- अभिमनोज
"वक्त जो करता है उस वक्त उसे करने दो
वक्त आएगा तो, उस वक्त खुलासा होगा ।
किसने मरहम लगाया, कौन मुंह था फेर गया
कोई चमकेगा कोई चेहरा ज़रा सा होगा।।
उसे देखा तो लगा, बोलेगा खामोश है जो बुत
बहुत शिद्दत से, मुसौवर ने तराशा होगा।।
इक मुद्दत से खामोश हूँ मुझे न उकसाना -
लब खुले मेरे तो, हर ओर धमाका होगा।।"
“तुम मेरे साथ जब भी होते थे जीवन में एक गीत की तरह बजता था हर क्षण, हर स्मृति में तुम्हारा साथ हमेशा रहता था।”
ये पंक्तियाँ गिरीश बिल्लोरे ‘मुकुल’ की कविताओं और लेखन की गहन अनुभूति हैं। जीवन, संवेदनाएँ, समाज और अनुभवों की सच्चाई इन पंक्तियों में स्पष्ट झलकती है। कुछ ही दिनों पहले वे बाल भवन, जबलपुर के संचालक पद से सेवानिवृत्त हुए। उनका जाना मेरे लिए और हमारे समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। गिरीश बिल्लोरे ‘मुकुल’ केवल एक साहित्यकार या बाल भवन के पूर्व संचालक नहीं थे; वे मेरे लिए हमेशा भाई के समान रहे। मुझे सदैव “भाई साहब” कहकर सम्मान देते हुए देखना, उनका सरल, प्रामाणिक और स्नेहपूर्ण व्यक्तित्व मेरे जीवन का अमूल्य अनुभव रहा।
जब भी कुछ लिखते, ईमेल पर भेज देते थे। मेरे छापने और न छापने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। अगर मैंने कोई रचना वेब न्यूज़ पोर्टल पल इंडिया डॉट कॉम में छाप दिया तो ठीक, सोशल मीडिया पर शेयर कर देते। नहीं भी छपा तो कोई उलाहना नहीं।
वे देश-प्रदेश की कोई महत्वपूर्ण घटना हो या शहर की पत्रकारिता, राजनीति और सामाजिक परिदृश्य पर भी गहरी नजर रखते थे। जबलपुर के समाचार, मीडिया और पत्रकारिता की घटनाओं में उनका विश्लेषण हमेशा तथ्यपरक और गहन होता। उन्होंने अक्सर बताया करते थे कि केवल खबरों का अध्ययन करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवतावादी प्रभावों को समझना भी आवश्यक है। उनके विचारों में समाज की जिम्मेदारी और संवेदनशीलता स्पष्ट झलकती थी।
गिरीश बिल्लोरे का जीवन और कार्यक्षेत्र अत्यंत व्यापक और बहुआयामी था। उनका जन्म 29 नवंबर 1962 को सालिचौका, नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश में हुआ। बचपन से ही उनका झुकाव साहित्य, कविता, गीत और कथा लेखन की ओर रहा। उनके भीतर शब्दों को महसूस करने और उन्हें जीवन के अनुभवों में ढालने की अद्भुत क्षमता थी। छात्र जीवन में वह न केवल छात्रसंघ के विभिन्न पदों पर सक्रिय रहे, बल्कि उन्होंने छात्रों के बीच सांस्कृतिक और साहित्यिक आंदोलन को गति दी। उनके नेतृत्व में वाद-विवाद प्रतियोगिताओं और साहित्यिक गतिविधियों में छात्रों की सक्रियता और सफलता बढ़ी। इस समय उन्होंने समाज, संस्कृति और साहित्य की मूलभूत समझ विकसित की।
गिरीश जी ने संस्कार शिक्षा के दौर में स्व. हरिशंकर परसाई, प्रो. हनुमान वर्मा, प्रो. हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो. अनिल जैन और प्रो. अनिल धगटे जैसे मनीषियों का सानिध्य प्राप्त किया। इन गुरुओं के मार्गदर्शन और प्रेरणा से उनके साहित्यिक दृष्टिकोण में गहराई और व्यापकता आई। उन्होंने केवल अध्ययन और शिक्षण ही नहीं किया, बल्कि जीवन के मूल्य, मानवीय संवेदनाएँ, और समाज की गहराइयों को भी समझा।
उनकी शिक्षा का क्रम एम.कॉम और एल.एल.बी तक पहुँचा, पर उनका सच्चा प्रेम और समर्पण हमेशा साहित्य और कला के लिए ही रहा। गीत, कविता, गद्य, लघुकथा, व्यंग्य—हर विधा में उनका लेखन सरल होते हुए भी गहन अर्थ और भावनाओं से भरा हुआ था। उनके व्यंग्य समाज की जटिलताओं और मानवीय प्रवृत्तियों को उजागर करते थे। “उफ़ ये चुगलखोरियाँ” और “फुर्सत के रास्ते” जैसे व्यंग्य पाठकों को हंसाते हुए जीवन के गहरे संदेश भी देते हैं। उनका व्यंग्य कभी तटस्थ नहीं था; वह समाज की गलतियों, मानवीय दुर्बलताओं और राजनीतिक असमानताओं पर तीखी नजर डालता था।
