घर-घर की थाली में कर्नाटक का स्वाद बिसी बेली भात की खुशबू ने बढ़ाई रसोई की रौनक

घर-घर की थाली में कर्नाटक का स्वाद बिसी बेली भात की खुशबू ने बढ़ाई रसोई की रौनक

प्रेषित समय :19:13:37 PM / Tue, Oct 7th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

बेंगलुरु। दक्षिण भारत के पारंपरिक व्यंजनों में अगर किसी डिश ने पूरे देश के स्वादप्रेमियों के दिल में जगह बनाई है, तो वह है बिसी बेली भात। यह सिर्फ एक भोजन नहीं, बल्कि कर्नाटक की रसोई की आत्मा है। “बिसी” यानी गरम, “बेली” यानी दाल, और “भात” यानी चावल—इन तीन शब्दों का यह संगम एक ऐसा व्यंजन बनाता है जो स्वाद, सेहत और संस्कृति तीनों का मेल है। घरों से लेकर मंदिरों और रेस्तरां तक, इसकी खुशबू हर जगह एक परिचित अपनापन जगाती है।

कहा जाता है कि यह व्यंजन सबसे पहले मैसूर दरबार की रसोई में तैयार हुआ था। राजघरानों में इसे खास अवसरों पर पकाया जाता था। बाद में यह आम घरों में लोकप्रिय हुआ और अब यह दक्षिण भारतीय थाली का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। जब यह व्यंजन पकता है, तो रसोई में उठती मसालों की महक पूरे घर को महका देती है।

बिसी बेली भात को तैयार करने के लिए सबसे पहले इसकी सामग्री एकत्र की जाती है। इसमें एक कप चावल, आधा कप तूर दाल, दो कप मिश्रित सब्ज़ियाँ जैसे गाजर, बीन्स, मटर, आलू और टमाटर ली जाती हैं। एक छोटी नींबू के बराबर इमली को पानी में भिगोकर उसका गूदा निकाल लिया जाता है। इसके साथ दो चम्मच गुड़, नमक स्वादानुसार, दो बड़े चम्मच घी, आधा चम्मच राई, करी पत्ते, एक चुटकी हींग और कुछ सूखी लाल मिर्च ली जाती हैं। असली स्वाद का रहस्य बिसी बेली भात पाउडर में छिपा होता है, जो इसे अपनी अनोखी पहचान देता है।

इस मसाले को घर पर भी तैयार किया जा सकता है। इसके लिए दो चम्मच धनिया, एक चम्मच चना दाल, एक चम्मच उड़द दाल, छह सूखी लाल मिर्च, एक छोटा टुकड़ा दालचीनी, तीन लौंग, दो इलायची, कुछ करी पत्ते और एक बड़ा चम्मच सूखा नारियल लिया जाता है। इन सबको धीमी आँच पर तब तक भूनना होता है जब तक हल्की खुशबू आने लगे। फिर इन्हें ठंडा करके बारीक पीस लिया जाता है। यही घर का बना बिसी बेली भात मसाला इसके स्वाद की असली कुंजी होता है।

बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत तूर दाल और चावल को अच्छी तरह धोने से होती है। दाल को कुकर में चार कप पानी के साथ तीन से चार सीटी तक पकाया जाता है ताकि वह पूरी तरह गल जाए। दूसरी ओर, चावल को थोड़ा तेल और नमक डालकर अलग कुकर में पकाया जाता है। इसके बाद एक बड़ी कड़ाही में दो चम्मच घी गर्म किया जाता है। उसमें राई डाली जाती है, और जब वह चटकने लगे, तो करी पत्ते, हींग और सूखी लाल मिर्च डालकर तड़का लगाया जाता है।

अब इसमें सभी कटी हुई सब्ज़ियाँ डाली जाती हैं और पाँच मिनट तक हल्की आंच पर भून ली जाती हैं। जब सब्ज़ियाँ थोड़ी नरम हो जाएँ, तो इमली का गूदा और गुड़ डालकर कुछ देर तक पकाया जाता है ताकि खट्टा-मीठा स्वाद एकसार हो जाए। इसके बाद बिसी बेली भात पाउडर डाला जाता है। मसाले मिलते ही रसोई में जो सुगंध उठती है, वह इस व्यंजन की सबसे बड़ी पहचान है। फिर इसमें पकी हुई दाल और चावल डाल दिए जाते हैं और धीरे-धीरे मिलाते हुए इसे गाढ़ा होने तक पकाया जाता है।

