31 अक्टूबर 2025, दिन शुक्रवार — यह दिन हिंदू धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत शुभ और पावन माना जा रहा है। आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि है, जिसे शास्त्रों में भगवान श्रीकृष्ण के विजयोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। इसी तिथि पर व्रजधाम में भगवान श्रीकृष्ण और इंद्रदेव के बीच शक्ति प्रदर्शन का प्रसिद्ध प्रसंग हुआ था, जब देवराज इंद्र ने अहंकारवश व्रजवासियों को दंड देने के लिए प्रलयंकारी वर्षा आरंभ की थी। किंतु श्रीकृष्ण ने गिरिराज गोवर्धन को अपनी करंगुली पर उठा लिया और व्रजवासियों को उस विनाशकारी वर्षा से बचाया। इस विजय के बाद से ही दशमी तिथि को श्रीकृष्ण के विजयोत्सव के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है।
आज का शुक्रवार न केवल भगवान श्रीकृष्ण की विजय का प्रतीक है, बल्कि यह मां लक्ष्मी की उपासना के लिए भी सर्वोत्तम दिन माना जाता है। देवी लक्ष्मी के भक्तों के लिए शुक्रवार को विशेष पूजन-विधान करने का निर्देश दिया गया है। इस दिन प्रातः स्नानादि के बाद दक्षिणावर्ती शंख से भगवान विष्णु पर जल चढ़ाना अत्यंत शुभ माना गया है। इसके उपरांत पीले चंदन या केसर से भगवान विष्णु को तिलक लगाने से मां लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं और घर में सुख, समृद्धि तथा धन की वृद्धि होती है।
धार्मिक मान्यता है कि शुक्रवार के दिन यदि कोई व्यक्ति मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए “श्री सूक्त”, “महालक्ष्मी अष्टकम” और संकटों को दूर करने के लिए “मां दुर्गा के 32 चमत्कारी नामों का पाठ” करता है, तो उसके जीवन के समस्त विघ्न दूर हो जाते हैं और उसे धन-संपत्ति, वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। इस दिन मां लक्ष्मी को हलवा या खीर का भोग लगाना शुभ माना गया है, क्योंकि यह देवी को अत्यंत प्रिय माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार शुक्रवार का दिन शुक्र ग्रह की आराधना के लिए भी उपयुक्त माना गया है। शुक्र ग्रह को प्रेम, सौंदर्य, भौतिक सुख-संपन्नता और वैवाहिक आनंद का कारक ग्रह माना गया है। जो व्यक्ति इस दिन विधिवत शुक्र ग्रह की पूजा करते हैं, उनके जीवन में सुख, समृद्धि और वैवाहिक सौहार्द बना रहता है। इस उपाय से व्यक्ति को विदेश यात्रा, बड़े भवन, वाहन और भौतिक सुखों की प्राप्ति के योग भी बनते हैं।
इस दिन दिशा-शास्त्र के अनुसार दिशाशूल पश्चिम दिशा में रहता है। अतः जो लोग शुक्रवार के दिन किसी कारणवश पश्चिम दिशा की ओर यात्रा करने जा रहे हैं, उन्हें घर से निकलने से पूर्व दही में चीनी या मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिए। ऐसा करने से यात्रा में आने वाली बाधाएँ समाप्त होती हैं और सफलता के योग बनते हैं।
धार्मिक दृष्टि से आज का दिन अत्यंत मंगलकारी है — एक ओर यह श्रीकृष्ण की विजय का प्रतीक है, तो दूसरी ओर मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ अवसर। भक्तजन इस दिन विष्णु-लक्ष्मी की संयुक्त आराधना करें, “ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ” मंत्र का जप करें, दीपदान करें और मीठा भोग अर्पित करें।
ऐसा करने से न केवल आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है, बल्कि जीवन से नकारात्मकता और क्लेश दूर होते हैं। कहा गया है कि जो व्यक्ति आज के दिन श्रद्धा और भक्ति से भगवान श्रीकृष्ण के विजयोत्सव का उत्सव मनाता है और मां लक्ष्मी की आराधना करता है, उसके जीवन में सुख, सौभाग्य और स्थायी समृद्धि का वास होता है।
