2032 के बाद नए कोयला बिजलीघर होंगे घाटे का सौदा, अक्षय ऊर्जा भारत के लिए विश्वसनीय और सस्ता विकल्प

2032 के बाद नए कोयला बिजलीघर होंगे घाटे का सौदा, अक्षय ऊर्जा भारत के लिए विश्वसनीय और सस्ता विकल्प

प्रेषित समय :18:18:49 PM / Wed, Oct 29th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. भारत के बिजली क्षेत्र में एक निर्णायक मोड़ आ गया है. एक नई और महत्वपूर्ण रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि 2032 के बाद अगर देश ने अतिरिक्त कोयला बिजली परियोजनाएँ (थर्मल पावर प्रोजेक्ट) स्थापित कीं, तो वे “घाटे का सौदा” साबित होंगी. इस रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि मौजूदा सरकारी योजनाओं के सफलतापूर्वक पूरा होने पर, देश की भविष्य की ऊर्जा ज़रूरतें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और बैटरी स्टोरेज के संयोजन से पूरी की जा सकती हैं, और इस प्रकार कोयले की आवश्यकता नगण्य हो जाएगी.

ऊर्जा थिंक-टैंक एम्बर (Ember) द्वारा जारी की गई यह रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है "Coal’s Diminishing Role in India’s Electricity Transition" (भारत के बिजली परिवर्तन में कोयले की घटती भूमिका), भारत के ऊर्जा परिदृश्य के लिए स्पष्ट दिशा निर्धारित करती है.

रिपोर्ट में ज़ोर देकर कहा गया है कि अब ऊर्जा के लिए कोयले पर निर्भर रहने के बजाय, दूरदर्शिता और समझदारी की ज़रूरत है. यदि भारत सरकार अपने महत्वाकांक्षी नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान (NEP) 2032 के तहत निर्धारित सौर, पवन और स्टोरेज के लक्ष्यों को समय पर और पूरी तरह से हासिल कर लेता है, तो नई कोयला क्षमता जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी. यह अनावश्यकता न केवल पीक डिमांड (उच्चतम माँग) को पूरा करने के संदर्भ में सही है, बल्कि विश्वसनीय (भरोसेमंद) बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिहाज़ से भी लागू होती है.

एम्बर के सीनियर एनर्जी एनालिस्ट, नेशविन रोड्रिग्स के अनुसार, "भारत का पावर सेक्टर अब एक अपरिहार्य और नए ट्रांज़िशन के दौर में है. जैसे-जैसे सौर ऊर्जा उत्पादन और बैटरी स्टोरेज की लागत लगातार गिर रही है, बिजली उत्पादन के मिश्रण में कोयले की भूमिका स्वाभाविक रूप से घट रही है. मौजूदा राष्ट्रीय योजना से अधिक कोयला क्षमता का निर्माण अब न तो तकनीकी रूप से ज़रूरी है और न ही आर्थिक रूप से समझदारी भरा."

रिपोर्ट में 2031-32 के वित्तीय वर्ष के लिए एक 'लीस्ट-कॉस्ट ऑपरेशंस मॉडल' (least-cost operations model) का उपयोग करते हुए विस्तृत आकलन किया गया है. यह आकलन गंभीर रूप से आगाह करता है कि यदि भारत अपने अक्षय ऊर्जा (रिन्यूएबल) और स्टोरेज लक्ष्यों को सफलतापूर्वक हासिल कर लेता है, तो इसका सीधा असर भविष्य में स्थापित होने वाली कोयला यूनिट्स के उपयोग पर पड़ेगा. अनुमान है कि 2024-25 में जो नई कोयला यूनिट्स बनेंगी, उनमें से करीब 10% यूनिट्स 2032 तक पूरी तरह से बेकार (Unutilised) खड़ी रहेंगी, यानी उनसे बिजली नहीं खरीदी जाएगी. इसके अलावा, लगभग 25% यूनिट्स को अपनी आधी क्षमता पर ही काम करना पड़ेगा.

इस स्थिति का मुख्य कारण कोयला बिजलीघरों के प्लांट लोड फैक्टर (PLF) में होने वाली तीव्र गिरावट है. रिपोर्ट के मुताबिक, यह पीएलएफ, जो 2024-25 में लगभग 69% था, वह घटकर 2031-32 तक केवल 55% रह जाएगा. कम उपयोग का सीधा अर्थ है प्रति यूनिट बिजली की ज़्यादा लागत. रिपोर्ट का विश्लेषण बताता है कि 2032 तक कोयले से मिलने वाली बिजली की लागत में 25% की बढ़ोतरी हो सकती है, क्योंकि कम उत्पादन के बावजूद प्लांट की फिक्स्ड कॉस्ट (निश्चित लागत) और अक्षम संचालन (Inefficiency) का बोझ प्रति यूनिट बिजली पर बढ़ जाएगा.

