एशिया में बदलता ऊर्जा परिदृश्य: भारत, चीन और इंडोनेशिया में कोयले का युग ढलान पर, 2030 तक घट सकते उत्सर्जन

एशिया में बदलता ऊर्जा परिदृश्य: भारत, चीन और इंडोनेशिया में कोयले का युग ढलान पर, 2030 तक घट सकते उत्सर्जन

प्रेषित समय :19:05:59 PM / Tue, Oct 28th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

एशिया के तीन सबसे बड़े कोयला उपभोक्ता देश—भारत, चीन और इंडोनेशिया—अब उस मोड़ पर खड़े हैं जहाँ कोयले की सत्ता अपने अंत की ओर बढ़ रही है. एक नई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट ने संकेत दिया है कि अगर मौजूदा रफ्तार से इन देशों में स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में काम होता रहा, तो 2030 तक बिजली क्षेत्र से निकलने वाला कुल कार्बन उत्सर्जन घटने लगेगा. यह निष्कर्ष Centre for Research on Energy and Clean Air (CREA) की ताज़ा रिपोर्ट में सामने आया है, जिसके मुताबिक दुनिया के कुल कोयला उपयोग का लगभग 73 प्रतिशत हिस्सा इन तीन देशों से आता है. ऐसे में अगर यहाँ कोयले की खपत घटती है, तो इसका असर वैश्विक उत्सर्जन प्रवृत्तियों पर गहराई से पड़ेगा.

रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने बीते कुछ वर्षों में इतनी नई क्लीन बिजली क्षमता जोड़ ली है कि उसकी नई ऊर्जा मांग को पूरी तरह नॉन-कोल स्रोतों से पूरा किया जा सकता है. CREA के को-फाउंडर और लीड एनालिस्ट लॉरी माइलिविर्टा का कहना है कि चीन में कोयले का उपयोग 2024 से ही गिरना शुरू हो गया है. उन्होंने कहा, “अगर यही गति बनी रही, तो चीन में कोयले की खपत अपने चरम पर पहुँचकर अब घटाव की ओर बढ़ेगी.” विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने नवीकरणीय ऊर्जा को जिस स्तर पर प्राथमिकता दी है, उसने दुनिया को एक व्यावहारिक मॉडल दिखाया है कि तेज़ी से औद्योगिक विस्तार के बावजूद क्लीन एनर्जी संक्रमण संभव है.

भारत की स्थिति हालांकि थोड़ी अलग है. यहाँ बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है क्योंकि आबादी और अर्थव्यवस्था दोनों तेज़ी से बढ़ रही हैं. इसके बावजूद भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित 500 गीगावॉट नॉन-फॉसिल पावर कैपेसिटी के लक्ष्य का आधा हिस्सा पहले ही हासिल कर लिया है. यही कारण है कि विश्लेषकों को उम्मीद है कि अगर यह रफ्तार बरकरार रही, तो भारत में भी कोयले पर आधारित बिजली उत्पादन 2030 से पहले अपने शिखर पर पहुँचकर घटने लगेगा. CREA के विश्लेषक मनोज कुमार का कहना है, “भारत अगर मौजूदा गति से अपने लक्ष्यों पर कायम रहा, तो कोयले का इस्तेमाल दशक के अंत से पहले ही कम होने लगेगा. लेकिन इसके लिए ग्रिड की लचीलापन, स्टोरेज और ट्रांसमिशन नेटवर्क को मज़बूत बनाना ज़रूरी है.”

इंडोनेशिया भी इस दिशा में कदम बढ़ा रहा है. वहाँ के राष्ट्रपति प्रबोवो सुभियांतो ने 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किया है. CREA की एनालिस्ट कैथरीन हासन का कहना है कि अगर यह योजना समय पर लागू होती है, तो इंडोनेशिया में भी कोयले पर निर्भरता 2030 तक घटने लगेगी. हालांकि, इंडोनेशिया की मौजूदा ऊर्जा नीतियों में अभी भी कुछ वर्षों तक जीवाश्म ईंधनों की हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना है. रिपोर्ट का कहना है कि “असल चुनौती अब नीति नहीं, बल्कि क्रियान्वयन की है—जरूरत है कि नई ऊर्जा क्षमता में क्लीन एनर्जी को पूरी बढ़त मिले और निवेश उसी दिशा में केंद्रित रहे.”

रिपोर्ट में एक और महत्वपूर्ण चेतावनी दी गई है—कोयले से जुड़े हित समूहों (vested interests) के बढ़ते प्रभाव की. इसमें कहा गया है कि अगर इन देशों में नई कोयला परियोजनाओं को लगातार मंजूरी मिलती रही, तो यह समूह नीति-निर्माण पर प्रभाव डालकर ऊर्जा संक्रमण को धीमा कर सकते हैं. CREA का अनुमान है कि अगर भारत, चीन और इंडोनेशिया ने 2030 के बाद कोयले के उपयोग को तेज़ी से घटाया, तो कार्बन उत्सर्जन में जो कमी आएगी, वह भारत के 2019 के कुल उत्सर्जन के बराबर होगी. यह गिरावट वैश्विक डिकार्बोनाइजेशन एजेंडा के लिए निर्णायक साबित हो सकती है.

लॉरी माइलिविर्टा का कहना है, “2030 के बाद भी अगर रिन्यूएबल एनर्जी की ग्रोथ दर बनी रही, तो बिजली क्षेत्र में उत्सर्जन की यह कमी ऐतिहासिक होगी. लेकिन अगर गति धीमी हुई, तो यह अवसर हाथ से निकल सकता है.” रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि केवल क्षमता निर्माण ही पर्याप्त नहीं है; सफल ऊर्जा संक्रमण के लिए मजबूत वितरण नेटवर्क, स्टोरेज व्यवस्था और डिस्कॉम सुधार बेहद अहम होंगे.

भारत के लिए यह रिपोर्ट एक स्पष्ट संदेश छोड़ती है—ऊर्जा संक्रमण अब ‘कब’ का नहीं, बल्कि ‘कैसे’ का सवाल है. देश के पास आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रिन्यूएबल पोटेंशियल है. सौर और पवन ऊर्जा दोनों की रफ्तार तेज़ है और 500 गीगावॉट का लक्ष्य अब कागज़ से निकलकर धरातल पर उतरता दिख रहा है. परंतु अगर ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर और ऊर्जा भंडारण प्रणाली को समानांतर रूप से मज़बूत नहीं किया गया, तो यह बदलाव अधूरा रह जाएगा.

रिपोर्ट के निष्कर्ष इस बात की ओर इशारा करते हैं कि एशिया अब केवल “कोयले का केंद्र” नहीं रहा. भारत, चीन और इंडोनेशिया की ये नीतिगत पहलें दिखाती हैं कि यही क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों का केंद्र भी बन सकता है. अगले पाँच वर्षों में अगर इन देशों ने अपनी ऊर्जा नीतियों में स्वच्छ ऊर्जा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, तो दुनिया की हवा को साफ़ करने की शुरुआत यहीं से होगी—और यह बदलाव सिर्फ़ इन देशों की सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरी मानवता के भविष्य को प्रभावित करेगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-