पटना. बिहार में हालिया विधानसभा चुनावों के बाद बनी नई सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी पहली बार उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को सौंपने के निर्णय ने न केवल सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है, बल्कि राज्य की कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर एक बड़ा बदलाव भी ला दिया है. सम्राट चौधरी ने गृह मंत्रालय का प्रभार संभालते ही जिस 'एक्शन मोड' में काम करना शुरू किया है, उससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या बिहार अब अपराध से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तर्ज पर 'एनकाउंटर नीति' अपनाएगा. प्रभार संभालने के मात्र दो दिनों के भीतर, राज्य में पुलिस और अपराधियों के बीच दो लगातार मुठभेड़ें (एनकाउंटर) हो चुकी हैं, जो सीधे तौर पर नई नेतृत्व शैली को दर्शाती हैं.
विधानसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले, बिहार की कानून-व्यवस्था पर विपक्ष ने तीखे सवाल उठाने शुरू कर दिए थे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 'सुशासन बाबू' वाली छवि को लेकर भी संदेह व्यक्त किए जा रहे थे. मोकामा में हुई दुलारचंद यादव की हत्या ने तो चुनावी माहौल को और भी अधिक गरमा दिया था. इन चुनौतियों के बीच, नीतीश कुमार ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए गृह मंत्रालय अपने पास न रखकर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को सौंप दिया. सम्राट चौधरी इस जिम्मेदारी को लेते ही, त्वरित और सख्त कार्रवाई के माध्यम से, नीतीश कुमार द्वारा स्थापित 'सुशासन' की छवि को एक बार फिर बहाल करने की पुरजोर कोशिश करते नज़र आ रहे हैं. उनका यह रुख साफ इशारा करता है कि अब बिहार में अपराधियों के लिए ज़मीन सिमटने वाली है.
बिहार में पिछले 48 घंटों में हुई दो पुलिस मुठभेड़ों के बाद सोशल मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच यह चर्चा गर्म हो गई है कि क्या बिहार पुलिस भी अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के समान 'एक्शन' में आ गई है. उत्तर प्रदेश में जिस तरह से संगठित अपराधियों से निपटने के लिए एनकाउंटर नीति अपनाई जाती रही है, ठीक उसी तर्ज पर बिहार पुलिस का यह एक्शन मोड सवाल खड़े कर रहा है कि क्या राज्य सरकार ने अब अपराधियों से निपटने के लिए एक कठोर और स्पष्ट रणनीति अपना ली है. ये सवाल इसलिए भी प्रासंगिक हो जाते हैं क्योंकि दशकों से बिहार में गृह मंत्रालय का प्रभार मुख्यमंत्री के पास ही रहा है और यह पहली बार है जब यह जिम्मेदारी इतनी सख्ती से किसी अन्य मंत्री को दी गई है.
अपराधियों के खिलाफ पुलिस का यह अभियान बेगूसराय जिले से शुरू हुआ, जिसे अक्सर बाहुबलियों और आपराधिक गतिविधियों का गढ़ माना जाता है. सबसे ताजा कार्रवाई साहेबपुर कमाल थाना क्षेत्र में हुई, जहाँ बिहार एसटीएफ (STF) और जिला पुलिस ने मिलकर एक संयुक्त अभियान चलाया. इस अभियान में कुख्यात अपराधी शिवदत्त राय को गिरफ्तार किया गया. हालांकि, गिरफ्तारी से ठीक पहले, देर रात मल्हीपुर और शालीग्रामी गाँव के बीच बदमाशों और पुलिस के बीच भीषण मुठभेड़ हुई, जिसमें बदमाश शिवदत्त राय गोली लगने से घायल हो गया. उसे तत्काल इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है. यह कार्रवाई स्पष्ट संदेश देती है कि नई सरकार में अपराधियों को समर्पण के बजाय मुठभेड़ का सामना करना पड़ेगा.
इससे दो दिन पहले भी, बेगूसराय जिले के तेघड़ा इलाके में एक और मुठभेड़ हो चुकी थी. दियारा नदी के किनारे कुख्यात बदमाश नीरज सिंह उर्फ नीरज बॉस और उसके साथियों के साथ पुलिस की मुठभेड़ हुई थी. इस मुठभेड़ में भी गोली लगने से बदमाश नीरज बॉस घायल हो गया, जिसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. हालांकि, नीरज बॉस के तीन-चार साथी मौके से भागने में सफल रहे थे, जिनकी तलाश में पुलिस सघन छापेमारी कर रही है. दो दिनों में दो बड़े और कुख्यात अपराधियों का मुठभेड़ में घायल होना और पकड़ा जाना, पुलिस के बदले हुए आक्रामक तेवर को प्रमाणित करता है.
