बीस मिनट की रोज़ाना सैर ने महंगे होम जिम को दी चुनौती दिल की सेहत पर नई बहस शुरू

बीस मिनट की रोज़ाना सैर ने महंगे होम जिम को दी चुनौती दिल की सेहत पर नई बहस शुरू

प्रेषित समय :22:02:27 PM / Tue, Nov 18th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

रोज़ाना मात्र 20 मिनट की सामान्य सैर क्या 10 लाख रुपये के आधुनिक होम जिम से ज़्यादा प्रभावी हो सकती है? यह सवाल पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया पर जोर पकड़ गया है, जब एक प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट ने दावा किया कि दिल को सुरक्षित रखने और लंबी उम्र के लिए रोज़ाना की सामान्य शारीरिक गतिविधि किसी भी महंगे फिटनेस उपकरण या हाई-टेक जिम सेटअप पर भारी पड़ सकती है। इंडियन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह बहस तब तेज़ हुई जब द इकोनॉमिक टाइम्स ने डॉक्टर के इस बयान को विस्तार से प्रकाशित किया। इसके बाद से हजारों यूज़र्स ने अपनी राय दी और कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी इस चर्चा में शामिल हो गए।

कार्डियोलॉजिस्ट का तर्क सीधा और सहज था—दिल को सक्रिय रखने के लिए शरीर का नियमित रूप से चलना ही पर्याप्त है। उनके अनुसार, इंसानी शरीर का ढांचा ऐसे बनाया गया है कि हल्की–फुल्की निरंतर गतिविधियाँ, जैसे चलना, सीढ़ियाँ चढ़ना, हल्के घरेलू काम करना या धीमी दौड़, हार्ट फंक्शन को बेहतर बनाए रखने में सबसे अधिक मदद करती हैं। उनका कहना है कि दिन में सिर्फ 20 मिनट की तेज़ चाल से चलना, 10 लाख रुपये के ट्रेडमिल, क्रॉस-ट्रेनर, मल्टी-जिम सेट या हाई-टेक फिटनेस गैजेट्स से बेहतर रिज़ल्ट दे सकता है, क्योंकि यह आदत जीवनशैली का हिस्सा बन जाती है, जिसे हर व्यक्ति निभा सकता है।

इस बयान के बाद से आम लोगों में यह बहस छिड़ गई कि आखिर क्यों इतनी साधारण सी गतिविधि को महंगे जिम सेटअप पर प्राथमिकता दी जा रही है। डॉक्टरों ने इसका वैज्ञानिक आधार भी बताया। उनका कहना है कि हार्ट का स्वास्थ्य सबसे पहले उसकी निरंतरता पर निर्भर करता है, न कि उस पर लगे तनाव या स्ट्रेंथ ट्रेनिंग पर। सैर जैसे हल्के व्यायाम से शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है, ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है और दिल की मांसपेशियाँ मजबूत होने लगती हैं। खास बात यह कि इसमें चोट लगने, मांसपेशियों के खिंचाव या अत्यधिक थकावट का जोखिम लगभग नहीं के बराबर रहता है।

वहीं जिम पर आधारित वर्कआउट की बात करें, तो इसके लिए समय, निरंतरता, पेशेवर मार्गदर्शन, सही तकनीक और उपकरणों के ज्ञान की जरूरत होती है। कई बार लोग महंगी मशीनें खरीद तो लेते हैं, पर कुछ ही महीनों में उनका उपयोग बंद कर देते हैं। दूसरी ओर, रोज़ाना 20 मिनट की वॉक न किसी ट्रेनर की मांग करती है, न किसी उपकरण की। इसे कहीं भी, कभी भी किया जा सकता है। यह बिना खर्च वाला ऐसा व्यायाम है जो किसी भी उम्र में आसानी से शुरू किया जा सकता है।

भारत जैसे देश में, जहां दिल संबंधी बीमारियाँ लगातार बढ़ रही हैं और युवाओं में हार्ट अटैक के मामलों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ी है, ऐसे में डॉक्टर का यह बयान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी, बढ़ती मानसिक तनाव, खराब खान-पान और बैठकर काम करने की आदतों ने युवाओं में हार्ट डिज़ीज़ का जोखिम बढ़ा दिया है। उनमें से कई लोग घंटों जिम में बिताते हैं, लेकिन बाकी दिन बिल्कुल निष्क्रिय रहते हैं, जिसे डॉक्टर "कम्पनसेटेड सेडेंटरी लाइफस्टाइल" कहते हैं। यानी व्यक्ति जिम के एक घंटे के अलावा पूरे दिन बैठे रहते हैं, जिससे हार्ट पर असमान भार पड़ता है और व्यायाम के फायदे कम हो जाते हैं।

