अभिमनोज
भारत की अर्थव्यवस्था आज एक ऐसे मोड़ पर है जहाँ तकनीक, रचनात्मकता और उद्यमिता का संगम एक नई आर्थिक शक्ति का निर्माण कर रहा है - सोशल मीडिया क्रिएटर इकॉनमी। यह अब सिर्फ़ मनोरंजन या शौक की दुनिया नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के लिए रोजगार, पहचान और आत्मनिर्भरता का वास्तविक जरिया बन चुकी है।
सस्ते इंटरनेट और मोबाइल क्रांति ने गाँवों, कस्बों और महानगरों को एक डिजिटल धागे में जोड़ दिया है। इंस्टाग्राम, यूट्यूब, फेसबुक, जोश, मोज़ और अन्य प्लेटफ़ॉर्म अब संवाद के साथ-साथ एक समानांतर अर्थव्यवस्था के इंजन बन चुके हैं, जो भारत की डिजिटल विकास कहानी में नया अध्याय जोड़ रहे हैं।
उद्योग विश्लेषकों और हालिया रिपोर्टों (KPMG, Redseer, Statista, Economic Times) के अनुसार, भारत की क्रिएटर इकॉनमी 2024 में लगभग ₹125 अरब (₹12,500 करोड़) के मूल्य तक पहुँच चुकी है, और 2030 तक इसके ₹500 अरब (₹50,000 करोड़) तक पहुँचने का अनुमान है। यानी अगले पाँच वर्षों में यह इंडस्ट्री चार गुना तक बढ़ सकती है।
इस क्षेत्र की सालाना वृद्धि दर करीब 25% आंकी गई है — जो देश के किसी भी पारंपरिक उद्योग जैसे मैन्युफैक्चरिंग या सर्विस सेक्टर से कहीं तेज़ है। कंटेंट के प्रभाव से उपभोक्ता खर्च (consumer spending) भी तेजी से बढ़ रहा है ,जो फिलहाल 350–400 अरब डॉलर आँका गया है और 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर (80 लाख करोड़ रुपये) तक पहुँचने की संभावना है।
वर्तमान में भारत में करीब 40 लाख सक्रिय क्रिएटर्स हैं। इनमें से 20–25 लाख के पास कम से कम 1,000 फॉलोअर्स हैं, जबकि लगभग 5–6 लाख क्रिएटर्स अपने कंटेंट से वास्तविक आय अर्जित कर रहे हैं। हालांकि अभी केवल 8–10% क्रिएटर्स ही नियमित रूप से पर्याप्त कमाई कर पा रहे हैं, लेकिन यह आंकड़ा भी इस सेक्टर की संभावनाओं का संकेत है।
Redseer Strategy Consultants की रिपोर्ट बताती है कि क्रिएटर इकॉनमी से सीधा राजस्व वर्तमान में 20–25 अरब डॉलर है, जो 2030 तक 100–125 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है।
भारत की क्रिएटर इकॉनमी की सबसे बड़ी ताक़त इसकी विविधता है। Instagram Reels, YouTube Shorts, Moj, Josh जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर शॉर्ट-फॉर्म वीडियो सबसे लोकप्रिय हैं। साथ ही एजुकेशनल, करियर, फिटनेस, मेकअप, यात्रा, ग्रामीण जीवन, खेती-बाड़ी और लोककला जैसे विषयों पर भी लाखों क्रिएटर्स सक्रिय हैं।
दिलचस्प तथ्य यह है कि अब यह लहर महानगरों से निकलकर छोटे शहरों और गाँवों तक पहुँच चुकी है। Redseer और YouTube इंडिया की संयुक्त रिपोर्ट (2025) के अनुसार, देश के लगभग 65% सक्रिय क्रिएटर्स टियर-2 और टियर-3 शहरों से आते हैं। यह ग्रामीण भारत की बढ़ती डिजिटल भागीदारी और स्थानीय भाषाओं की शक्ति का प्रमाण है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगले पांच वर्षों में भारत की 80% डिजिटल सामग्री क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार होगी — जिनमें हिंदी, तमिल, तेलुगु, मराठी, बंगाली और भोजपुरी प्रमुख होंगी।
हालांकि, कमाई की असमानता इस सेक्टर की सबसे बड़ी सच्चाई है। कुछ क्रिएटर्स लाखों रुपये महीना कमा रहे हैं, जबकि अधिकांश अभी शुरुआती स्तर पर हैं और छोटे ब्रांड डील्स, प्लेटफ़ॉर्म इंसेंटिव्स या एफिलिएट मार्केटिंग पर निर्भर हैं।सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स के एल्गोरिद्म, नीति की अस्पष्टता और रेग्युलेशन की कमी कई बार क्रिएटर्स के लिए चुनौती बनती है। फिर भी, यह क्षेत्र युवाओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है — जो भारत की डिजिटल मानसिकता में हो रहे गहरे बदलाव का संकेत है।