धीमी आँच पर पकने के दौरान जब दाल, चावल, इमली और मसाले का मिश्रण एक साथ घुलने लगता है, तो यह व्यंजन अपनी परिपूर्ण अवस्था में पहुँचता है। अंत में इसमें एक बड़ा चम्मच घी डालकर पाँच मिनट तक धीमी आंच पर दम दिया जाता है। बस, बिसी बेली भात तैयार है। इसे गर्मागर्म परोसते समय ऊपर से थोड़ा और घी और कुरकुरी बूंदी डाल दी जाती है। कुछ लोग इसे पापड़ या रायते के साथ खाना पसंद करते हैं, जबकि पारंपरिक रूप से इसे केवल बूंदी के साथ ही परोसा जाता है।

कर्नाटक में यह व्यंजन केवल एक खाना नहीं, बल्कि एक परंपरा है। त्यौहारों, पूजा या पारिवारिक आयोजनों में इसका स्थान विशेष होता है। संक्रांति और दशहरा जैसे पर्वों पर घर-घर में बिसी बेली भात बनाना शुभ माना जाता है। बेंगलुरु की एक गृहिणी शांता अम्मा कहती हैं, “हमारे घर में जब भी बिसी बेली भात बनता है, बच्चे तक खुद रसोई में आकर पूछते हैं कि आज इतना अच्छा सुगंध क्यों आ रहा है। यह व्यंजन घर को जोड़ने का काम करता है।”

आज के दौर में जब फास्ट फूड और रेडीमेड खाने का चलन बढ़ा है, तब भी यह व्यंजन अपने स्वाद और परंपरा के कारण अडिग खड़ा है। बड़े शहरों के रेस्टोरेंट में यह स्पेशल मेनू का हिस्सा है, वहीं विदेशों में बसे भारतीय इसे अपने घर का स्वाद मानकर पकाते हैं। कई आधुनिक रसोइयों ने इसमें नए प्रयोग भी किए हैं—जैसे ब्राउन राइस, क्विनोआ या ओट्स के साथ इसका हेल्दी संस्करण बनाना, लेकिन पारंपरिक रूप में इसका स्वाद अब भी बेजोड़ है।

पोषण की दृष्टि से भी बिसी बेली भात एक संतुलित व्यंजन है। इसमें चावल से कार्बोहाइड्रेट, दाल से प्रोटीन, सब्ज़ियों से विटामिन और खनिज मिलते हैं। इमली पाचन में मदद करती है, गुड़ ऊर्जा और आयरन का स्रोत है, और घी इसे स्वाद के साथ पौष्टिक भी बनाता है। यही कारण है कि यह व्यंजन न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी है।

हर निवाले में कर्नाटक की संस्कृति की झलक मिलती है। मसालों की खुशबू, दाल और चावल का मेल, और ऊपर से डाला गया घी—सब मिलकर इसे सिर्फ एक डिश नहीं बल्कि एक अनुभव बनाते हैं। आज भी जब किसी घर में बिसी बेली भात बनता है, तो रसोई में उठती महक पूरे पड़ोस को याद दिला देती है कि परंपरा का स्वाद कभी पुराना नहीं होता।

बिसी बेली भात इस बात का उदाहरण है कि भारतीय रसोई में सादगी और स्वाद का मेल जब परंपरा के साथ होता है, तो वह केवल पेट नहीं, दिल भी भर देता है। यही वजह है कि कर्नाटक का यह पारंपरिक व्यंजन अब भी लोगों के स्वाद की थाली में उतनी ही गरमजोशी से परोसा जाता है, जितनी पहले दिन परोसा गया था—घी की महक, मसालों की झंकार और प्यार की खुशबू के साथ।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-