पीएम सूर्य घर योजना की सफलता के बीच चुनौतियां बरकरार 1 करोड़ घरों का लक्ष्य अभी दूर

पीएम सूर्य घर योजना की सफलता के बीच चुनौतियां बरकरार 1 करोड़ घरों का लक्ष्य अभी दूर

प्रेषित समय :19:30:43 PM / Wed, Oct 15th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. भारत के ऊर्जा क्षेत्र में प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना (PMSGY) के रूप में एक नई सुबह का आगाज़ हुआ है. लॉन्च के महज़ एक साल में ही इस योजना ने देश के रेज़िडेंशियल रूफटॉप सोलर सेक्टर को नई दिशा देते हुए 4,946 मेगावॉट क्षमता स्थापित करने का उल्लेखनीय आंकड़ा छुआ है, जिसके लिए अब तक लगभग ₹9,280 करोड़ (1.05 बिलियन डॉलर) की सब्सिडी जारी की जा चुकी है. यह आँकड़ा भारतीय छतों को अब केवल बारिश नहीं, बल्कि सूरज की ऊर्जा को भी थामने के लिए तैयार होने की कहानी कहता है.

हालांकि, IEEFA और JMK Research की ताजा रिपोर्ट बताती है कि उत्साह के बावजूद ज़मीनी स्तर पर रफ्तार सीमित है. जुलाई 2025 तक 57.9 लाख घरों ने रूफटॉप सोलर के लिए आवेदन किया है, जो मार्च 2024 की तुलना में चार गुना वृद्धि है. फिर भी, 2027 तक 1 करोड़ इंस्टॉलेशन के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य का सिर्फ 13.1% ही पूरा हो सका है.

इस रेस में गुजरात और केरल सबसे आगे हैं, जहाँ 65% से अधिक का कन्वर्जन रेशियो है, यानी आवेदन करने वाले दो-तिहाई लोग सोलर लगवा लेते हैं. इसके विपरीत, देश का औसत इंस्टॉलेशन-टू-एप्लिकेशन कन्वर्जन रेशियो सिर्फ 22.7% है, जो दर्शाता है कि चार में से तीन इच्छुक घरों को अभी भी सोलर तक पहुँचने में अड़चनें आ रही हैं.

केंद्र की सब्सिडी के साथ अब असम, दिल्ली, गोवा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने भी अतिरिक्त पूंजी सब्सिडी शुरू की है, जिससे शुरुआती लागत कम हो रही है. लेकिन इन वित्तीय प्रोत्साहनों के बावजूद कम जागरूकता, कठिन लोन प्रक्रिया, शिकायत निवारण पोर्टल की तकनीकी गड़बड़ियाँ, और बिखरी हुई सप्लाई चेन जैसी अड़चनें बड़ी बाधा बनी हुई हैं.

JMK Research के सीनियर कंसल्टेंट प्रभाकर शर्मा के अनुसार, अब सोलर एडॉप्शन की सबसे बड़ी बाधा पैसे या तकनीक से ज़्यादा, धारणा बन गई है. विशेषकर ग्रामीण इलाकों में, उपभोक्ता अभी भी सोलर को 'महँगी तकनीक' और रखरखाव में मुश्किल मानते हैं. इस गैप को भरने के लिए योजना में क्षमता-निर्माण (capacity-building) कार्यक्रम जोड़े गए हैं, जिसके तहत 2024 से अब तक तीन लाख से अधिक लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है.

योजना के तहत डोमेस्टिक कंटेंट रिक्वायरमेंट (DCR) लागू कर भारतीय सोलर मॉड्यूल के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है. साथ ही, "इनोवेटिव प्रोजेक्ट्स" के लिए 60% तक की ग्रांट देकर नए बिज़नेस मॉडल्स को प्रोत्साहन दिया जा रहा है. हालांकि, IEEFA की डायरेक्टर विभूति गर्ग ज़ोर देती हैं कि हर राज्य को ज़मीनी असर के लिए स्पष्ट और समयबद्ध रूफटॉप सोलर लक्ष्य तय करने होंगे.

शिकायत निवारण प्रणाली की प्रभावशीलता सीमित बनी हुई है, जहाँ उपभोक्ताओं को सब्सिडी डिस्बर्समेंट और पोर्टल एरर जैसी समस्याएँ झेलनी पड़ रही हैं. JMK Research के अमन गुप्ता का सुझाव है कि शिकायत निवारण को डिस्कॉम और पोर्टल तक सीमित न रखते हुए, जिले स्तर पर एस्केलेशन मैट्रिक्स बनाने की आवश्यकता है.

भविष्य की राह के लिए, रिपोर्ट मानकीकृत 'प्लग-एंड-प्ले' सोलर किट्स की ओर इशारा करती है, जिससे इंस्टॉलेशन आसान और तेज़ हो सकता है और गुणवत्ता की एकरूपता सुनिश्चित होगी. PMSGY ने 4.9 GW क्षमता जोड़कर अपनी दिशा सही साबित की है, लेकिन 2027 तक 30 GW क्षमता हासिल करने के लिए अब सब्सिडी से ज़्यादा डिजिटल पारदर्शिता, मानकीकृत समाधान और उपभोक्ता भरोसे पर ध्यान केंद्रित करना होगा. रोशनी की यह यात्रा लंबी है, और जलवायु कार्रवाई की असली परीक्षा अब उन छतों पर होगी, जहाँ आम परिवार सूरज से अपनी पहली बिजली बनाएगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-