे देश के सबसे व्यस्त मार्गों में से एक है. यह न केवल औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि लाखों लोग रोजाना इस पर यात्रा करते हैं. ऐसे में यदि सड़कें जर्जर हों और मरम्मत कार्य अव्यवस्थित तरीके से हो, तो न केवल अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि लोगों की जान पर भी खतरा मंडराता है.
यह पहली बार नहीं है जब जाम के कारण किसी की जान गई हो. अलग-अलग राज्यों से ऐसी घटनाएं आती रही हैं कि कैसे एंबुलेंस या गंभीर रोगियों की गाड़ियां ट्रैफिक जाम में फंसकर बेबस हो जाती हैं. लेकिन दुखद तथ्य यह है कि इन घटनाओं से सबक लेने के बजाय हालात जस के तस बने रहते हैं.
सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस समस्या का समाधान केवल सख्त ट्रैफिक प्रबंधन और तेज गति से चलने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार कार्यों से हो सकता है. पुल और सड़कें चौड़ी की जाएं, गड्ढों को समय पर भरा जाए और मरम्मत कार्य सुव्यवस्थित ढंग से हो.
इसके अलावा, एंबुलेंस जैसी आपातकालीन गाड़ियों के लिए अलग ‘ग्रीन कॉरिडोर’ की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि ऐसे हादसों को टाला जा सके. इसके लिए तकनीकी समाधानों—जैसे GPS आधारित ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम और डिजिटल मॉनिटरिंग—का भी सहारा लिया जा सकता है.
परिजनों का दर्द
बच्चे के परिजनों का कहना है कि उन्होंने समय पर अस्पताल से छुट्टी लेकर एंबुलेंस की व्यवस्था की थी. उन्हें उम्मीद थी कि बच्चे को मुंबई ले जाकर बचाया जा सकेगा. लेकिन जाम ने उनकी उम्मीदें तोड़ दीं. उन्होंने सवाल उठाया है कि जब प्रशासन को पहले से पता था कि इस मार्ग पर मरम्मत कार्य चल रहा है और जाम लग रहा है, तो क्यों वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई?
मुंबई-अहमदाबाद हाईवे पर पांच घंटे तक जाम में फंसी एंबुलेंस में 16 माह के मासूम की मौत ने देश को झकझोर कर रख दिया है. यह सिर्फ एक परिवार का दुख नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है कि अगर बुनियादी ढांचे को सही नहीं किया गया और ट्रैफिक प्रबंधन में सुधार नहीं लाया गया, तो ऐसी घटनाएं बार-बार होंगी.इस घटना ने साबित कर दिया है कि सड़कें केवल यात्रा का साधन नहीं हैं, बल्कि लोगों के जीवन और मृत्यु का सवाल भी उनसे जुड़ा है. सरकार और प्रशासन के लिए यह समय है कि वे तुरंत सख्त कदम उठाएं, ताकि किसी और परिवार को अपने बच्चे को इस तरह खोने का दर्द न झेलना पड़े.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

