नई दिल्ली. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी के ओवरसीज़ प्रमुख सैम पित्रोदा ने पड़ोसी देशों, ख़ासकर पाकिस्तान, के साथ रिश्तों को प्राथमिकता देने की अपील कर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है. पित्रोदा ने कहा कि भारत की विदेश नीति का पहला फोकस पड़ोसी देशों पर होना चाहिए और व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल की यात्रा के दौरान उन्हें “घर जैसा” अनुभव हुआ.
पित्रोदा का बयान
समाचार एजेंसी आईएएनएस को दिए इंटरव्यू में सैम पित्रोदा ने कहा:
“हमारी विदेश नीति का पहला लक्ष्य हमारे पड़ोस पर होना चाहिए. क्या हम अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को बेहतर कर सकते हैं? मैं पाकिस्तान गया हूँ और मुझे बताना होगा कि वहां मुझे घर जैसा लगा. मैं बांग्लादेश गया हूँ, नेपाल गया हूँ और मुझे कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी विदेशी देश में हूँ.”
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि आतंकवाद और हिंसा जैसे गंभीर मसले मौजूद हैं, लेकिन इसके बावजूद उपमहाद्वीप के देशों में साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ें हैं. उनके अनुसार, “आखिरकार यह एक साझा जीन-पूल है और हमें टकराव की बजाय सहयोग की दिशा में बढ़ना चाहिए.”
बीजेपी का पलटवार
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पित्रोदा के इस बयान को पाकिस्तान प्रेम करार देते हुए कांग्रेस पर तीखा हमला बोला. भाजपा प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:
“राहुल गांधी के सबसे करीबी साथी और परिवार मित्र सैम पित्रोदा, जिन्होंने पहले 1984 के सिख विरोधी दंगों पर ‘हुआ तो हुआ’ कहा था, अब पाकिस्तान में खुद को घर जैसा महसूस करते हैं. इसमें क्या नया है? कांग्रेस का पाकिस्तान के लिए अटूट प्रेम जगज़ाहिर है. उन्होंने हाफ़िज़ सईद तक से बात की और यासीन मलिक को महत्व दिया.”
पूनावाला ने कांग्रेस पर यह भी आरोप लगाया कि पार्टी लगातार पाकिस्तान के पक्ष में खड़ी नज़र आई है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेताओं ने 26/11, समझौता ब्लास्ट, पुलवामा और पहलगाम जैसे मामलों में पाकिस्तान को “क्लीन चिट” देने की कोशिश की. अनुच्छेद 370 और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों पर भी कांग्रेस ने पाकिस्तान की लाइन दोहराई और देश की सुरक्षा को कमजोर किया.
भाजपा प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने भी ट्वीट कर कहा, “कोई आश्चर्य नहीं कि यूपीए सरकार ने 26/11 के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा कदम नहीं उठाया. पाकिस्तान की पसंद, कांग्रेस की पसंद.”
कांग्रेस की स्थिति
कांग्रेस की ओर से आधिकारिक तौर पर इस बयान से दूरी बनाने की कोशिश की जा रही है. पार्टी का कहना है कि सैम पित्रोदा ने व्यक्तिगत क्षमता में यह विचार रखे हैं और इसे कांग्रेस की आधिकारिक नीति समझना सही नहीं होगा.
हालांकि, भाजपा का तर्क है कि पित्रोदा लंबे समय से गांधी परिवार के भरोसेमंद सलाहकार रहे हैं, इसलिए उनके विचारों को महज़ व्यक्तिगत राय नहीं माना जा सकता.
पित्रोदा के पिछले विवादित बयान
यह पहली बार नहीं है जब सैम पित्रोदा ने विदेश नीति और सुरक्षा को लेकर विवादास्पद टिप्पणी की हो.
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इसी साल फरवरी में उन्होंने चीन को लेकर कहा था: “मुझे चीन से खतरा समझ नहीं आता. यह मुद्दा अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है. अमेरिका की प्रवृत्ति होती है कि वह किसी दुश्मन को परिभाषित करे. भारत को शुरुआत से चीन को दुश्मन मानने की मानसिकता बदलनी होगी.”
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उन्होंने यह भी कहा था कि अब समय सहयोग का है, टकराव का नहीं.
उनके इस बयान के समय भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव जारी था, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे थे.
राजनीतिक मायने और प्रतिक्रियाएँ
सैम पित्रोदा का यह बयान ऐसे समय आया है जब विपक्षी कांग्रेस केंद्र सरकार पर विदेश नीति और पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को लेकर लगातार हमलावर है. लेकिन पार्टी के एक वरिष्ठ नेता की ओर से पाकिस्तान के प्रति सकारात्मक भाव दिखाने से कांग्रेस खुद रक्षात्मक स्थिति में आ गई है.
विश्लेषकों का मानना है कि भारत–पाक संबंध हमेशा से भारतीय राजनीति का संवेदनशील मुद्दा रहे हैं. पुलवामा, कारगिल और 26/11 जैसी घटनाओं ने भारत में पाकिस्तान के खिलाफ एक मजबूत जनमत तैयार किया है. ऐसे में कोई भी बड़ा नेता पाकिस्तान के प्रति नरम रुख दिखाता है तो वह तत्काल विवाद में घिर जाता है.
भाजपा के लिए यह मुद्दा कांग्रेस पर हमले का आसान मौका बन गया है. पार्टी इस बयान को देश की सुरक्षा और शहीद जवानों के बलिदान से जोड़कर जनता के बीच प्रस्तुत कर रही है.
सैम पित्रोदा का बयान भारत की राजनीति में एक बार फिर भारत–पाक संबंधों को बहस के केंद्र में ले आया है. कांग्रेस जहां इसे व्यक्तिगत राय कहकर टालने की कोशिश कर रही है, वहीं भाजपा इसको राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद के मुद्दे से जोड़कर कांग्रेस पर हमलावर हो गई है.
फिलहाल यह विवाद आने वाले दिनों में और गहराने की संभावना है, क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव के बाद भी विपक्ष और सत्तारूढ़ दल दोनों ही राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को जनता के बीच सबसे प्रभावी चुनावी मुद्दों के रूप में देख रहे हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

