सनातन धर्म में विशेष महत्व रखने वाली कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि, जिसे बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है, इस वर्ष 4 नवंबर 2025 को पड़ रही है। यह पावन दिन न केवल भगवान विष्णु और भगवान शिव की संयुक्त आराधना के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि देवी पुराण के एक विशेष विधान के कारण सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत शुभ माना जा रहा है। ज्योतिष और धर्म विशेषज्ञों के अनुसार, इस दिन जौ के आटे की रोटी बनाकर माता पार्वती को भोग लगाने और उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने से घर में संपत्ति और खुशहाली निरंतर बढ़ती जाती है।
बैकुंठ चतुर्दशी का धार्मिक महत्व
वैकुंठ चतुर्दशी को हरि (विष्णु) और हर (शिव) के मिलन का दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा के बाद जागते हैं, और वे सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंपते हैं। इसलिए इस दिन शिव और विष्णु, दोनों की पूजा का विधान है। हालांकि, देवीपुराण इस दिन को देवी पार्वती की आराधना से जोड़कर एक विशेष उपाय सुझाता है, जो भौतिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है।
देवी पुराण का विशेष विधान: जौ की रोटी का भोग
देवी पुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन जौ के आटे की रोटी बनाकर माता पार्वती को भोग लगाना चाहिए। यह भोग लगाकर, उस रोटी को परिवार के सभी सदस्यों द्वारा प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस विधान का पालन करता है, उसके घर में सुख और संपत्ति में लगातार वृद्धि होती जाती है। यह विधान दर्शाता है कि भारतीय धर्मशास्त्र में केवल पूजा-पाठ ही नहीं, बल्कि सात्विक आहार और प्रकृति से जुड़े तत्वों को भी आध्यात्मिक उत्थान का माध्यम माना गया है।
भोग लगाते समय विशेष मंत्र जाप
माता पार्वती को जौ की रोटी का भोग लगाते समय विशेष मंत्रों का उच्चारण करना फलदायक माना गया है। धर्म विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि भोग लगाते समय भक्तों को इन मंत्रों का जाप करना चाहिए:
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ॐ पार्वत्यै नम:
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ॐ गौरयै नम:
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ॐ उमायै नम:
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ॐ शंकरप्रियायै नम:
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ॐ अंबिकायै नम:
इन मंत्रों से माँ पार्वती का पूजन करके जौ की रोटी का भोग लगाने के बाद, पूरे घर में उस रोटी को प्रसाद के रूप में वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए। यह अनुष्ठान न केवल देवी का आशीर्वाद लाता है, बल्कि घर में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का संचार भी करता है।
जौ की रोटी: स्वास्थ्य और समृद्धि का दोहरा लाभ
धार्मिक लाभ के साथ-साथ, देवी पुराण में जौ के सेवन के स्वास्थ्य लाभों पर भी जोर दिया गया है। जौ को आयुर्वेद में एक अत्यंत पौष्टिक और औषधीय अनाज माना गया है।
पुराण में कहा गया है कि जौ का दलिया या जौ के आटे की रोटी खाने वाले व्यक्ति जब तक जीवित रहते हैं, तब तक उनकी किडनी (गुर्दे) बढ़िया रहती है और उनमें कभी खराबी नहीं आती। इसके अलावा, जौ में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले गुण शरीर की सूजन को कम करने में सहायक होते हैं। चाहे वह किडनी में सूजन, लीवर में सूजन, या आंतों में सूजन हो—जौ की रोटी खाने से इन सभी तकलीफों को दूर करने में मदद मिलती है।
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार, जौ में उच्च मात्रा में फाइबर, विटामिन और मिनरल्स पाए जाते हैं, जो पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में सहायता करते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी पर इस विधान का पालन करना आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ शारीरिक शुद्धिकरण का भी मार्ग प्रशस्त करता है।
इस साल 4 नवंबर को पड़ने वाली बैकुंठ चतुर्दशी पर भक्तगण इस सरल और लाभकारी विधान को अपनाकर अपने जीवन में सुख, संपत्ति और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। यह त्योहार एक बार फिर भारतीय संस्कृति के उस सिद्धांत को उजागर करता है, जहाँ धर्म और स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक हैं।
हरिहर मिलन का महायोग