उनकी लघुकथाएँ और कथाएँ भी समान रूप से मार्मिक और संवेदनशील थीं। “शुभकामनाएँ – एक चिंतन” और भारतीय मानव–सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेशद्वार : 16000 ईसा पूर्व जैसी रचनाएँ पाठकों को केवल विचार करने पर मजबूर नहीं करतीं, बल्कि उनके हृदय को भीतर तक छूती हैं। उनके लेखन में इतिहास, संस्कृति, मनोविज्ञान और जीवन का अनुभव गहराई से समाहित था।
उनका साहित्य केवल शब्दों का समूह नहीं था। वह जीवन की हर अनुभूति, हर संवेदना और हर अनुभव का दर्पण था। गीत, कविता, लघुकथा और व्यंग्य-हर विधा में उनकी अभिव्यक्ति सरल होते हुए भी गहरी थी। उनके गीत और कविताएँ जीवन के सूक्ष्म पहलुओं को इस तरह उजागर करती थीं कि पाठक उनके भीतर अपने अनुभव खोजता। “तुम मेरे साथ जब भी होते थे जीवन में एक गीत की तरह बजता था हर क्षण, हर स्मृति में तुम्हारा साथ हमेशा रहता था”-इन पंक्तियों में उनके भीतर की गहराई, प्रेम और साथ की मधुर अनुभूति झलकती है।
उनकी कविताएं और लघुकथाएँ पाठकों को जीवन की सच्चाइयों से रूबरू कराती हैं। “एक अकेला”, “मृत्यु…!!”, और “तुमसे अक्सर” जैसी रचनाएँ केवल हृदय में गूंजती ही नहीं, बल्कि जीवन के सूक्ष्म पहलुओं और मानवीय संवेदनाओं का अनुभव कराती हैं। उनके व्यंग्य, जैसे “उफ़ ये चुगलखोरियाँ” और “फुर्सत के रास्ते”, समाज की बुराइयों, मानव स्वभाव की जटिलताओं और दैनिक जीवन की खामियों पर गहरी नजर डालते हैं। हास्य और मार्मिकता के माध्यम से उन्होंने पाठक को सोचने, समझने और संवेदनशील बनने का अवसर दिया।
गिरीश बिल्लोरे ‘मुकुल’ का बाल भवन, जबलपुर में योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। मध्य प्रदेश शासन के बाल भवन में उन्होंने बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए अनगिनत प्रयास किए। बाल नाट्य शिविरों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और बाल गीतों के माध्यम से उन्होंने बच्चों में रचनात्मकता, आत्मविश्वास और सामाजिक चेतना विकसित की। उनके मार्गदर्शन में बालभवन के छात्र राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सके। उन्होंने बच्चों को केवल कला में प्रशिक्षित नहीं किया बल्कि उनमें मानवीय संवेदनाओं, सौहार्द्र और सहयोग की भावना भी विकसित की।
किसी ने चर्चा के दौरान बाल भवन में उनके कार्यशैली और बच्चों के प्रति लगाव के बारे में बताया था, जो मुझे अत्यधिक प्रभावित किया। वे हर बच्चे की प्रतिभा को पहचानते और उसे प्रोत्साहित करते। एक बार बाल भवन के सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान, एक बच्चा मंच पर डर कर नहीं बोल पा रहा था। गिरीश जी चुपचाप उसके पास गए, उसके हाथ पकड़कर कहा, “तुम्हारे भीतर यह शक्ति है, बस विश्वास रखो।” उस दिन उस बच्चे ने मंच पर अपनी प्रस्तुति इतनी आत्मविश्वास के साथ दी कि पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
उनका जीवन स्वयं में एक कविता की तरह था। हर पल, हर स्मृति, हर अनुभव उनके साहित्य का हिस्सा बनकर हमारे बीच जीवित रहता है। उनके गीत, जैसे “तुम मेरे साथ…”, पाठक के हृदय को भीतर तक छूते हुए उन पलों की याद दिलाते हैं जब उनके साथ रहकर जीवन एक मधुर अनुभव लगता था। उनकी कविताएँ, चाहे हास्यपूर्ण हों या गंभीर, जीवन के हर पहलू का प्रतिबिंब थीं।
