नई दिल्ली. जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संकट के इस दौर में, जब ज़मीन पर कई पारंपरिक ऊर्जा परियोजनाएं सुस्त पड़ रही हैं, एक नई उम्मीद की हवा अब समंदर से उठ रही है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा विश्लेषण संगठन Ember और Global Offshore Wind Alliance (GOWA) की नई संयुक्त रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि दुनिया की ऑफशोर विंड पावर यानी समुद्र में पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता 2030 तक तीन गुना बढ़ने की राह पर है. यह अनुमान ऐसे समय में सामने आया है जब अमेरिका में नीति-स्तर पर अनिश्चितताओं ने इस क्षेत्र की रफ़्तार पर कुछ असर डाला है, लेकिन वैश्विक स्तर पर इसकी प्रगति अब भी तेज़ बनी हुई है.
रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में दुनिया के 27 देशों, 27 राज्यों और तीन क्षेत्रों ने ऑफशोर विंड क्षमता को लेकर ठोस लक्ष्य तय किए हैं. इन सभी का सम्मिलित लक्ष्य 2030 तक 263 गीगावाट (GW) तक पहुँचने का है. विशेष बात यह है कि इसमें चीन का हालिया लक्ष्य अभी शामिल नहीं है. यूरोप इस क्षेत्र में अब भी अग्रणी है, जहाँ 15 देशों ने मिलकर 99 GW के ऑफशोर विंड टारगेट निर्धारित किए हैं. एशिया भी अब पीछे नहीं है. भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और वियतनाम जैसे देशों ने इस दिशा में महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ बनाई हैं. भारत ने 2030 तक 30 से 37 GW, जापान ने 41 GW (जिसमें 15 GW फ्लोटिंग ऑफशोर विंड शामिल है) और अन्य एशियाई देशों ने मिलकर 41 GW के लक्ष्य तय किए हैं.
चीन इस दौड़ में सबसे आगे निकलता दिख रहा है. 20 अक्टूबर को बीजिंग डिक्लेरेशन 2.0 के तहत चीन ने घोषणा की कि 2026 से 2030 के बीच हर साल कम से कम 15 GW नई ऑफशोर विंड क्षमता जोड़ी जाएगी. यह गति 2021 से 2025 के दौरान की तुलना में लगभग दोगुनी है, जब औसतन 8 GW प्रति वर्ष क्षमता जोड़ी जा रही थी. चीन के 11 तटीय प्रांत पहले ही 2025 तक 64 GW के लक्ष्य तय कर चुके हैं, जो दर्शाता है कि एशिया अब इस क्षेत्र का नया केंद्र बन रहा है.
वहीं अमेरिका की स्थिति कुछ जटिल बनी हुई है. रिपोर्ट बताती है कि हाल की नीतिगत अनिश्चितताओं और वित्तीय चुनौतियों के कारण वहाँ की ऑफशोर विंड परियोजनाओं की रफ़्तार में थोड़ी सुस्ती आई है. बावजूद इसके, अमेरिका ने 2030 तक 30 GW का राष्ट्रीय लक्ष्य बरकरार रखा है. देश के 11 राज्यों ने संयुक्त रूप से 84 GW के लक्ष्य तय किए हैं और 2025 से 2029 के बीच 5.8 GW नई क्षमता जुड़ने की उम्मीद है. यानि कि जहाँ राष्ट्रीय स्तर पर नीति असमंजस में है, वहीं राज्य-स्तर पर उत्साह और गति कायम है.
Ember के चीफ़ एनालिस्ट डेव जोन्स ने इस रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा, “ऑफशोर विंड पहले ही दुनिया भर में 83 GW बिजली दे रही है, जो 7 करोड़ से अधिक घरों को रोशन करने के बराबर है. जो देश अब भी सोच रहे हैं कि क्या लक्ष्य बढ़ाया जाए या नहीं — उनके लिए संदेश साफ़ है: यही सही समय है, जब नई विकास लहर को पकड़ा जा सकता है.” उनका यह बयान इस बात का संकेत है कि ऑफशोर विंड अब किसी प्रयोगात्मक तकनीक के रूप में नहीं, बल्कि मुख्यधारा की स्वच्छ ऊर्जा रणनीति के रूप में देखी जा रही है.
