शाहबानो केस से प्रेरित फिल्म 'हक' को कानूनी बाधाओं से मुक्ति आज पूरे देश में रिलीज

शाहबानो केस से प्रेरित फिल्म

प्रेषित समय :18:49:18 PM / Fri, Nov 7th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले के साथ फिल्म निर्माताओं और कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में अपनी मुहर लगा दी. जस्टिस विवेक अग्रवाल और ए के सिंह की खंडपीठ ने फिल्म 'हक' (Haq) की रिलीज पर रोक लगाने की मांग वाली रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसके तुरंत बाद फिल्म को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज करने का रास्ता साफ हो गया. यह फैसला न केवल फिल्म उद्योग के लिए एक बड़ी राहत है, बल्कि यह भी स्थापित करता है कि इतिहास और सामाजिक महत्व के विषयों पर आधारित कलात्मक कृतियों को अनावश्यक कानूनी अड़चनों का सामना नहीं करना पड़ेगा.

फिल्म 'हक' वर्ष 1985 के बहुचर्चित और कानूनी रूप से महत्वपूर्ण शाह बानो बेगम भरण-पोषण मामले से प्रेरित है. याचिकाकर्ता, जिसने खुद को शाह बानो की बेटी बताया था, ने दावा किया था कि फिल्म तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है, जिससे उनके परिवार की निजता और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंच सकती है, और इसलिए इसकी रिलीज पर रोक लगाई जानी चाहिए. याचिका में यह भी तर्क दिया गया था कि फिल्म की सामग्री एक संवेदनशील कानूनी और सामाजिक मुद्दे को गलत तरीके से चित्रित कर सकती है.

हालांकि, हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए पाया कि यह बहुत देरी से दायर की गई थी, जब फिल्म अपनी रिलीज के अंतिम चरण में थी. कोर्ट ने टिप्पणी की कि किसी भी रचनात्मक कार्य को तभी रोका जाना चाहिए जब वह स्पष्ट रूप से सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता या देश की सुरक्षा के खिलाफ हो. फिल्म निर्माताओं की ओर से तर्क दिया गया कि फिल्म तथ्यों पर आधारित है और इसे सेंसर बोर्ड से हरी झंडी मिल चुकी है. हाई कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि अदालतें सेंसर बोर्ड के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करने से पहले अत्यधिक सावधानी बरतती हैं.

अदालत के इस त्वरित और स्पष्ट फैसले के कारण, आज 07 नवंबर 2025 को फिल्म 'हक' अपनी निर्धारित तारीख पर रिलीज हो गई है. फिल्म समीक्षक इसे एक साहसिक कदम बता रहे हैं, जो दशकों पुराने एक संवेदनशील मुद्दे को फिर से राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में लाएगा. सोशल मीडिया पर भी यह खबर तेजी से फैली है. एक तरफ जहां फिल्म की टीम जश्न मना रही है, वहीं कानूनी और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच इस बात पर बहस छिड़ गई है कि क्या कलात्मक स्वतंत्रता को सामाजिक संवेदनशीलता पर तरजीह दी जानी चाहिए.

जबलपुर, जहां हाई कोर्ट की मुख्य पीठ स्थित है, वहां के कानूनी गलियारों में भी इस फैसले की खूब चर्चा हो रही है. वकीलों का मानना है कि यह निर्णय भविष्य में संवेदनशील विषयों पर बनने वाली फिल्मों के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी मिसाल बनेगा, जो रचनात्मक स्वतंत्रता और कानूनी सीमाओं के बीच संतुलन स्थापित करता है. यह फिल्म आज पहले शो के साथ ही दर्शकों के बीच पहुँच गई है और सामाजिक मुद्दों में रुचि रखने वाले दर्शकों की अच्छी भीड़ सिनेमाघरों में देखी जा रही है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-