मुंबई. मध्य रेलवे के कर्मचारियों और इंजीनियरों के संघों द्वारा गुरुवार शाम को अचानक की गई एक फ्लैश हड़ताल ने न केवल मुंबई की लोकल सेवाओं को घंटों तक पंगु बना दिया, बल्कि एक दुखद घटना को जन्म दिया जिसमें दो यात्रियों की जान चली गई. कर्मचारियों का यह अचानक विरोध प्रदर्शन 09 जून को हुए मुंब्रा रेल हादसे के संबंध में दो इंजीनियरों पर दर्ज गैर-इरादतन हत्या के मामले के खिलाफ था.
गुरुवार की शाम को, पीक आवर के दौरान मध्य रेलवे के कर्मचारी यूनियनों ने लगभग एक घंटे तक अचानक हड़ताल कर दी. इस विरोध का मुख्य कारण यह था कि विशाल डोलस (सहायक मंडल इंजीनियर) और समर यादव (वरिष्ठ खंड इंजीनियर) सहित कुछ रेलवे अधिकारियों पर मुंब्रा ट्रेन दुर्घटना के संबंध में 01 नवंबर को गवर्नमेंट रेलवे पुलिस (GRP) द्वारा मामला दर्ज किया गया था.कर्मचारी यूनियनों का तर्क है कि दुर्घटना का कारण पटरियों के रखरखाव में लापरवाही नहीं, बल्कि ट्रेनों में अत्यधिक भीड़भाड़ थी, जैसा कि रेलवे की आंतरिक जांच रिपोर्ट में भी सामने आया था. इंजीनियरों पर आपराधिक मामला दर्ज किए जाने से नाराज़ यूनियनें अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए तुरंत काम बंद कर दिया. इस अचानक हुए विरोध के कारण छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) पर प्लेटफॉर्म पर भारी भीड़ जमा हो गई और कोई भी ट्रेन नहीं चली.
पटरी पार कर रहे पांच यात्रियों को ट्रेन ने रौंदा, दो की मौत
हड़ताल के कारण लोकल सेवाएं ठप होने से हज़ारों यात्री प्लेटफार्मों पर फंसे रहे. सीएसएमटी पर करीब एक घंटे तक इंतजार करने के बाद, पाँच यात्रियों ने स्टेशन से बाहर निकलने के लिए रेलवे पटरियों को पार करने का फैसला किया. इसी दौरान, एक ट्रेन ने उन्हें टक्कर मार दी, जिससे यह दुखद हादसा हुआ.
इस घटना में दो लोगों की मौत हो गई, जिनकी पहचान माटुंगा निवासी 19 वर्षीय हैली मोहमाया और मीरा रोड निवासी 45 वर्षीय सूर्यकांत नाइक के रूप में हुई है. इस हादसे में तीन अन्य यात्री घायल भी हुए, जिनमें से एक महिला की हालत गंभीर बताई जा रही है.
कानूनी और श्रमिक विवाद का टकराव
यह घटना रेलवे के भीतर कानूनी कार्रवाई और श्रमिक असंतोष के बीच के टकराव को उजागर करती है. इंजीनियरों पर आपराधिक मामला दर्ज होने से कर्मचारियों में असुरक्षा की भावना पैदा हुई, जिसके परिणामस्वरूप हड़ताल हुई. लेकिन इस हड़ताल ने आम यात्रियों के लिए नई जानलेवा स्थिति पैदा कर दी, जो रेलवे की सुरक्षा और कर्मचारी प्रबंधन के लिए एक गंभीर चुनौती है.
इसी बीच, जिन दो इंजीनियरों पर FIR दर्ज हुई है, उन्होंने आज ही थाणे सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने भीड़भाड़ को दुर्घटना का कारण बताते हुए खुद को निर्दोष बताया है. कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के लिए 11 नवंबर की तारीख तय की है, लेकिन इंजीनियरों को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया है.
जून महीने में हुए मुंब्रा रेल हादसे में आरोपित दो केंद्रीय रेलवे अभियंताओं ने शुक्रवार को ठाणे सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) के लिए याचिका दायर की. यह वही हादसा था जिसमें पांच यात्रियों की मौत और आठ अन्य घायल हुए थे. अभियंता विशाल डोलस और समर यादव पर गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) के आरोप दर्ज किए गए हैं. दोनों का कहना है कि दुर्घटना में उनकी कोई लापरवाही नहीं थी, बल्कि यह हादसा ट्रेन में अत्यधिक भीड़ की वजह से हुआ था.
अदालत में पेश की गई याचिका में अभियंताओं ने कहा कि वे निर्दोष हैं और जांच रिपोर्ट भी इसे साबित करती है. दोनों अभियंताओं का पक्ष रखने वाले एडवोकेट बलदेव राजपूत ने अदालत में दलील दी कि रेलवे प्रशासन की ओर से गठित पांच सदस्यीय जांच समिति ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में किसी भी प्रकार की तकनीकी या रखरखाव संबंधी त्रुटि से इंकार किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, हादसा उस समय हुआ जब दो ट्रेनें — एक कसारा की ओर जा रही और दूसरी छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) की ओर — मुंब्रा और दीवा स्टेशन के बीच एक तीव्र मोड़ पर आमने-सामने से गुजरीं. इस दौरान फुटबोर्ड पर खड़े यात्रियों के बैग एक-दूसरे से टकराए, जिससे संतुलन बिगड़ने पर कई यात्री नीचे गिर गए. हादसे में पांच यात्रियों की मौत हो गई थी.
