शादी के बढ़ते खर्चों पर लगाम लगाने के लिए संयुक्त विवाह आयोजन बना नया ट्रेंड

शादी के बढ़ते खर्चों पर लगाम लगाने के लिए संयुक्त विवाह आयोजन बना नया ट्रेंड

प्रेषित समय :21:58:09 PM / Mon, Nov 17th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर.मध्य प्रदेश के शहरों, खासकर जबलपुर में, अब शादियों की भव्यता और लगातार बढ़ते खर्चों से निपटने के लिए एक नया और व्यावहारिक सामाजिक चलन जोर पकड़ रहा है। इसे 'कम्बाईन वेडिंग प्लानिंग'या संयुक्त विवाह योजना का नाम दिया गया है, जिसके तहत दूल्हा और दुल्हन दोनों पक्ष मिलकर शादी के कुल आयोजन और खर्चों को आपस में आधा-आधा (50-50%) बांट रहे हैं। यह सिर्फ एक वित्तीय साझेदारी नहीं है, बल्कि एक सामाजिक पहल के रूप में उभरी है जो फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाने के साथ-साथ दोनों परिवारों के बीच तालमेल और समानता की भावना को भी बढ़ा रही है।

पारंपरिक भारतीय शादियों में, अक्सर यह देखा जाता है कि दुल्हन पक्ष पर खर्च का अधिक भार पड़ता है, खासकर शादी के मुख्य समारोहों, स्वागत (रिसेप्शन) और उपहारों के मामले में। वहीं, दूल्हा पक्ष भी अपनी तरफ से बारात, खान-पान और अन्य आयोजनों पर भारी-भरकम राशि खर्च करता है। आधुनिक दौर में, जब डेस्टिनेशन वेडिंग्स और लग्जरी आयोजनों का चलन बढ़ा है, तब मध्यम वर्ग और यहां तक कि संपन्न परिवारों के लिए भी शादी का खर्च अक्सर बजट से बाहर हो जाता है, जिससे कई परिवारों पर कर्ज का बोझ भी बढ़ जाता है।

जबलपुर में यह 'कम्बाईन वेडिंग' ट्रेंड इसी वित्तीय दबाव का सीधा जवाब है। इस नई व्यवस्था में, सगाई से लेकर विदाई तक, सभी प्रमुख आयोजनों का खर्च दोनों परिवार एक संयुक्त कोष में डालते हैं और फिर उस कोष से ही वेंडर्स (कैटरिंग, डेकोरेशन, वेन्यू, फोटोग्राफी) को भुगतान किया जाता है। इस साझा जिम्मेदारी के कई फायदे सामने आ रहे हैं। सबसे पहले, यह दुल्हन के पिता पर पड़ने वाले ऐतिहासिक वित्तीय दबाव को कम करता है, जिससे शादी सिर्फ लेन-देन न होकर एक समान भागीदारी वाला उत्सव बन जाती है। दूसरा, संयुक्त प्लानिंग से परिवारों को बड़े और बेहतर वेन्यू बुक करने या हाई-प्रोफाइल कैटरिंग सेवाओं का चयन करने की सुविधा मिलती है, क्योंकि खर्च बट जाता है।

पिछले कुछ महीनों में, शहर के प्रमुख वेडिंग प्लानर्स ने इस तरह के संयुक्त आयोजन की बुकिंग में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। वेडिंग प्लानर दीपक अग्रवाल बताते हैं, "पहले, परिवार केवल प्री-वेडिंग शूट या रिसेप्शन में सहयोग करते थे, लेकिन अब हम देख रहे हैं कि दूल्हा और दुल्हन दोनों पक्ष पूरे विवाह समारोह, जिसमें फेरे और अन्य रस्में शामिल हैं, के वेन्यू, डेकोरेशन और भोजन का खर्च बराबर साझा कर रहे हैं। यह एक प्रगतिशील बदलाव है।"

मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विशेषज्ञ भी इस चलन को भारतीय विवाह प्रणाली के लिए एक स्वस्थ संकेत मानते हैं। समाजशास्त्री डॉ. अंजना सिंह का कहना है, "यह चलन केवल पैसे बचाने का नहीं है, यह रिश्तों में बराबरी लाने का प्रतीक है। जब दो परिवार शुरू से ही वित्तीय और रचनात्मक निर्णय साझा करते हैं, तो उनके बीच का तालमेल और सम्मान बढ़ता है। यह नई पीढ़ी के जोड़ों के लिए एक मजबूत नींव तैयार करता है जो समानता और साझेदारी पर आधारित संबंध चाहते हैं।"

