टीवी चैनलों पर हिन्दी की जगह बढ़ते अंग्रेजी और रोमन लिपि के प्रयोग को लेकर हिन्दी प्रेमियों में चिंता बढ़ती जा रही है. इसी क्रम में रायसेन जिले के ग्राम सुल्तानगंज निवासी अभिषेक कुमार ने देश के प्रमुख व्यावसायिक समाचार चैनल ज़ी बिज़नेस को एक खुला पत्र लिखकर हिन्दी भाषा के संरक्षण और सम्मान की दिशा में पहल करने का निवेदन किया है.
पत्र में अभिषेक कुमार ने कहा है कि “हिन्दी चैनल” शब्द का अर्थ केवल नाम भर नहीं, बल्कि उसकी आत्मा और पहचान भी हिन्दी में होनी चाहिए. उन्होंने लिखा है कि ज़ी बिज़नेस जैसे प्रभावशाली मंच पर अंग्रेज़ी शब्दों और रोमन लिपि का अत्यधिक प्रयोग हिन्दी के अस्तित्व को कमजोर कर रहा है. उनका मानना है कि यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे हिन्दी चैनलों को “हिंग्लिश” का माध्यम बना रही है, जहाँ हिन्दी की आत्मा खोती जा रही है.
पत्र में अभिषेक ने शेयर बाजार जैसे विषयों में तकनीकी शब्दावली के प्रयोग को स्वीकार करते हुए यह भी कहा है कि अंग्रेज़ी शब्दों की उधारी अनिवार्य नहीं है. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि “लाभांश”, “सूचकांक”, “निवेश”, “पूँजीकरण”, “वित्त”, “ऋण”, “मुद्रा”, “आयकर”, “समापन”, “प्रभाव”, “विलय”, “निर्यात” और “समिति” जैसे शब्द हिन्दी में पहले से प्रचलित हैं और दर्शक इन्हें भलीभाँति समझते हैं. ऐसे में सम्पूर्ण प्रस्तुति अंग्रेज़ी शब्दों से भर देना केवल भाषा की निर्भरता नहीं, बल्कि आत्मविस्मृति का संकेत है.
उन्होंने ज़ी बिज़नेस से आग्रह किया कि समाचार पट्टियों, शीर्षकों और ग्राफिक्स में पूर्णतः देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाए और जहाँ आवश्यक हो, अंग्रेज़ी शब्दों को कोष्ठक में दिया जाए. इसके साथ ही संवाददाताओं और एंकरों के लिए हिन्दी वाक्यरचना और शब्दप्रयोग पर प्रशिक्षण कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँ. उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि चैनल “हिन्दी शब्द-सप्ताह” या “भाषा संवर्धन अभियान” जैसे कार्यक्रम शुरू करे, जिससे दर्शकों में हिन्दी शब्दों के प्रति रुचि और सम्मान बढ़े.
अभिषेक ने यह भी कहा कि देवनागरी लिपि केवल लिखावट नहीं, बल्कि हिन्दी की आत्मा है. जब चैनल पर समाचार-पट्टियाँ और हेडलाइनें रोमन लिपि में दिखाई जाती हैं, तो हिन्दी की दृश्य पहचान ही मिट जाती है. “यह स्थिति उस माला के समान है, जिससे मणियाँ निकाल ली गई हों — केवल डोरी शेष रह जाती है,” उन्होंने अपने पत्र में लिखा.
उन्होंने कहा कि हिन्दी चैनलों को यह समझना चाहिए कि लोकप्रियता का अर्थ भाषाई समझौता नहीं है. दर्शक भले अंग्रेज़ी शब्द सुनने के आदी हो गए हों, लेकिन यदि चैनल आत्मविश्वास से हिन्दी का प्रयोग करेगा, तो वही प्रवृत्ति समाज में भी पनपेगी. अभिषेक का मानना है कि ज़ी बिज़नेस जैसी प्रभावशाली संस्था यदि हिन्दी के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाए, तो यह न केवल भाषा का सम्मान बढ़ाएगी, बल्कि युवाओं में भी मातृभाषा के प्रति आत्मगौरव की भावना जगाएगी.
पत्र के अंत में उन्होंने लिखा — “भाषा केवल माध्यम नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना की धारा है. यदि ज़ी बिज़नेस हिन्दी को उसकी मूल लिपि और स्वरूप में प्रस्तुत करता है, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाएगा.”
यह पत्र वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई के फेसबुक समूह और वेबसाइट के माध्यम से भी साझा किया गया है ताकि अधिकाधिक लोग इस विषय पर चर्चा करें. सम्मेलन ने इस पहल का समर्थन करते हुए इसे “हिन्दी की अस्मिता से जुड़ा रचनात्मक कदम” बताया है.
गौरतलब है कि वैश्विक हिंदी सम्मेलन लंबे समय से हिन्दी के प्रचार, प्रसार और तकनीकी क्षेत्रों में इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहा है. संस्था के अनुसार, ऐसे प्रयासों से न केवल भाषा का संरक्षण होगा, बल्कि राष्ट्रीय समाचार माध्यमों की पहचान भी भारतीय भाषाई गौरव से जुड़ी रहेगी.
अभिषेक कुमार का यह पत्र अब देशभर में चर्चा का विषय बन गया है — एक ऐसे दौर में जब संचार माध्यमों में हिन्दी की जगह धीरे-धीरे अंग्रेज़ी हावी हो रही है, उनका यह प्रयास हिन्दी के सम्मान और आत्मविश्वास की एक नई उम्मीद जगाता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-