जांच रिपोर्ट ने अभियंताओं को निर्दोष बताया
रेलवे के मंडल रेल प्रबंधक , सेंट्रल रेलवे द्वारा गठित इस जांच समिति ने पाया कि पटरियों के रखरखाव, वेल्डिंग या ट्रैक निरीक्षण में कोई कमी नहीं थी. रिपोर्ट को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सौंपा गया, जिसने इसे स्वीकार कर अभियंताओं को लापरवाही के आरोपों से मुक्त बताया.
एडवोकेट राजपूत ने अदालत में कहा कि “रेलवे ने इस दुर्घटना के बाद 17 अखबारों में नोटिस प्रकाशित कर प्रभावित परिवारों से मुआवजे के दावे मंगवाए थे, लेकिन कोई दावा सामने नहीं आया. इससे स्पष्ट है कि रेलवे या अभियंताओं के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष शिकायत नहीं थी.”
कोर्ट ने सुनवाई 11 नवंबर तक स्थगित की
हालांकि न्यायाधीश गणेश पवार ने अभियंताओं की अग्रिम जमानत पर तुरंत फैसला नहीं दिया और अभियोजन पक्ष को जवाब देने के लिए समय दिया. अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी. अभियंताओं के वकील द्वारा दायर अंतरिम राहत (Interim Relief) याचिका — जिसमें गिरफ्तारी से सुरक्षा मांगी गई थी — अदालत ने अस्वीकार कर दी.
घटना की पृष्ठभूमि
9 जून को शाम के समय हुई इस दुर्घटना ने मुंबई लोकल नेटवर्क को हिला दिया था. दीवा और मुंब्रा के बीच यह वह जगह है जहां ट्रैक का मोड़ तीखा है और ट्रेनें बहुत करीब से गुजरती हैं. उस दिन भीड़भाड़ के कारण कई यात्री फुटबोर्ड पर खड़े थे. जैसे ही दोनों ट्रेनें एक-दूसरे के करीब आईं, यात्रियों के बैग आपस में टकरा गए और पांच लोग नीचे गिर पड़े. कई घायल हुए.
हादसे में मारे गए यात्रियों में स्थानीय और दैनिक यात्रियों की बड़ी संख्या थी. इस घटना के बाद रेलवे ने पहले तो इसे भीड़भाड़ का परिणाम बताया, लेकिन बाद में रेलवे पुलिस (GRP) ने इंजीनियरों पर गैर इरादतन हत्या और लापरवाही से मौत का मामला दर्ज कर लिया.
कर्मचारियों का विरोध और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस FIR के बाद से ही सेंट्रल रेलवे कर्मचारियों में असंतोष बढ़ गया था. बीते गुरुवार को इसी कार्रवाई के विरोध में कर्मचारियों ने अचानक फ्लैश स्ट्राइक कर दी, जिससे मुंबई की लोकल ट्रेन सेवा करीब एक घंटे तक ठप रही. विरोध के दौरान कई स्टेशनों पर अफरा-तफरी का माहौल बन गया और सैंडहर्स्ट रोड स्टेशन पर पटरियों पर उतरे यात्रियों को ट्रेन की चपेट में आने से दो लोगों की मौत हो गई.
यूनियनों का कहना है कि अभियंताओं पर हुई कार्रवाई “अन्यायपूर्ण” है और वह केवल दिखावटी जवाबदेही के लिए की गई. उनका तर्क है कि भीड़ नियंत्रण और संरचनात्मक सुरक्षा की जिम्मेदारी उच्च अधिकारियों और रेलवे नीति निर्धारकों की होती है, न कि स्थानीय इंजीनियरों की.
अभियंताओं की दलील और रेल प्रशासन की स्थिति
अभियंताओं के वकील ने कहा, “यह दुर्घटना तकनीकी गलती की वजह से नहीं बल्कि यात्रियों की भीड़ और अनुशासनहीनता की वजह से हुई थी. अभियंताओं ने अपने कर्तव्यों का पूर्ण निर्वहन किया.” वहीं, रेलवे प्रशासन ने कहा कि वह अदालत के निर्देशों का पालन करेगा और सुरक्षा सुधारों पर ध्यान केंद्रित करेगा.
सामाजिक मीडिया और जन प्रतिक्रिया
हादसे और एफआईआर को लेकर सोशल मीडिया पर दो तरह की प्रतिक्रियाएं हैं. एक पक्ष अभियंताओं के समर्थन में है, उनका कहना है कि भीड़भाड़ की समस्या और ढांचागत कमियों के लिए पूरे सिस्टम को दोषी ठहराना चाहिए. दूसरी ओर, कुछ यात्रियों और नागरिक समूहों का मानना है कि “हर हादसे की जिम्मेदारी किसी न किसी स्तर पर तय होनी चाहिए ताकि सुधार की प्रक्रिया आगे बढ़े.”इस घटना ने रेलवे सुरक्षा, कर्मचारियों की जवाबदेही और भीड़ प्रबंधन को लेकर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं. अब सबकी नजर 11 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई पर है, जिसमें अभियोजन पक्ष अपनी दलील पेश करेगा.इस बीच, रेल मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि भविष्य में भीड़भाड़ वाले रूट्स पर सुरक्षा निगरानी प्रणाली (AI-Based Monitoring System) और वीडियो सर्विलांस को और सशक्त किया जाएगा ताकि इस तरह की दुर्घटनाओं को दोबारा टाला जा सके.मुंब्रा हादसे की यह गूँज न केवल अदालतों में बल्कि पूरे रेलवे तंत्र में सुधार की मांग के रूप में सुनाई दे रही है — जहाँ न्याय और सुरक्षा, दोनों की परीक्षा साथ-साथ जारी है.

