रसोई में शुरू हुआ ऊर्जा बदलाव बिजली से खाना पकाना अब गैस से सस्ता और टिकाऊ विकल्प

रसोई में शुरू हुआ ऊर्जा बदलाव बिजली से खाना पकाना अब गैस से सस्ता और टिकाऊ विकल्प

प्रेषित समय :19:08:39 PM / Tue, Oct 28th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

भारत में ऊर्जा संक्रमण अब सिर्फ़ बिजलीघरों या वाहनों तक सीमित नहीं रहा — यह रसोई तक पहुँच चुका है। Institute for Energy Economics and Financial Analysis (IEEFA) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, बिजली से खाना पकाना (ई-कुकिंग) न केवल स्वच्छ और सुविधाजनक है, बल्कि यह एलपीजी और पीएनजी की तुलना में सस्ता भी साबित हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में ई-कुकिंग का खर्च एलपीजी से 37 प्रतिशत और पीएनजी से 14 प्रतिशत कम है।

IEEFA की एनर्जी स्पेशलिस्ट पर्वा जैन द्वारा तैयार रिपोर्ट “Electric Cooking in India: 37% Cheaper Than LPG, 14% Cheaper Than PNG – Policy Action Can Scale Adoption” बताती है कि बिजली से खाना पकाना अब एक व्यावहारिक आर्थिक विकल्प बन गया है। यह रसोई के साथ-साथ भारत की ऊर्जा नीति में भी एक बड़ा बदलाव संकेतित करता है।

पिछले छह वर्षों में भारत का एलपीजी और एलएनजी आयात बिल 50 प्रतिशत बढ़ चुका है, जिससे घरेलू रसोई के खर्च पर सीधा असर पड़ा है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि चार लोगों के एक सामान्य परिवार के लिए पीएनजी से खाना पकाने का सालाना खर्च लगभग ₹6,657 (लगभग $76) है, जबकि बिना सब्सिडी वाले एलपीजी सिलिंडर का खर्च ₹6,424 (लगभग $73) बैठता है। पर्वा जैन कहती हैं, “अगर एलपीजी पर दी जाने वाली सब्सिडी हटा दी जाए, तो ई-कुकिंग सबसे सस्ता और व्यवहारिक विकल्प बन जाता है। यह न सिर्फ़ शहरी, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी ऊर्जा सुरक्षा को नई दिशा दे सकता है।”

रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि भारत में एलपीजी कनेक्शन लगभग सार्वभौमिक हो चुका है, लेकिन इसके उपयोग में गिरावट आई है। लगातार बढ़ती कीमतें, आयात पर निर्भरता और गरीब परिवारों की घटती क्रय-शक्ति के कारण लगभग 40 प्रतिशत भारतीय परिवार अब भी ठोस ईंधनों—जैसे लकड़ी, कोयला या गोबर—का इस्तेमाल करते हैं। यह स्थिति न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि पर्यावरण और महिलाओं की उत्पादकता पर भी गंभीर प्रभाव डालती है।

ई-कुकिंग इन सभी समस्याओं का एक साथ समाधान प्रस्तुत करती है। बिजली से चलने वाले कुकिंग उपकरण न केवल घर के भीतर प्रदूषण (indoor air pollution) को घटाते हैं, बल्कि ऊर्जा दक्षता भी बढ़ाते हैं और आयात पर निर्भरता कम करते हैं। रिपोर्ट का कहना है कि यह भारत के नेट ज़ीरो 2070 लक्ष्य के अनुरूप एक सस्ता, साफ़ और स्केलेबल समाधान है।

हालाँकि, 100 प्रतिशत विद्युतीकरण के बावजूद ई-कुकिंग का प्रसार अभी भी सीमित है। रिपोर्ट चार प्रमुख बाधाएँ गिनाती है—उपकरणों की ऊँची शुरुआती लागत, सीमित विकल्प, बिजली आपूर्ति पर भरोसे की कमी और जागरूकता की कमी। कई परिवार अब भी इंडक्शन या इलेक्ट्रिक कुकर को महंगा मानते हैं, और बहुत से उपभोक्ताओं को यह जानकारी ही नहीं है कि बिजली से खाना पकाना वास्तव में सस्ता और अधिक कुशल है।

IEEFA ने इस परिवर्तन को गति देने के लिए सरकार और नीति-निर्माताओं को पाँच ठोस सुझाव दिए हैं। पहला, ई-कुकिंग उपकरणों पर टैक्स में छूट और सब्सिडी देकर शुरुआती लागत घटाई जाए। दूसरा, जहाँ बिजली आपूर्ति विश्वसनीय है, वहाँ शहरी पायलट प्रोजेक्ट्स के ज़रिए ई-कुकिंग को बढ़ावा दिया जाए। तीसरा, उपभोक्ताओं के बीच व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जाए ताकि लोग इसके आर्थिक और स्वास्थ्य लाभ समझ सकें। चौथा, घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन दिया जाए ताकि उपकरण सस्ते और स्थानीय स्तर पर आसानी से उपलब्ध हों। और पाँचवाँ, राज्य स्तर पर नीति तालमेल स्थापित किया जाए ताकि बिजली वितरण कंपनियाँ, शहरी विकास विभाग और महिला कल्याण मंत्रालय मिलकर इस दिशा में काम कर सकें।

रिपोर्ट का सबसे अहम संदेश यह है कि ई-कुकिंग सिर्फ़ कुकिंग नहीं, बल्कि एक एनर्जी ट्रांज़िशन है। पर्वा जैन कहती हैं, “अगर भारत ई-कुकिंग को गंभीरता से अपनाए, तो यह स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में एक निर्णायक कदम होगा—जो महिलाओं के स्वास्थ्य, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु लक्ष्यों, तीनों को एक साथ आगे बढ़ाएगा।”

IEEFA का सुझाव है कि सरकार अगर एलपीजी सब्सिडी का एक हिस्सा ई-कुकिंग उपकरणों पर स्थानांतरित करे, तो इससे न केवल बजट का बेहतर उपयोग होगा, बल्कि शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में ऊर्जा संरचना बदल सकती है। यह कदम धीरे-धीरे रसोई को डिकार्बनाइज़ करने में अहम भूमिका निभा सकता है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि भारत के पास अब क्लीन कुकिंग का सस्ता, टिकाऊ और उपलब्ध विकल्प मौजूद है। अब ज़रूरत केवल नीति-सम्मत कदमों की है, जो इस बदलाव को रसोई की आग से लेकर राष्ट्रीय ऊर्जा रणनीति तक जोड़ सके। भविष्य की भारतीय रसोई में चूल्हा, सिलिंडर और धुएँ की जगह बिजली, दक्षता और स्वच्छ हवा ले रही है — और यही बदलाव भारत के ऊर्जा संक्रमण की नई पहचान बन सकता है।

(स्रोत: Institute for Energy Economics and Financial Analysis, “Electric Cooking in India: 37% Cheaper Than LPG, 14% Cheaper Than PNG”, 27 अक्टूबर 2025)

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-