Global Offshore Wind Alliance (GOWA) की हेड ऑफ सेक्रेटेरिएट अमीशा पटेल ने कहा, “हाल की चुनौतियों के बावजूद ऑफशोर विंड एनर्जी के बुनियादी आधार बेहद मज़बूत हैं. यह तकनीक अब सिद्ध हो चुकी है और वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के लिए अनिवार्य बन चुकी है. हमें उम्मीद है कि COP30 की ब्राज़ील प्रेसीडेंसी अब महत्वाकांक्षा से आगे बढ़कर इसे लागू करने की दिशा में ठोस कदम उठाएगी.”
रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि ऑफशोर विंड उद्योग न केवल ऊर्जा परिवर्तन में अहम भूमिका निभा रहा है, बल्कि यह रोजगार सृजन और समुद्री अर्थव्यवस्था के विकास का भी बड़ा माध्यम बन रहा है. तटीय इलाकों में स्थापित होने वाली इन परियोजनाओं से नौवहन, विनिर्माण और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में नई नौकरियाँ उत्पन्न हो रही हैं. यूरोप और एशिया में कई तटीय राज्यों ने ऑफशोर विंड से जुड़े औद्योगिक क्लस्टर विकसित करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है, जिससे भविष्य में समुद्री उद्योगों की संरचना ही बदल सकती है.
भारत के लिए यह रिपोर्ट विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जा रही है. भारत सरकार पहले ही गुजरात और तमिलनाडु तटों पर ऑफशोर विंड परियोजनाओं की प्रारंभिक योजनाएँ तैयार कर चुकी है. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि नीति समर्थन, निवेश वातावरण और तकनीकी साझेदारी मज़बूत की जाए तो भारत इस क्षेत्र में एशिया का अगला बड़ा केंद्र बन सकता है. देश के पास लंबा समुद्री तट है, जहाँ हवा की गति और दिशा ऑफशोर विंड उत्पादन के लिए आदर्श मानी जाती है. यदि यह योजना समय पर लागू हुई, तो यह न केवल भारत के 2070 तक नेट-ज़ीरो लक्ष्य में सहायक होगी, बल्कि देश को हरित रोजगार और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भी आगे बढ़ाएगी.
दुनिया भर में बढ़ते जलवायु संकट के बीच ऑफशोर विंड की यह प्रगति एक नई दिशा का संकेत देती है. जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ाने की वैश्विक कोशिशों में यह तकनीक निर्णायक भूमिका निभा सकती है. समुद्रों के ऊपर स्थापित विशाल टर्बाइन न केवल सतत बिजली उत्पादन सुनिश्चित करती हैं, बल्कि भूमि के सीमित संसाधनों पर पड़ने वाला दबाव भी कम करती हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि 2030 तक यह उद्योग वैश्विक ऊर्जा मिश्रण में एक मजबूत हिस्सेदारी हासिल कर लेगा.
Ember की रिपोर्ट यह भी बताती है कि दुनिया के लगभग सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ — यूरोप, चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया — अब ऑफशोर विंड को अपनी राष्ट्रीय ऊर्जा नीतियों में प्राथमिकता दे रही हैं. कुछ देशों ने फ्लोटिंग विंड फार्म्स पर भी काम शुरू कर दिया है, जो गहरे समुद्री इलाकों में भी टर्बाइन लगाने की सुविधा देंगे. इससे यह संभावना बनती है कि भविष्य में समुद्र के उन हिस्सों से भी ऊर्जा उत्पादन संभव होगा, जो पहले अप्रयुक्त माने जाते थे.
जलवायु विशेषज्ञों का मानना है कि यह रुझान केवल तकनीकी विकास का प्रतीक नहीं, बल्कि यह मानवता के अनुकूलन की नई कहानी है. जैसे-जैसे धरती पर आबादी और ऊर्जा की मांग बढ़ रही है, मनुष्य अब समंदर की ताक़त से नई ऊर्जा क्रांति का रास्ता खोज रहा है. 2030 की दुनिया शायद कुछ अलग दिखे — जहाँ तटों के किनारे सिर्फ़ लहरें नहीं, बल्कि ऊँचे टर्बाइन हवा के संग घूमते हुए लाखों घरों को बिजली देंगे.
इस कहानी का सार यही है कि जब धरती सीमित हो जाती है, तो इंसान समंदर से उम्मीद तलाशता है. ऑफशोर विंड अब केवल एक ऊर्जा तकनीक नहीं रही, बल्कि यह भरोसे का प्रतीक बन चुकी है — भरोसा इस बात का कि जलवायु संकट के बीच भी मानवता टिके रहने की राह ढूँढ सकती है. समंदर से उठी यह हवा अब सिर्फ़ लहरों को नहीं, बल्कि भविष्य की रोशनी को भी दिशा दे रही है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