एम्बर की रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि 'क्लीन' बिजली अब विश्वसनीय और सस्ती, दोनों ही है. 'फर्म एंड डिस्पैचेबल रिन्यूएबल एनर्जी' (FDRE), जिसका अर्थ है सौर या पवन ऊर्जा को बैटरी स्टोरेज के साथ जोड़ना, भारत में बिजली का सबसे भरोसेमंद और लचीला (Flexible) विकल्प बनकर उभरा है. वर्तमान में, FDRE प्रोजेक्ट्स के टैरिफ (दरें) ₹4.3 से ₹5.8 प्रति यूनिट के बीच हैं, और ये परियोजनाएँ लगातार 24x7 उपलब्धता के कठिन मानकों को भी पूरा कर रही हैं.

एम्बर के चीफ एनालिस्ट, डेव जोन्स का कहना है कि "भारत की बैटरी तकनीक बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है. नई सोडियम-आयन बैटरियाँ अब महत्वपूर्ण खनिजों (Critical Minerals) के बिना बन रही हैं, और इनकी उम्र कई दशकों तक चलती है. जिस तरह भारत सौर विनिर्माण (Solar Manufacturing) में आत्मनिर्भर बना, वैसा ही बैटरी विनिर्माण में भी बन सकता है." उनका मानना है कि भारत अब 'सोलर + बैटरी' के शक्तिशाली संयोजन से देश को "365 दिन बिजली" देने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है.

रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि आज की तारीख़ में भी कोयला बिजली सस्ती नहीं रह गई है. हाल के टैरिफ, यहाँ तक कि कोयला खदानों के करीब स्थित राज्यों में भी, बिहार में ₹6 प्रति यूनिट और मध्य प्रदेश में ₹5.85 प्रति यूनिट तक पहुँच चुके हैं. इनमें से ₹4 प्रति यूनिट से अधिक का हिस्सा केवल फिक्स्ड कॉस्ट का है, जिसका मतलब है कि प्लांट चले या न चले, यह बड़ी रकम देनी ही पड़ती है. रिपोर्ट का आकलन है कि अगर PLF गिरकर 55% तक पहुँच गया, तो ₹6 प्रति यूनिट की कोयला बिजली की असल लागत बढ़कर ₹7.25 प्रति यूनिट तक पहुँच जाएगी.

यह बढ़ती लागत बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) पर भारी आर्थिक बोझ डालेगी, और कई कोयला प्लांट "स्ट्रैंडेड एसेट्स" (Stranded Assets) बन जाएँगे, यानी वे संपत्तियाँ जिन पर कर्ज़ तो चुकाना जारी है, लेकिन जिनसे बिजली नहीं खरीदी जा रही, जिससे अंततः यह बोझ उपभोक्ताओं और करदाताओं पर पड़ेगा.

एम्बर के एशिया एनालिस्ट, दत्तात्रेय दास ने जोर दिया, "भारत अतीत में भी कोयले की ज़रूरत से ज़्यादा क्षमता बनाकर बड़े आर्थिक नुकसान उठा चुका है. अब जब पूरी ऊर्जा प्रणाली बदलाव के शिखर पर है, वही पुरानी गलती दोहराना भारी पड़ेगा. रिन्यूएबल और स्टोरेज अब भारत के लिए सबसे समझदार और कम जोखिम वाला निवेश है."

रिपोर्ट में भारत सरकार और नीति निर्माताओं के लिए तीन स्पष्ट और महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं:

बैटरी स्टोरेज प्रोजेक्ट्स को अभूतपूर्व तेज़ी से लागू करना.

पुराने थर्मल प्लांट्स को लचीला (Flexible) बनाने के लिए रेट्रोफिट (तकनीकी सुधार) करना.

ग्रिड और रिज़र्व सिस्टम को मज़बूत करना, ताकि सौर और पवन ऊर्जा को ग्रिड में बिना किसी बाधा के बेहतर तरीके से जोड़ा जा सके.

भारत की ऊर्जा कहानी अब निर्णायक रूप से बदल रही है. एक दशक पहले तक सवाल यह था कि क्या रिन्यूएबल एनर्जी विश्वसनीय हो सकती है? अब सवाल बदल गया है: जब अक्षय ऊर्जा विश्वसनीय और सस्ती दोनों है, तो महंगे और प्रदूषणकारी कोयले पर क्यों टिके रहें? 2032 तक भारत के पास इतनी क्लीन और किफायती बिजली क्षमता होगी कि कोयला केवल एक "बैकअप" या सहायक भूमिका में रह जाएगा. इसलिए, आज भी नई कोयला परियोजनाओं को मंज़ूरी देना, आने वाले दशक में देश के लिए घाटे, आर्थिक बोझ और प्रदूषण तीनों का कारण बनेगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-