प्रकृति के प्रति समर्पण और शुद्धि का महापर्व छठ 25 अक्टूबर से चार दिन चलेगा

प्रकृति के प्रति समर्पण और शुद्धि का महापर्व छठ 25 अक्टूबर से चार दिन चलेगा

प्रेषित समय :19:10:02 PM / Fri, Oct 24th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा, जो केवल एक धार्मिक अनुष्ठान न होकर भारतीय संस्कृति की अनूठी पहचान, शुद्धि, सादगी और सामाजिक समरसता का जीता-जागता संदेश है, वह इस वर्ष 25 अक्टूबर 2025 से 28 अक्टूबर 2025 तक पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाएगा. यह महापर्व मूल रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रचलित रहा है, लेकिन अब इसकी पवित्रता और आध्यात्मिक गहराई के कारण यह देश के कोने-कोने में, यहाँ तक कि विदेशों में भी रहने वाले भारतीय समुदायों के बीच एक प्रमुख त्योहार बन चुका है. चित्रांश महापरिवार जैसे विभिन्न सामाजिक संगठन और समुदाय भी इस पर्व को अत्यंत निष्ठा और समर्पण के साथ मनाने की तैयारियों में जुट गए हैं.

इस चार दिवसीय पर्व का केंद्र बिंदु सूर्य देव हैं, जिन्हें प्रत्यक्ष देवता माना जाता है. सनातन धर्म में सूर्य ऊर्जा, स्वास्थ्य, जीवन शक्ति और कल्याण के प्रतीक हैं, और छठ पूजा के माध्यम से व्रती उस असीम शक्ति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जिनकी कृपा और प्रकाश से ही पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाता है. सूर्य के साथ-साथ, इस पर्व में छठी मैया की भी आराधना की जाती है, जिन्हें ब्रह्मा जी की मानस पुत्री या प्रकृति का छठा अंश माना जाता है. जनमानस में यह गहन आस्था है कि छठी मैया संतान की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं, यही कारण है कि यह कठोर व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति, उनके स्वास्थ्य और मंगल कामना के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है.

छठ पर्व की सबसे विशिष्ट पहचान इसकी अत्यधिक सादगी और अलौकिक पवित्रता है. यह आडंबर और दिखावे से दूर, प्रकृति के नजदीक, नदी या स्वच्छ जल स्रोतों के किनारे मनाया जाता है. व्रती और उनके परिवार पूजा में उपयोग होने वाली प्रत्येक वस्तु, प्रसाद और अनुष्ठान की शुद्धता और स्वच्छता सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. इस दौरान प्रसाद मुख्य रूप से पारंपरिक तरीके से गेहूँ, चावल और गुड़ जैसी प्राकृतिक सामग्रियों से तैयार किया जाता है, जिसमें सबसे प्रमुख और अनिवार्य व्यंजन ठेकुआ होता है. पूरे पर्व के दौरान पवित्रता का ऐसा वातावरण निर्मित होता है कि श्रद्धालुगण सहज ही एक गहन आध्यात्मिक अनुभव में डूब जाते हैं.

पर्व के अनुष्ठान कठोर होते हैं, जो व्रती के शारीरिक और मानसिक शुद्धि की पराकाष्ठा प्रदर्शित करते हैं. व्रत का सर्वाधिक कठिन चरण 36 घंटों का निर्जला व्रत होता है, जिसमें व्रती अन्न और जल की एक बूँद भी ग्रहण नहीं करते. यह तपस्या केवल शरीर को ही नहीं तपाती, बल्कि मन को भी मोह, माया और भौतिक इच्छाओं से मुक्त कर देती है, जिससे आत्मिक बल और संकल्प शक्ति का संचार होता है.

छठ पर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर 2025, शनिवार को नहाय-खाय के साथ होगी. इस दिन व्रती नदी या तालाब में स्नान कर स्वयं को शुद्ध करते हैं और केवल सात्विक भोजन (जैसे कद्दू-भात) ग्रहण करते हैं. 26 अक्टूबर 2025, रविवार को दूसरा दिन लोहंडा और खरना का होगा. इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को सूर्य अस्त होने के बाद गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसके बाद उनका 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है.

पर्व का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण दिन 27 अक्टूबर 2025, सोमवार को होता है, जिसे षष्ठी कहा जाता है, और इस दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन व्रती सजे-धजे बाँस के सूप और दौरा में फल, ठेकुआ और अन्य प्रसाद लेकर नदी या घाट पर जाते हैं, जहाँ वे जल में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं. यह क्रिया केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि इसका एक गहरा दार्शनिक महत्व है. डूबते सूर्य को अर्घ्य देना इस बात का प्रतीक है कि जीवन चक्र में हर उदय का एक अस्त निश्चित है, और हर गिरावट के बाद पुनः उत्थान होना तय है. यह मनुष्य को जीवन के सबसे कठिन समय में भी धैर्य, आशा और समय के चक्र के प्रति स्वीकार्यता की शिक्षा देता है. 27 अक्टूबर को संध्या अर्घ्य का समय सूर्यास्त 05:40 शाम को निर्धारित है.

अंतिम दिन 28 अक्टूबर 2025, मंगलवार को सप्तमी के दिन उषा अर्घ्य के साथ पर्व का समापन होता है. व्रती एक बार फिर घाट पर एकत्रित होते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं. उगते सूर्य को अर्घ्य देना एक नई शुरुआत, ऊर्जा के नव संचार और भविष्य के प्रति आशा का प्रतीक है. यह पर्व हमें कर्म, अनुशासन और समय के प्रति पाबंदी की भावना को भी सिखाता है. 28 अक्टूबर को सूर्योदय 06:30 सुबह होते ही उषा अर्घ्य दिया जाएगा, जिसके बाद व्रती व्रत का पारण (समापन) करेंगे.

छठ पर्व सामाजिक समरसता और सामुदायिक एकता को मजबूती प्रदान करने का अद्भुत मंच भी है. इस दौरान समाज में जात-पात, अमीर-गरीब का भेद मिट जाता है. सभी व्रती और श्रद्धालु बिना किसी भेदभाव के एक ही घाट पर एक साथ खड़े होकर पूजा करते हैं, प्रसाद बाँटते हैं और छठी मैया के पारंपरिक लोकगीत गाते हैं. नदी के घाटों की साफ-सफाई और सजावट में पूरा समुदाय मिलकर निस्वार्थ भाव से योगदान करता है, जो सामुदायिक जिम्मेदारी और सद्भाव का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है. छठ पूजा वास्तव में एक जीवन शैली है जो हमें प्रकृति से जुड़ना, स्वच्छता अपनाना, कठोर परिश्रम करना और सभी जीवों के प्रति दयालुता का भाव रखना सिखाती है. यह पर्व सदियों से हमारे प्राचीन मूल्यों, वैज्ञानिक तथ्यों (जैसे सुबह की धूप और विटामिन-डी का महत्व) और सांस्कृतिक जड़ों को थामे हुए है. यह हर वर्ष एक नई ऊर्जा, आशा और स्वास्थ्य का आशीर्वाद लेकर आता है, जिससे सामूहिक चेतना और आत्मिक बल का संचार होता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-