मुंबई. देश की वित्तीय राजधानी मुंबई की बहुप्रतीक्षित मोनोरेल सेवा एक बार फिर सुर्खियों में है. शनिवार, 20 सितम्बर 2025 से चेंबूर से सात रास्ता (संत गाडगे महाराज चौक) तक फैली 19.54 किलोमीटर लंबी मोनोरेल सेवाएं पूरी तरह से दो महीने के लिए बंद कर दी गई हैं. मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डिवेलपमेंट अथॉरिटी (एमएमआरडीए) ने घोषणा की है कि यह निर्णय एक व्यापक तकनीकी उन्नयन और मरम्मत कार्य को अंजाम देने के लिए लिया गया है. इस दौरान यात्री इस महत्वपूर्ण सार्वजनिक परिवहन साधन से वंचित रहेंगे लेकिन अधिकारियों का दावा है कि यह कदम मोनोरेल को भविष्य में सुरक्षित, टिकाऊ और भरोसेमंद बनाने के लिए आवश्यक है.
मुंबई मोनोरेल को शुरू से ही अव्यवहारिक और समस्याग्रस्त परियोजना कहा जाता रहा है. इसे शहर के लिए एक “इन्फ्रास्ट्रक्चर व्हाइट एलीफेंट” तक की संज्ञा दी गई है. हाल के महीनों में यह सेवा लगातार तकनीकी खामियों और खराबियों से जूझ रही थी. केवल पिछले एक महीने के भीतर ही सात बड़ी गड़बड़ियों ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए. सबसे गंभीर घटना 19 अगस्त को सामने आई जब भारी बारिश के दौरान दो ट्रेनें रास्ते में ही बंद हो गईं और 1148 यात्री घंटों तक फंसे रहे. उन्हें आपातकालीन राहत टीमों की मदद से निकाला गया. ठीक इसी तरह 15 सितम्बर को एक और खराबी के कारण 17 यात्री बीच सफर में अटक गए. इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि मौजूदा व्यवस्था में यात्री सुरक्षा और नियमित संचालन दोनों खतरे में हैं.
एमएमआरडीए के अधिकारियों का कहना है कि मोनोरेल के रखरखाव और तकनीकी मरम्मत के लिए रात में केवल तीन से साढ़े तीन घंटे का समय मिलता है, जो बड़े स्तर पर सुधार कार्यों के लिए अपर्याप्त है. यही कारण है कि पूरी सेवा को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है ताकि बिना किसी बाधा के संपूर्ण सुधार कार्य हो सके. अधिकारी इसे एक “कठिन लेकिन दूरगामी दृष्टिकोण वाला निर्णय” बता रहे हैं.
अधिकारियों के अनुसार इस बंदी के दौरान तीन प्रमुख मोर्चों पर काम किया जाएगा. पहला, मोनोरेल को नए रोलिंग स्टॉक यानी आधुनिक ट्रेनों से लैस किया जाएगा. मेधा सर्वो ड्राइव्स और एसएमएच रेल द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई दस नई ‘मेक इन इंडिया’ रैक में से आठ पहले ही मुंबई पहुंच चुकी हैं और उन्हें जल्द ही सेवा में शामिल किया जाएगा. दूसरा, एक आधुनिक सिग्नलिंग प्रणाली यानी कम्युनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोल (सीबीटीसी) तकनीक स्थापित की जाएगी. इस स्वदेशी तकनीक से सुरक्षा मानकों को और बेहतर किया जाएगा तथा ट्रेनों के बीच का अंतराल घटाकर मौजूदा 20 से 25 मिनट से घटाकर केवल 8 से 10 मिनट तक लाया जा सकेगा. तीसरा, पहले से चल रही पुरानी ट्रेनों का पूरी तरह से ओवरहॉल और रेट्रोफिटिंग किया जाएगा ताकि बार-बार आने वाली तकनीकी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सके और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाई जा सके.