इस प्रकार, शुक्रवार 31 अक्टूबर 2025 का दिन भक्तों के लिए आध्यात्मिक उत्थान, धनलाभ और विजय का अद्भुत संयोग लेकर आया है — श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से जीवन में विजय प्राप्त हो और मां लक्ष्मी की कृपा से हर घर में समृद्धि का दीप प्रज्वलित हो, यही इस पावन तिथि का संदेश है।
दशमी तिथि पर दीपदान से टलती अकाल मृत्यु
हिंदू पंचांग में दशमी तिथि का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि के अधिष्ठाता देवता स्वयं यमराज हैं, जिन्हें न्याय के देवता और दक्षिण दिशा के स्वामी कहा गया है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि दशमी तिथि के दिन यमराज की विधि-विधान से पूजा करने और क्षमा-याचना करने से व्यक्ति अपने जीवन के अनेक पापों से मुक्त हो जाता है तथा उसे मृत्यु और परलोक के भय से भी मुक्ति प्राप्त होती है।
दशमी तिथि पर यमराज की आराधना के साथ घर के बाहर दीपदान करने की परंपरा भी बताई गई है। मान्यता है कि इस दिन यम के निमित्त दीपदान करने से अकाल मृत्यु का योग टल जाता है और व्यक्ति को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह दीपदान न केवल यमराज को समर्पित माना जाता है, बल्कि यह मृत्यु और अंधकार पर प्रकाश और जीवन की विजय का प्रतीक भी है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, दशमी तिथि पर यमराज की पूजा के पश्चात क्षमा याचना अवश्य करनी चाहिए। यह क्षमायाचना आत्मशुद्धि और आत्मबल का प्रतीक होती है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन यमराज से अपने कर्मों के लिए क्षमा मांगता है, उसे नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है और जीवन के सभी संकट धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं।
दशमी तिथि केवल पूजा-पाठ के दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति साहसी, धर्मपरायण, और राष्ट्र के प्रति समर्पित माने जाते हैं। वे अपने जीवन में न्याय और सच्चाई को सर्वोपरि रखते हैं। उनमें सेवा, त्याग और परोपकार की भावना प्रबल होती है।
कहा गया है कि दशमी तिथि में जन्मे लोग धर्म-अधर्म का अंतर भली-भांति समझते हैं, और जीवन के हर मोड़ पर सदाचार के मार्ग को ही चुनते हैं। वे समाज में न्याय और सद्भावना स्थापित करने का प्रयास करते हैं तथा देशहित के कार्यों में सदैव अग्रणी रहते हैं। इनकी सोच स्पष्ट, कर्मनिष्ठा दृढ़ और संकल्प शक्ति अटूट होती है।
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि दशमी तिथि में किया गया दान, पूजन, और तपस्या अन्य तिथियों की अपेक्षा अधिक फलदायी होती है। विशेष रूप से इस दिन यमराज के नाम का दीप जलाना, तिल का दान करना, या किसी जरूरतमंद की सहायता करना शुभ माना गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दशमी तिथि का संबंध धर्मराज यम से होने के कारण यह तिथि जीवन-मृत्यु के संतुलन का प्रतीक है। इस दिन व्यक्ति यदि अपने कर्मों पर आत्मचिंतन करे और शुभ कर्मों का संकल्प ले, तो उसके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
अतः यह तिथि केवल धार्मिक कर्मकांड का दिन नहीं, बल्कि आत्मावलोकन और जीवन के उद्देश्य को समझने का भी अवसर है। दशमी तिथि पर यमराज की उपासना, दीपदान और क्षमायाचना के साथ किया गया एक छोटा-सा श्रद्धाभाव का कार्य भी व्यक्ति के जीवन को शांति, स्थिरता और दीर्घायु प्रदान करने में सहायक माना गया है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

