दुनिया के सामने जलवायु संकट का भयावह चेहरा हर बीतते दिन के साथ और गहरा होता जा रहा है. पेरिस समझौते के तहत निर्धारित 1.5°C के महत्वपूर्ण तापमान लक्ष्य को बचाए रखने की दौड़ में दुनिया कई साल पीछे छूट चुकी है, ऐसा लगने लगा था. हर नई रिपोर्ट निराशा की गवाही दे रही थी, लेकिन ठीक COP30 से पहले, क्लाइमेट एनालिटिक्स (Climate Analytics) की एक नई रिपोर्ट 'Rescuing 1.5°C' ने उम्मीद की एक नई, लेकिन बेहद संकरी, खिड़की दिखाई है. यह रिपोर्ट एक सशक्त संदेश देती है: दुनिया अभी भी सदी के अंत तक वैश्विक तापमान को 1.5°C के भीतर सीमित करने की क्षमता रखती है, बशर्ते अब से 'सबसे ऊँची स्तर की जलवायु प्रतिबद्धता' के साथ तत्काल कदम उठाए जाएँ.
पिछले कुछ सालों में वैश्विक कार्रवाई की धीमी गति ने कई विशेषज्ञों को यह मानने पर मजबूर कर दिया था कि 1.5°C की सीमा अब पहुंच से बाहर है. हालांकि, 'Rescuing 1.5°C' रिपोर्ट का निष्कर्ष इन निराशावादी धारणाओं को चुनौती देता है. रिपोर्ट बताती है कि एक मज़बूत और बहु-आयामी रणनीति के ज़रिए, जिसे रिपोर्ट 'Highest Possible Ambition (HPA)' परिदृश्य कहती है, वैश्विक तापमान एक बार ज़रूर 1.5°C की सीमा को पार करेगा (लगभग 1.7°C पर चरम पर पहुँचेगा), लेकिन फिर 2100 तक गिरकर 1.2°C के सुरक्षित स्तर पर वापस लाया जा सकता है. यह 'ओवरशूट' की अवधि जितनी न्यूनतम होगी, अपूरणीय जलवायु क्षति से बचने की संभावना उतनी ही अधिक होगी.
इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रिपोर्ट ने एक स्पष्ट समयरेखा और कार्रवाई का खाका पेश किया है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण है जीवाश्म ईंधनों से निर्णायक और तेज़ गति से बाहर निकलना, रिन्यूएबल एनर्जी (अक्षय ऊर्जा) को बड़े पैमाने पर बढ़ाना, और पूरी अर्थव्यवस्था को बिजली-आधारित बनाना. रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड ($\text{CO}_2$) उत्सर्जन को 2045 तक 'नेट-ज़ीरो' के स्तर पर लाना होगा, जबकि संपूर्ण ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को 2060 के दशक में नेट-ज़ीरो तक पहुँचना होगा. ऊर्जा क्षेत्र में यह बदलाव इतना तीव्र होना चाहिए कि 2050 तक दुनिया की दो-तिहाई ऊर्जा मांग को बिजली से पूरा किया जा सके.
क्लाइमेट एनालिटिक्स के सीईओ बिल हेयर ने इस लक्ष्य की राजनीतिक महत्ता पर ज़ोर देते हुए कहा, “1.5°C से ऊपर जाना एक राजनीतिक असफलता है, जो ऐसी क्षति और टर्निंग पॉइंट्स को जन्म दे सकता है जिन्हें टाला जा सकता था. लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि हम अभी भी हालात को पलट सकते हैं, अगर हम इस ओवरशूट की अवधि को न्यूनतम रखें, तो अपूरणीय जलवायु क्षति से बचा जा सकता है.” उनका बयान इस बात को रेखांकित करता है कि यह अब केवल विज्ञान का नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति का सवाल बन गया है.
रिपोर्ट के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. नील ग्रांट ने पिछले कुछ वर्षों की विफलता और सफलता दोनों पर प्रकाश डाला. उन्होंने स्वीकार किया कि "पिछले पाँच साल हमने खो दिए हैं," लेकिन साथ ही यह भी कहा कि "इन्हीं पाँच सालों में रिन्यूबल एनर्जी और बैटरियों के क्षेत्र में क्रांति भी हुई है." डॉ. ग्रांट का मानना है कि इस तकनीकी प्रगति की रफ़्तार पर सवार होकर "अब भी समय है. यह खिड़की बहुत छोटी है, लेकिन खुली है, फैसला हमारे हाथ में है.” यह टिप्पणी तकनीकी नवाचार को आशा के एक बड़े स्तंभ के रूप में स्थापित करती है.
सिर्फ़ उत्सर्जन में कटौती ही पर्याप्त नहीं है. रिपोर्ट 'कार्बन रिमूवल टेक्नोलॉजी' के महत्व पर भी बल देती है, जिसमें 2050 तक सालाना पाँच अरब टन $\text{CO}_2$ को वातावरण से कैप्चर करने की क्षमता विकसित करनी होगी. हालांकि, रिपोर्ट एक लचीलापन भी दिखाती है: अगर कार्बन रिमूवल की तकनीक अपनी अनुमानित रफ़्तार से आधी गति से भी आगे बढ़ी, तब भी सदी के अंत तक तापमान को 1.5°C से नीचे लाना संभव रहेगा. इसके अतिरिक्त, तापमान को स्थिर करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में मीथेन उत्सर्जन को 2030 तक 20% और 2035 तक 30% घटाने की तत्काल आवश्यकता है.
यह नई तस्वीर ऐसे समय में सामने आई है जब वैश्विक समुदाय COP30 की ओर बढ़ रहा है और यह सवाल लगातार मंडरा रहा है कि क्या 1.5°C का सपना अब भी जीवित है. क्लाइमेट एनालिटिक्स की यह रिपोर्ट एक स्पष्ट और साहसिक जवाब देती है: हाँ, यह लक्ष्य अभी भी बचा है, लेकिन इसके लिए एक अभूतपूर्व वैश्विक साझेदारी, तत्काल कार्रवाई और हर देश की उच्चतम संभव महत्वाकांक्षा की आवश्यकता है. यह रिपोर्ट निराशा के बादल छाए माहौल में एक मशाल की तरह है, जो दिखाती है कि अगर हम तुरंत और निर्णायक कार्रवाई करें, तो जलवायु संकट के सबसे बुरे प्रभावों को अभी भी टाला जा सकता है
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