इसी संदर्भ में वॉकिंग एक सरल समाधान बनकर सामने आती है। दिनभर में कई बार 5-5 मिनट चलना भी उतना ही असरदार माना जाता है जितना एक बार में 20 मिनट की सैर। डॉक्टरों का कहना है कि नियमित वॉकिंग न केवल दिल बल्कि फेफड़ों, हड्डियों, प्रतिरक्षा प्रणाली, मानसिक स्वास्थ्य और मधुमेह नियंत्रण के लिए भी बेहद प्रभावी है। कई रिसर्च स्टडी भी इस बात की पुष्टि करती हैं कि वॉकिंग से कोलेस्ट्रॉल स्तर कम होता है, नींद बेहतर होती है और अवसाद जैसे मानसिक विकारों पर भी सकारात्मक असर पड़ता है।

डॉक्टरों की ओर से यह भी कहा गया कि महंगे जिम की तुलना करना सही नहीं, क्योंकि जिम का अपना महत्व है। लेकिन सवाल यह है कि दिल के स्वास्थ्य के संदर्भ में प्राथमिकता किसे दी जाए। महंगे फिटनेस उपकरण अक्सर एक निश्चित वर्ग तक सीमित रहते हैं, जबकि वॉकिंग हर व्यक्ति की पहुंच में है। खासकर ऐसे समय में जब आर्थिक असमानता बढ़ रही है और जिम सदस्यता शुल्क कई लोगों के लिए भारी खर्च साबित होता है, वॉकिंग का विकल्प एक ऐसी राह खोलता है जिसे हर कोई बिना किसी बाधा के अपना सकता है।

वॉकिंग की सबसे बड़ी खासियत इसकी स्थिरता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जो व्यायाम लंबे समय तक जारी रखा जा सके वही सबसे उपयोगी है। लोग अक्सर नए साल में जिम जॉइन करते हैं, दो–चार महीने जाते हैं और फिर छोड़ देते हैं। लेकिन वॉकिंग की प्रकृति ऐसी है कि इसे छोड़ना मुश्किल होता है। यह एक आदत बन जाती है, जिसका मानसिक और सामाजिक दोनों लाभ मिलता है। कई शहरों में मॉर्निंग वॉकर्स क्लब बन चुके हैं, जहां बुजुर्ग, युवा और महिलाएँ एक साथ सैर करने निकलते हैं। इससे एक समुदाय भावना भी बनती है, जो निरंतरता बनाए रखने में मदद करती है।

सोशल मीडिया पर कई यूज़र्स ने डॉक्टर के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने वर्षों तक जिम किया, लेकिन वॉकिंग शुरू करने के बाद ही उन्हें नींद, ऊर्जा और तनाव नियंत्रण में वास्तविक सुधार दिखाई दिया। कुछ लोगों ने व्यंग्य करते हुए यह भी लिखा कि डॉक्टर के इस बयान ने हजारों फिटनेस कंपनियों को बेचैन कर दिया है। कई यूज़र्स ने मजाक में यह भी कहा कि "घर–घर में रखे पड़े धूल खा रहे ट्रेडमिल को आखिरकार सम्मान मिल गया", जबकि कुछ ने पूछा कि "क्या अब बड़ी फिटनेस कंपनियाँ वॉकिंग शूज़ के विज्ञापन ज्यादा बनाएंगी?"

हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि पूरी तरह जिम को गलत ठहराना भी ठीक नहीं है। स्ट्रेन्थ ट्रेनिंग शरीर की मांसपेशियों, हड्डियों और बीएमआर के लिए जरूरी है। लेकिन यह बात स्वीकार की जा रही है कि केवल जिम पर निर्भर रहना और दिनभर निष्क्रिय रहना, दोनों ही दिल के लिए नुकसानदायक हैं। व्यायाम का संतुलित फार्मूला तभी पूरा होता है जब व्यक्ति दिनभर में लगातार हलचल करता रहे, और वॉकिंग उसका सबसे सरल तरीका है।

इस बहस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दिल की सेहत के लिए जीवनशैली में मामूली बदलाव भी बहुत बड़ा अंतर पैदा कर सकते हैं। डॉक्टरों का संदेश साफ है—जितना चलेंगे, उतनी ज़िंदगी बेहतर होगी। चाहे आप जिम में जाएँ या न जाएँ, पर रोज़ाना 20 मिनट की वॉक को अपनी दिनचर्या में शामिल करना हर किसी के लिए संभव और जरूरी कदम है।

अगर भविष्य में और रिसर्च सामने आती हैं, तो यह चर्चा और भी दूर तक जाएगी। लेकिन फिलहाल, एक बात तय है—दिल की रक्षा में महंगी मशीनों से पहले चलना आता है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-