डेटिंग में नया ट्रेंड ज़िप-कोडिंग पास की दूरी, पास के रिश्ते की ओर बढ़ता युवाओं का रुझान

डेटिंग में नया ट्रेंड ज़िप-कोडिंग पास की दूरी, पास के रिश्ते की ओर बढ़ता युवाओं का रुझान

प्रेषित समय :22:03:12 PM / Fri, Nov 14th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

ऑनलाइन डेटिंग की तेज़ी से बदलती दुनिया में इन दिनों एक नया ट्रेंड सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है—‘ज़िप कोडिंग’. यह ट्रेंड उन लोगों के बीच तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है जो रिश्तों में लंबी दूरी की चुनौतियों से थक चुके हैं और अब सरल, सहज और व्यावहारिक रिश्तों की तलाश में हैं. ज़िप कोडिंग की अवधारणा कहती है कि लोग अपने प्रेम संबंध उसी व्यक्ति या समूह के साथ तलाशें जो उनके आस-पास ही रहता हो—अर्थात अपने ही मोहल्ले, इलाके या पिन कोड के दायरे में.

पहली नज़र में यह विचार साधारण लगता है, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक यह आधुनिक डेटिंग की उलझनों का काफी व्यावहारिक समाधान बनकर उभर रहा है. ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स के बढ़ते विकल्पों, अंतहीन स्वाइपिंग और अनिश्चित मुलाक़ातों के दौर में यह ट्रेंड युवाओं को राहत और वास्तविकता दोनों प्रदान करता है.

सोशल मीडिया पर लाखों व्यूज़ के साथ यह ट्रेंड ट्रेंडिंग टैग बन चुका है, और खासकर भारत के शहरी युवाओं में इसे लेकर चर्चा तेज़ है. कई लोग मानते हैं कि डिजिटल दुनिया में दूरी का रोमांच भले ही आकर्षक लगे, लेकिन असल रिश्ते पास होकर ही खिलते हैं.

लंबी दूरी के रिश्तों की चुनौतियों को देखते हुए यह ट्रेंड लोकप्रिय हो रहा है. मेट्रो शहरों और बड़े कस्बों में लोग काम की व्यस्तता, ट्रैफिक और सीमित समय का हवाला देते हुए कहते हैं कि अपने ही क्षेत्र में किसी को डेट करना उन्हें समय और ऊर्जा दोनों बचाने में मदद करता है. इस ट्रेंड की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह रिश्तों को प्राकृतिक गति देता है—बिना ज़रूरत से ज़्यादा योजना बनाने और दूरी को पाटने के दबाव के.

विशेषज्ञों का कहना है कि ज़िप-कोडिंग एक तरह से रिश्तों को ‘लोकल’ बनाने का प्रयास है. इसका अर्थ है कि लोग अपने ही सामाजिक-भौगोलिक दायरे में मिलने-जुलने वाले, रोज़मर्रा के जीवन में दिख जाने वाले या समान माहौल वाले लोगों को प्राथमिकता दे रहे हैं. इससे न केवल भरोसा बढ़ता है बल्कि रिश्ते का विकास भी सहजता से होता है.

बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली और पुणे जैसे शहरों के डेटिंग ऐप उपयोगकर्ताओं के बीच इस ट्रेंड की चर्चा अधिक हो रही है. कई युवा लिखते हैं कि अपने ही इलाके में रहने वाले व्यक्ति के साथ रिश्ता बनाना अधिक वास्तविक अनुभव देता है. इन रिश्तों में बातचीत की दूरी कम होती है और दोनों पक्ष अधिक उपलब्ध रहते हैं.

उम्रदराज़ लोगों के लिए भी यह ट्रेंड आरामदायक साबित हो रहा है. कई लोग जो दोबारा रिश्तों की शुरुआत करना चाहते हैं, वे दूरी, समय और सुरक्षा के कारण अपने ही इलाके के लोगों पर भरोसा कर रहे हैं. एक अन्य दिलचस्प पहलू यह भी है कि डेटिंग ऐप्स भी अब लोकेशन आधारित मैचिंग को और अधिक धार देने लगे हैं. कई ऐप्स ने विशेष फ़ीचर्स शुरू किए हैं जहां उपयोगकर्ता अपनी पसंद को एक निश्चित किलोमीटर के भीतर ही सीमित कर सकते हैं.

रिश्ता विशेषज्ञ बताते हैं कि ज़िप-कोडिंग सिर्फ सुविधा का मामला नहीं है बल्कि सामाजिक मनोविज्ञान से भी जुड़ा है. लोग स्वाभाविक रूप से उन व्यक्तियों की ओर आकर्षित होते हैं जिनसे वे रोज़मर्रा में मिलते-जुलते हों. पास रहना उन्हें यह भरोसा देता है कि वे एक-दूसरे की दिनचर्या, जीवनशैली और प्राथमिकताओं को आसानी से समझ सकते हैं.

लंबी दूरी के रिश्तों में जहां संवाद, समय-प्रबंधन और भावनात्मक उपलब्धता लगातार चुनौती बनते हैं, वहीं ज़िप-कोडिंग इन समस्याओं को काफी हद तक कम करता है. इस ट्रेंड को अपनाने वाले युवाओं का मानना है कि रिश्ते को बनाए रखने के लिए जितना महत्वपूर्ण प्यार है, उतनी ही महत्वपूर्ण उपलब्धता, नियमितता और भावनात्मक स्थिरता भी है.

हालांकि आलोचकों का तर्क है कि इस ट्रेंड में रिश्तों का दायरा सीमित हो जाता है. कई लोग मानते हैं कि सिर्फ भूगोल के आधार पर रिश्तों को सीमित करना सही नहीं है और इससे व्यक्ति अनजाने में बेहतर मैच से दूर भी हो सकता है. लेकिन समर्थकों का कहना है कि यह ट्रेंड विकल्पों को सीमित नहीं करता बल्कि जीवन को आसान और रिश्तों को वास्तविक बनाता है.

सोशल मीडिया पर #ZipCoding के साथ हजारों वीडियो सामने आए हैं, जहां लोग अपने अनुभव साझा कर रहे हैं. खासकर 20 से 35 वर्ष के युवाओं में यह ट्रेंड तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. कई लोग बताते हैं कि इस तरीके से रिश्ते धीरे-धीरे पनपते हैं, जिनमें दिखावा कम और वास्तविकता अधिक होती है.

रिश्तों को लेकर मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि पास रहने वाले लोगों के साथ रिश्ते का सबसे बड़ा लाभ यह है कि दोनों एक दूसरे को आसानी से समय दे पाते हैं. इससे रिश्ता मजबूत होता है और गलतफहमियाँ कम होती हैं. वे मानते हैं कि आधुनिक तनावपूर्ण जीवन में सरलता ही बड़ा आकर्षण है—और ज़िप-कोडिंग इस सरलता को संभव बनाता है.

लॉजिस्टिक्स—यातायात, दूरी, खर्च—को देखते हुए यह ट्रेंड शहरी भारत में अपनी जगह बना रहा है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले समय में अधिक डेटिंग प्लेटफ़ॉर्म इस ट्रेंड को ध्यान में रखते हुए नई सुविधाएँ जोड़ेंगे.

कुल मिलाकर, ज़िप-कोडिंग डेटिंग की दुनिया में एक ऐसा ट्रेंड बन गया है जिसने रिश्तों को लोकल, सरल और अधिक वास्तविक बनाने का रास्ता खोल दिया है. दूरी की उलझनों से दूर, यह नए जमाने का संदेश देता है—रिश्ते पास हों तो भरोसा और समय दोनों बढ़ते हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-