मेट्रोपॉलिटन कमिश्नर डॉ. संजय मुखर्जी ने इस कदम को एक सुविचारित निर्णय बताते हुए कहा कि “यह केवल अस्थायी बंदी नहीं है, बल्कि मोनोरेल को नए सिरे से जीवंत और भरोसेमंद बनाने की प्रक्रिया है. हम चाहते हैं कि यात्री एक ऐसी सेवा का अनुभव करें जो सुरक्षित भी हो और समय पर भी.” उन्होंने लोगों से सहयोग की अपील करते हुए कहा कि यह बंदी कुछ असुविधा जरूर पैदा करेगी, लेकिन अंततः यात्री एक मजबूत और उन्नत मोनोरेल प्रणाली का लाभ उठाएंगे.
हालांकि, इस घोषणा से मुंबई के उन हजारों यात्रियों को झटका लगा है जो प्रतिदिन मोनोरेल से यात्रा करते थे. खासकर चेंबूर, वडाला और महालक्ष्मी जैसे इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए यह परिवहन का सस्ता और तेज साधन था. अब उन्हें अगले दो महीने तक वैकल्पिक साधनों जैसे बेस्ट बस, टैक्सी या लोकल ट्रेन पर निर्भर रहना होगा. इससे न केवल समय की बर्बादी होगी बल्कि जेब पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.
यात्रियों का कहना है कि मोनोरेल शुरू से ही उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी. जब 2014 में इसकी पहली लाइन का उद्घाटन हुआ था तो इसे मुंबई के भीड़भाड़ वाले यातायात से राहत का बड़ा उपाय बताया गया था. लेकिन पिछले ग्यारह सालों में यह सेवा कभी भी अपनी पूर्ण क्षमता पर नहीं चल सकी. कम यात्री क्षमता, बार-बार की तकनीकी खराबियां और महंगी रखरखाव लागत ने इसे हमेशा विवादों में बनाए रखा.
शहर के परिवहन विशेषज्ञों का भी मानना है कि यह परियोजना शुरुआत से ही ठीक से योजनाबद्ध नहीं थी. मुंबई जैसे विशाल शहर में केवल 19.5 किलोमीटर लंबी मोनोरेल का नेटवर्क कभी भी पर्याप्त नहीं हो सकता था. दूसरी ओर, मेट्रो रेल जैसी परियोजनाएं अपेक्षाकृत अधिक सफल रही हैं क्योंकि उनका विस्तार और क्षमता दोनों कहीं अधिक हैं. इसके बावजूद एमएमआरडीए का कहना है कि सुधार कार्यों के बाद मोनोरेल अपनी विश्वसनीयता साबित करेगी और भविष्य में इसके विस्तार पर भी विचार किया जाएगा.
बंदी के दौरान न केवल नई तकनीक जोड़ी जाएगी बल्कि मौजूदा सिस्टम का परीक्षण भी कई बार किया जाएगा ताकि दोबारा यात्रियों को बीच रास्ते में फंसने जैसी स्थिति का सामना न करना पड़े. अधिकारी दावा कर रहे हैं कि दो महीने बाद जब सेवा फिर से शुरू होगी तो यह पहले से कहीं अधिक सुरक्षित, व्यवस्थित और सक्षम होगी.
फिलहाल यात्रियों को धैर्य रखने की अपील की जा रही है, लेकिन यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या इतने बड़े शहर में ऐसी अधूरी और समस्याग्रस्त परियोजनाओं पर सार्वजनिक धन खर्च करना उचित था. क्या दो महीने की मरम्मत के बाद भी यह सेवा लंबे समय तक भरोसेमंद साबित हो पाएगी, या फिर यह सिर्फ एक और असफल प्रयोग बनकर रह जाएगी.
मुंबई मोनोरेल की यह बंदी एक बार फिर शहर के बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक परिवहन योजनाओं पर गंभीर बहस छेड़ रही है. जहां एक ओर अधिकारी इसे भविष्य की दृष्टि से जरूरी कदम बता रहे हैं, वहीं यात्रियों और विशेषज्ञों का एक बड़ा वर्ग इसे योजना की खामियों और संसाधनों की बर्बादी का नतीजा मान रहा है. दो महीने बाद जब यह सेवा दोबारा पटरी पर लौटेगी, तभी साफ होगा कि क्या यह बंदी वास्तव में मोनोरेल के भविष्य को सुरक्षित बनाएगी या फिर यह सिर्फ एक अस्थायी समाधान साबित होगी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