गिरीश बिल्लोरे ‘मुकुल’ का यह मानना था कि साहित्य केवल शब्दों का खेल नहीं बल्कि जीवन, समाज और संस्कृति का दर्पण है। उनके लिए हर कविता, कहानी और व्यंग्य समाज के प्रति प्रतिबद्धता और मानवता के प्रति संवेदनशीलता का संदेश था। उनके संपादन कार्य-मेलोडी ऑफ लाइफ़, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा ऑडियो सीडी-भी उनके इसी दृष्टिकोण का प्रमाण हैं।
वे डिजिटल और आधुनिक माध्यमों पर भी सक्रिय रहे। उनके पॉडकास्ट और SoundCloud चैनल ने उनके विचारों और गीतों को नए श्रोताओं तक पहुँचाया। उनके पॉडकास्ट में वैदिक ज्योतिष और वैश्विक घटनाओं के विश्लेषण के माध्यम से उन्होंने जीवन और समाज की गहरी समझ साझा की। उन्होंने हमें यह सिखाया कि अनुभव और ज्ञान को साझा करना, समाज और संस्कृति को जीवित रखना, और साहित्य के माध्यम से मानव चेतना को जागृत करना कितना महत्वपूर्ण है।
उनकी कविताओं और रचनाओं में जीवन और मृत्यु, प्रेम और पीड़ा, आशा और निराशा, समाज और संस्कृति-सभी का गहरा संगम मिलता है। उनका लेखन सरल होते हुए भी अर्थपूर्ण और संवेदनशील था। उनके शब्द, उनकी सोच और दृष्टिकोण हमें यह सिखाते हैं कि जीवन का हर अनुभव, हर संवेदना और हर पल साहित्य बन सकता है, और वह साहित्य जीवन को अर्थपूर्ण और सुंदर बनाता है।
उनका जाना मेरे लिए और हमारे समाज के लिए अपूर्ण क्षति है। उनके जीवन और साहित्य ने हमारे समाज और संस्कृति में अमिट छाप छोड़ी। उनके जाने से न केवल साहित्यिक जगत को क्षति हुई, बल्कि उनके मार्गदर्शन, संवेदनशीलता और सृजनात्मकता का आलोक भी छिन गया। फिर भी, उनकी कविताएँ, गीत, व्यंग्य और लघुकथाएँ हमारे बीच जीवित रहेंगे। उनके शब्द, उनके विचार और उनका जीवन हमें हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।
उनकी कविता की पंक्तियाँ-“तुम मेरे साथ जब भी होते थे जीवन में एक गीत की तरह बजता था हर क्षण”-उनके पूरे जीवन का सार हैं। उनके जीवन में हर अनुभव, हर संबंध, हर स्मृति एक गीत बनकर बसी। उनका साहित्य, उनका मार्गदर्शन और उनका व्यक्तित्व आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्त्रोत रहेगा।
गिरीश बिल्लोरे ‘मुकुल’ ने यह दिखाया कि जीवन, साहित्य और सेवा का मार्ग अनवरत चलता है। उनकी कविताओं, लघुकथाओं और व्यंग्यों में जीवन की वास्तविकता, मानवता की संवेदनशीलता और समाज की जटिलताएँ साफ झलकती हैं। उनका साहित्य, उनका दृष्टिकोण और उनके अनुभव आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्त्रोत बनेंगे।
उनकी कविताएं और गीत, जैसे “तुम मेरे साथ”, “एक अकेला” और “मृत्यु…!!”, जीवन के हर अनुभव को अमर कर देते हैं। हर पाठक उनके शब्दों में अपनी अनुभूतियाँ पाता है। उनके व्यंग्य और लघुकथाएँ समाज की जटिलताओं को उजागर करती हैं और पाठक को अपने भीतर झांकने का अवसर देती हैं। उनकी रचनाएँ केवल शब्द नहीं, बल्कि जीवन की अनुभूति और संवेदनाओं का अद्भुत संगम हैं।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और उनके विचारों, साहित्य और सेवाओं को हम हमेशा याद रखें। उनका जीवन और उनका साहित्य हमें यह याद दिलाता रहेगा कि साहित्य केवल शब्द नहीं बल्कि जीवन का अनुभव है, संवेदना है और संस्कृति का प्रतीक है। उनके जाने से जो खालीपन उत्पन्न हुआ है, वह समय के साथ भर जाएगा, पर उनकी शिक्षाएं, उनका स्नेह और उनका साहित्य हमेशा हमारे बीच जीवित रहेगा।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-