यह दिन सनातन परंपरा में हरि (विष्णु) और हर (शिव) के अद्भुत मिलन का पर्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह वह विशेष तिथि है जब सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा (चातुर्मास) से जागकर सृष्टि का कार्यभार पुनः संभालते हैं और इस दौरान भगवान शिव उन्हें विश्राम देते हैं। इसलिए, इस दिन दोनों देवों की संयुक्त पूजा का विधान है, जिसे पूर्ण श्रद्धा से करने पर मोक्ष, सुख-समृद्धि और बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
पूजा का शुभ मुहूर्त और विधान
बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा मुख्य रूप से दो चरणों में की जाती है: पहले चरण में भगवान विष्णु की पूजा और दूसरे चरण में भगवान शिव की पूजा। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को आरंभ होता है, जब चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के निकट होता है।
प्रथम चरण: भगवान विष्णु की पूजा (सायंकाल)
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स्नान और संकल्प: भक्तगण सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेते हैं। हालांकि, बैकुंठ चतुर्दशी की मुख्य पूजा शाम को की जाती है।
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1000 कमल से पूजन: इस दिन भगवान विष्णु को 1000 (हजार) कमल के पुष्प या अपनी सामर्थ्य के अनुसार पुष्प अर्पित करने का विशेष महत्व है। यदि कमल उपलब्ध न हों तो अन्य सुगंधित श्वेत या पीले पुष्प अर्पित किए जा सकते हैं।
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विष्णु पूजा सामग्री: पूजन सामग्री में तुलसी दल (बिना तोड़े हुए), पीले वस्त्र, चंदन, पीली मिठाई, फल, पंचामृत और धूप-दीप शामिल होते हैं।
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मंत्र जाप: भगवान विष्णु की पूजा करते समय 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का निरंतर जाप करना चाहिए।
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भोग: भगवान विष्णु को खीर या पीले रंग की मिठाई का भोग लगाना चाहिए।
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देव दीपावली: इसी दिन मंदिरों और घरों में देव दीपावली भी मनाई जाती है। शाम को घर की चौखट और तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाना चाहिए।
द्वितीय चरण: भगवान शिव की पूजा (मध्य रात्रि)
भगवान विष्णु की पूजा के बाद मध्यरात्रि या प्रदोष काल में भगवान शिव की आराधना का विधान है। मान्यता है कि यह वह समय होता है जब शिव और विष्णु एक दूसरे से मिलते हैं।
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शिव अभिषेक: इस चरण में भगवान शिव का गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर (पंचामृत) से अभिषेक किया जाता है।
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बेलपत्र और धतूरा: भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, आक के पुष्प और भस्म अर्पित की जाती है।
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शिव मंत्र: पूजा के दौरान 'ॐ नमः शिवाय' या 'मृत्युंजय मंत्र' का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
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भोग: शिव जी को विशेष रूप से जौ के आटे की रोटी या खीर का भोग लगाया जाता है (जैसा कि देवी पुराण में भी उल्लेखित है)।
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जलाभिषेक: इस दिन कई भक्तजन शिव मंदिर में जाकर पूरी रात दीपदान करते हैं और शिव चालीसा का पाठ करते हैं।
हरिहर मिलन की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने अत्यधिक तपस्या के बाद भगवान शिव की सहस्र (हजार) कमल के पुष्पों से पूजा करने का निश्चय किया। जब विष्णु जी पूजा कर रहे थे, तब शिव जी ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक कमल का पुष्प छिपा दिया। जब विष्णु जी ने देखा कि एक पुष्प कम है, तो उन्होंने अपने कमल जैसे नेत्र को ही शिव जी को अर्पित करने का विचार किया। भगवान विष्णु के इस समर्पण भाव को देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने विष्णु जी को वरदान दिया कि जो भक्त बैकुंठ चतुर्दशी के दिन दोनों की संयुक्त पूजा करेगा, उसे वैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होगा और वह सभी पापों से मुक्त हो जाएगा।
यह पर्व हमें सिखाता है कि शिव और विष्णु एक ही परम सत्ता के दो स्वरूप हैं और दोनों की उपासना से जीवन में संतुलन और परम शांति प्राप्त होती है। इस पावन अवसर पर भक्तगण, विशेषकर काशी (वाराणसी) और अन्य शिव-विष्णु तीर्थ स्थलों पर, इस अद्भुत हरिहर मिलन का दर्शन और पूजन करके अपने जीवन को धन्य बनाते हैं।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

