AajKaDin: 14 नवम्बर 2025, ज्ञात-अज्ञात पापों का नाश करती है उत्पन्ना एकादशी...

AajKaDin: 14 नवम्बर 2025, ज्ञात-अज्ञात पापों का नाश करती है उत्पन्ना एकादशी...

प्रेषित समय :21:56:42 PM / Thu, Nov 13th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

-प्रदीप लक्ष्मीनारायण द्विवेदी, बॉलीवुड एस्ट्रो एडवाइजर (व्हाट्सएप- 8875863494)
* उत्पन्ना एकादशी - 15 नवम्बर 2025, शनिवार
* पारण का समय - 01:25 पीएम से 03:37 पीएम, 16 नवम्बर 2025
* पारण के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय - 09:09 एएम
* एकादशी तिथि प्रारम्भ - 15 नवम्बर 2025 को 12:49 एएम बजे
* एकादशी तिथि समाप्त - 16 नवम्बर 2025 को 02:37 एएम बजे

* उत्पन्ना एकादशी व्रत के प्रभाव से श्रद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है. 
* इस दिन देवी एकादशी का जन्म हुआ था, इसीलिए धर्मग्रथों के अनुसार उत्पन्ना एकादशी व्रत में भगवान श्रीविष्णु समेत देवी एकादशी की पूजा का भी विधान है. 
* उत्पन्ना एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प ले कर पवित्र स्नान करना चाहिए.
* इसके पश्चात धूप, दीप, नैवेद्य आदि सामग्री से भगवान श्रीविष्णु का पूजन और रात को दीपदान करना चाहिए. 
* उत्पन्ना एकादशी की रात भगवान का भजन-कीर्तन-जागरण करना चाहिए. 
* अगले दिन प्रात:काल भगवान श्रीविष्णु की पूजा कर दान-पुण्य करके पारण करना चाहिए.
* इस एकादशी का व्रत-पूजन करने से समस्त तीर्थों का शुभ फल भगवान श्रीविष्णु के धाम की प्राप्ति होती है. 
* उत्पन्ना एकादशी व्रत रखने से श्रद्धालु के सभी ज्ञात/अज्ञात पापों का नाश होता है.
॥ एकादशी माता की आरती ॥
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी,जय एकादशी माता.
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर,शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी...॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी,भक्ति प्रदान करनी.
गण गौरव की देनी माता,शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी...॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना,विश्वतारनी जन्मी.
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा,मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी...॥
पौष के कृष्णपक्ष की,सफला नामक है.
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा,आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी...॥
नाम षटतिला माघ मास में,कृष्णपक्ष आवै.
शुक्लपक्ष में जया, कहावै,विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी...॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष मेंशुक्ला आमलकी.
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में,चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी...॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा,धन देने वाली.
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में,वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी...॥
शुक्ल पक्ष में होयमोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी.
नाम निर्जला सब सुख करनी,शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी...॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों,कृष्णपक्ष करनी.
देवशयनी नाम कहायो,शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी...॥
कामिका श्रावण मास में आवै,कृष्णपक्ष कहिए.
श्रावण शुक्ला होयपवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी...॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की,परिवर्तिनी शुक्ला.
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में,व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी...॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में,आप हरनहारी.
रमा मास कार्तिक में आवै,सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी...॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की,दुखनाशक मैया.
पावन मास में करूंविनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी...॥
परमा कृष्णपक्ष में होती,जन मंगल करनी.
शुक्ल मास में होयपद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी...॥
जो कोई आरती एकादशी की,भक्ति सहित गावै.
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा,निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी...॥
श्री त्रिपुरा सुंदरी दैनिक धर्म-कर्म पंचांग - 14 नवम्बर 2025
शक सम्वत 1947, विक्रम सम्वत 2082, अमान्त महीना कार्तिक, पूर्णिमान्त महीना मार्गशीर्ष, वार शुक्रवार, पक्ष कृष्ण, तिथि दशमी - 12:49 एएम (15 नवम्बर 2025) तक, नक्षत्र पूर्वाफाल्गुनी - 09:20 पीएम तक, योग वैधृति - 06:26 एएम (15 नवम्बर 2025) तक, करण वणिज - 12:07 पीएम तक, द्वितीय करण विष्टि - 12:49 एएम (15 नवम्बर 2025) तक, सूर्य राशि तुला, चन्द्र राशि सिंह - 03:51 एएम (15 नवम्बर 2025) तक, राहुकाल 10:57 एएम से 12:19 पीएम, अभिजित मुहूर्त 11:58 एएम से 12:41 पीएम
दैनिक चौघड़िया - 14 नवम्बर 2025
* दिन का चौघड़िया
चर - 06:50 से 08:13 
लाभ - 08:13 से 09:35 
अमृत - 09:35 से 10:57 
काल - 10:57 से 12:19 
शुभ - 12:19 से 01:42
रोग - 01:42 से 03:04 
उद्वेग - 03:04 से 04:26 
चर - 04:26 से 05:49 
* रात्रि का चौघड़िया
रोग - 05:49 से 07:26 
काल - 07:26 से 09:04 
लाभ - 09:04 से 10:42 
उद्वेग - 10:42 से 12:20 
शुभ - 12:20 से 01:58 
अमृत - 01:58 से 03:35 
चर - 03:35 से 05:13 
रोग - 05:13 से 06:51 
* चौघडिय़ा का उपयोग कोई नया कार्य शुरू करने के लिए शुभ समय देखने के लिए किया जाता है.
* दिन का चौघडिय़ा- अपने शहर में सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच के समय को बराबर आठ भागों में बांट लें और हर भाग का चौघडिय़ा देखें.
* रात का चौघडिय़ा- अपने शहर में सूर्यास्त से अगले दिन सूर्योदय के बीच के समय को बराबर आठ भागों में बांट लें और हर भाग का चौघडिय़ा देखें.
* अमृत, शुभ, लाभ और चर, इन चार चौघडिय़ाओं को अच्छा माना जाता है और शेष तीन चौघडिय़ाओं- रोग, काल और उद्वेग, को उपयुक्त नहीं माना जाता है.
* यहां दी जा रही जानकारियां संदर्भ हेतु हैं, विभिन्न पंचांगों, धर्मग्रथों से साभार ली गई है, स्थानीय समय, परंपराओं और धर्मगुरु-ज्योतिर्विद् के निर्देशानुसार इनका उपयोग कर सकते हैं, क्योंकि यहां दिया जा रहा समय अलग-अलग शहरों में स्थानीय समय के सापेक्ष थोड़ा अलग हो सकता है.
* अपने ज्ञान के प्रदर्शन एवं दूसरे के ज्ञान की परीक्षा में समय व्यर्थ न गंवाएं क्योंकि ज्ञान अनंत है और जीवन का अंत है!
 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-