ब्रांड्स और कंपनियाँ अब माइक्रो और नैनो इन्फ्लुएंसर्स की ताकत को समझने लगी हैं। पारंपरिक विज्ञापनों के बजाय ब्रांड्स ऐसे क्रिएटर्स से जुड़ रहे हैं जिनका ऑडियंस छोटा लेकिन अत्यधिक संलग्न (engaged) है। इससे स्थानीय बाजारों और छोटे शहरों के क्रिएटर्स के लिए नए अवसर खुल रहे हैं।
KPMG की “डिजिटल इंडिया रिपोर्ट 2025” बताती है कि ब्रांड्स अब ऐसे क्रिएटर्स को प्राथमिकता दे रहे हैं जो विश्वसनीय और स्थानीय प्रभाव रखते हैं। इससे एक नया “लोकल टू ग्लोबल” मॉडल उभर रहा है, जो भारतीय डिजिटल उद्यमिता को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचा रहा है।
फिर भी चुनौतियां मौजूद हैं। प्लेटफ़ॉर्म्स के एल्गोरिद्म में बदलाव, कंटेंट मॉडरेशन की अस्पष्ट नीतियाँ और टैक्सेशन की अनिश्चितता कई बार क्रिएटर्स की स्थिरता पर असर डालती हैं। Influencer Marketing Hub की 2025 रिपोर्ट के अनुसार, 58% भारतीय क्रिएटर्स का मानना है कि “रीच” और “मॉनेटाइजेशन” प्लेटफ़ॉर्म नीतियों पर अत्यधिक निर्भर हैं।
मानसिक स्वास्थ्य भी एक गंभीर चिंता बनकर उभरा है। व्यूज़, लाइक्स और फॉलोअर्स का दबाव कई बार तनाव और थकान का कारण बनता है। इसे देखते हुए कई प्लेटफ़ॉर्म अब “क्रिएटर वेलनेस प्रोग्राम्स” शुरू कर रहे हैं, ताकि संतुलन बनाए रखा जा सके।
नीतिगत स्तर पर भी बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है। डिजिटल भुगतान, टैक्स व्यवस्था और विज्ञापन पारदर्शिता को लेकर अभी तक कोई समग्र नीति नहीं बनी है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय संकेत दे चुके हैं कि क्रिएटर सेक्टर के लिए रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क तैयार किया जा रहा है, जिसमें कॉपीराइट, डिजिटल टैक्सेशन और डेटा गोपनीयता के प्रावधान शामिल होंगे।
निजी क्षेत्र भी इस दिशा में सक्रिय है। कई स्टार्टअप्स और एड-टेक कंपनियां अब क्रिएटर ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रही हैं, जो युवाओं को कंटेंट प्रोडक्शन, एडिटिंग, ब्रांड डीलिंग और डिजिटल मार्केटिंग की स्किल्स सिखा रहे हैं। Meta, YouTube और Google India पहले ही “क्रिएटर इकोसिस्टम डेवलपमेंट” में निवेश कर चुके हैं।
Statista के अनुसार, भारत में 820 मिलियन इंटरनेट यूजर्स हैं, जिनमें से 470 मिलियन से अधिक सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। 5G के विस्तार और सस्ते स्मार्टफोन्स ने इस भागीदारी को और तेज़ किया है। डिजिटल विज्ञापन खर्च भी लगातार बढ़ रहा है - 2025 तक भारत का डिजिटल एड स्पेंड 13 अरब डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जिसमें बड़ा हिस्सा इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग का होगा।
यह इंडस्ट्री सिर्फ़ आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की भी कहानी है। छोटे कस्बों से निकलकर राष्ट्रीय पहचान पाने वाले कंटेंट क्रिएटर्स ने “डिजिटल लोकतंत्र” की नई परिभाषा गढ़ी है। अब वही लोग जो कभी दर्शक थे, आज कहानी कहने वाले बन गए हैं।
क्रिएटर इकॉनमी की यह लहर भारत के “आत्मनिर्भर भारत” और “डिजिटल इंडिया” मिशन के साथ गहराई से जुड़ी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि प्रशिक्षण, नीति और मानसिक स्वास्थ्य पर समान ध्यान दिया गया, तो यह क्षेत्र युवाओं के लिए रोजगार और आर्थिक योगदान का बड़ा साधन बनेगा।
भारत की क्रिएटर इकॉनमी सिर्फ़ एक डिजिटल ट्रेंड नहीं, बल्कि 21वीं सदी की सबसे प्रभावशाली सामाजिक और आर्थिक क्रांति बन रही है। हर मोबाइल स्क्रीन से निकलती यह रचनात्मक ऊर्जा उस भारत की पहचान है जो आत्मनिर्भर भी है और वैश्विक भी।
अब “कंटेंट” सिर्फ़ शौक नहीं, बल्कि करियर और देश की नई आर्थिक शक्ति बन चुका है । एक ऐसी ताकत, जो आने वाले दशक में भारत को डिजिटल महाशक्ति के रूप में स्थापित कर सकती है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

