तूणक छन्द में दीप-पर्व

तूणक छन्द में दीप-पर्व

प्रेषित समय :19:32:59 PM / Sun, Oct 19th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"

एक दीप देश के विकास के लिए जला, एक राष्ट्र-प्रेम की मिठास के लिए जला।
आस पास सन्धि के कयास के लिए जला, शेष अन्धकार में उजास के लिए जला।।

गाँव-गाँव की गली-गली प्रकाशमान हो, खील सी खिले कली छली न विद्यमान हो।
सूर्य सा प्रकाश दीप-दीप में समान हो, दीप-पर्व दीप्त हो अनन्त कीर्तिमान हो।।

लिंग-वर्ग-जाति भेद दूर हों समाज के, झोपड़ी गरीब की प्रसाद देवराज के।
शंख से विरोध भाव हो न मीत सीप का, दीप पर्व है मिले सनेह दीप-दीप का।।

एक दीप मौसमी बहार के लिए जला, एक दुष्ट-भ्रष्ट के सुधार के लिए जला।
एक संस्कार के प्रसार के लिए जला, शेष दुर्निवार अन्धकार के लिए जला।।

रात है अमावसी समित्र चाँद ध्यान में, कालिमा कलंक सी निरभ्र आसमान में।
तारिका समूह शक्ति क्षीण है वितान में, अन्धकार का विराट राज है जहान में।।

बावरी अमा भरी विभावरी सँवार तू, एक क्या हजार सूर्य भूमि ला उतार तू।
ज्ञान के प्रकाश को विनम्र हो पुकार तू, और ज़िन्दगी खुली किताब सी निहार तू।।

एक दीप देश में फकीर के लिए जला, एक दिव्य-भव्य से अमीर के लिए जला।
आँधियाँ न सर चढ़ें समीर के लिए जला, शेष द्वेष दम्भ काम कीर के लिए जला।।

आ रहा अधैर्य आज सिन्धु के स्वभाव में, सूखने लगे सुकुण्ड नीर के अभाव में।
मूल्यवान नीतियाँ अनीति के वचाव में, पाप और पुण्य पक्ष पश्चिमी प्रभाव में।।

रोशनी सनी वसुन्धरा तरंगिणी बने, दीपिका निशीथ की नवीन बोधिनी बने।
दीप हो सुहाग और लौ सुहागिनी बने।
राग की सुहागिनी सजीव रागिनी बने।।

ज्ञान का प्रतीक दीप प्राण का प्रमाण हो, आन बान का सबिम्ब मान का निशान हो।
मातृभूमि के लिए जले भले किसान हो, वृद्ध हो कि बाल दीप देश का जवान हो।।

लालिमा ललाम फेंक कालिमा निकाल दे, निर्मला सुबुद्धि दीपज्योति सी उजाल दे।
हाथ में निशानियों भरी हुई मशाल दे, प्यार की खुशी बढ़े सुप्रेम की मिसाल दे।।

एक दीप देश के ललाट के लिए जला, एक दिव्य वामनी विराट के लिए जला।
एक विश्व की अनूप हाट के लिए जला, शेष अन्धकार बीच बाट के लिए जला।।
"वृत्तायन" 957, स्कीम नं. 51
इंदौर, पिन - 452006, म.प्र.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-