इस मॉडल के तहत, परिवारों के बीच विवादों की गुंजाइश भी कम हो जाती है, क्योंकि सभी फैसले आम सहमति से लिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि दोनों परिवारों को 500 मेहमानों को आमंत्रित करना है, तो वे संयुक्त रूप से एक ऐसा वेन्यू बुक करते हैं जो 1000 मेहमानों को समायोजित कर सके। संयुक्त भोजन मेनू तैयार किया जाता है और डेकोरेशन की थीम भी दोनों की पसंद को ध्यान में रखकर तय की जाती है। यह दृष्टिकोण शादी को एक 'हमारा' आयोजन बनाता है, न कि 'आपका' या 'हमारा'।

कई युवा जोड़े जिन्होंने हाल ही में इस मॉडल को अपनाया है, वे इसके परिणामों से बेहद खुश हैं। हाल ही में संयुक्त रूप से विवाह करने वाले हर्षित और प्रिया बताते हैं कि इस योजना ने उन्हें अनावश्यक 'दिखावे' और 'समाज क्या कहेगा' वाले दबाव से मुक्ति दिलाई। हर्षित के पिता ने कहा, "हमने अपने खर्च के हिस्से को बचाने के बजाय, उसे वेडिंग इवेंट की गुणवत्ता सुधारने में लगाया। हम एक बेहतर कैटरर और एक शानदार डेकोरेशन बुक कर पाए, जो शायद अकेले संभव नहीं होता।" प्रिया की माता ने जोड़ा, "इस पहल से हमारी बेटी का रिश्ता और भी मजबूत हुआ, क्योंकि दूल्हे का परिवार शुरू से ही हमें बराबर का भागीदार मान रहा है। हमें किसी तरह के बोझ का अहसास नहीं हुआ।"

हालांकि, इस नए चलन को पूरी तरह से स्वीकार करने में अभी भी कुछ पारंपरिक परिवारों को दिक्कतें आ रही हैं। पुरानी सोच वाले कुछ रिश्तेदार अभी भी इस बात पर जोर देते हैं कि 'लड़की वाले' ही मुख्य खर्च उठाएँ। लेकिन नई पीढ़ी की समझदारी और वित्तीय जागरूकता के कारण यह विरोध धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। युवा जोड़े अब खुलकर अपने माता-पिता के सामने यह प्रस्ताव रख रहे हैं कि वे अपनी शादी के खर्चों में बराबरी की भागीदारी करें।

इस संयुक्त विवाह योजना का एक और अप्रत्यक्ष लाभ यह भी है कि इससे पर्यावरण पर पड़ने वाला बोझ कम होता है। चूंकि दोनों परिवार एक ही समारोह और एक ही रिसेप्शन का आयोजन करते हैं, इससे दो अलग-अलग भव्य आयोजनों की तुलना में कम संसाधनों का उपयोग होता है, कम भोजन बर्बाद होता है और कार्बन फुटप्रिंट भी घटता है। यह शादी को भव्यता से समझौता किए बिना 'अधिक टिकाऊ' बनाने की दिशा में एक कदम है।

जबलपुर से शुरू हुआ यह सामाजिक प्रयोग अब आसपास के अन्य शहरों, जैसे नरसिंहपुर और दमोह, में भी अपनी जड़ें जमा रहा है। यह प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दिखाती है कि भारतीय समाज अब दिखावे से ज्यादा समझदारी और सहयोग को महत्व दे रहा है। 'कम्बाईन वेडिंग प्लानिंग' सिर्फ खर्चों को बांटना नहीं है, बल्कि यह एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज की ओर बढ़ने का संकेत है, जहां वित्तीय दबाव की जगह आपसी सम्मान और सहयोग ने ले ली है। यह निश्चित रूप से भारतीय विवाह उद्योग में भविष्य की प्लानिंग का मॉडल बनने जा रहा है, जो संबंधों की शुरुआत को वित्तीय बोझ से मुक्त करेगा।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-