बेगूसराय में हुए इन एनकाउंटरों के बाद गृहमंत्री सम्राट चौधरी ने मीडिया से बात करते हुए सरकार की मंशा साफ कर दी. उन्होंने दृढ़ता से कहा कि "किसी भी कीमत पर बिहार में सुशासन को स्थापित करना है." उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने पिछले 20 साल से बिहार में लगातार सुशासन का राज स्थापित किया है और इसे बनाए रखना उनकी प्राथमिकता है. सम्राट चौधरी ने स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मार्गदर्शन में पूरे बिहार में सुशासन की व्यवस्था कायम रखी जाएगी और अपराधियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा. उनका यह बयान नई गृह नीति की पुष्टि करता है.
यूपी स्टाइल एनकाउंटर की चर्चा इसलिए भी उठ रही है क्योंकि योगी आदित्यनाथ सरकार के पिछले कई वर्षों में अपराध के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस नीति और लगातार एनकाउंटर ने राष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ी थी. अब जब बिहार में भी पुलिस ने अचानक अपराधियों पर शिकंजा कसना शुरू किया है, तो इसे उसी तर्ज पर देखा जा रहा है. हालांकि, इस पर आधिकारिक तौर पर कोई रणनीति घोषित नहीं की गई, लेकिन पुलिस की एक्शन मोड में दिखाई देने वाली तत्परता ने लोगों के मन में सवाल जरूर खड़ा कर दिए हैं.
गृहमंत्री के तौर पर पहले बड़े एक्शन के बाद सम्राट चौधरी ने साफ कहा कि बिहार में सुशासन को किसी भी कीमत पर बनाए रखना उनकी प्राथमिकता है. उन्होंने दावा किया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले 20 वर्षों में कानून-व्यवस्था को लेकर एक मिसाल कायम की है और उनकी कोशिश होगी कि उन्हें और भी मजबूती के साथ आगे बढ़ाया जाए. उन्होंने यह भी कहा कि पूरा गृह विभाग तत्काल प्रभाव से एक्शन मोड में है और अपराधियों को किसी कीमत पर छोड़ा नहीं जाएगा.
बिहार में आमतौर पर गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री के पास ही रहा है. 2005 से लेकर 2025 तक लगभग हर कार्यकाल में नीतीश कुमार ने स्वयं गृह विभाग की जिम्मेदारी संभाली. केवल 2014-15 के बीच जब जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने भी गृह मंत्रालय अपने पास रखा था. इससे पहले राबड़ी देवी और लालू प्रसाद यादव ने भी CM रहते हुए गृह मंत्रालय की कमान नहीं छोड़ी. ऐसे में 2025 में नीतीश कुमार का यह फैसला राजनीतिक दृष्टि से भी बड़ा माना जा रहा है. यह कदम सम्राट चौधरी को अधिक अधिकार देने और NDA सरकार के भीतर शक्ति संतुलन को नया आयाम देने की दिशा में भी देखा जा रहा है.
इतिहास पर नजर डालें तो बिहार में 60 और 70 के दशक में कुछ ही अवसरों पर गृह मंत्रालय किसी अलग मंत्री को दिया गया था. गठबंधन सरकारों के दौर में दिसंबर 1970 में कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री रहते रामानंद तिवारी को गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी, पर इसके बाद अधिकांश समय गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास ही रहा.
मौजूदा राजनीतिक और प्रशासनिक माहौल में एनकाउंटर की बढ़ती घटनाएं राज्य की अपराध-रोधी नीति में बड़े बदलाव का संकेत दे रही हैं. क्या यह बदलाव स्थायी होगा या सिर्फ चुनावी मौसम में सख्ती दिखाने का प्रयास है, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा. लेकिन फिलहाल इतना तय है कि सम्राट चौधरी ने गृह मंत्रालय संभालने के साथ ही अपनी कार्यशैली का दमदार संकेत दे दिया है—अपराधियों के खिलाफ बिना किसी ढिलाई के कड़ा एक्शन.
राजनीतिक गलियारों में कई पार्टियां इसे चुनावी रणनीति भी मान रही हैं. कुछ विपक्षी नेताओं ने कहा कि सरकार एनकाउंटर के नाम पर पुलिस को खुली छूट देकर मनमानी का रास्ता खोल देगी, जबकि समर्थक इसे सुशासन की वापसी मान रहे हैं. जनता के बीच भी इसे लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं—कुछ इसे अपराध पर नियंत्रण का कारगर तरीका मानते हैं, तो कुछ इसे पुलिस की आक्रामकता का खतरनाक रूप बताते हैं.
फिलहाल बिहार में कानून-व्यवस्था को लेकर बढ़ती सख्ती ने सूबे का राजनीतिक तापमान जरूर बढ़ा दिया है. आने वाले समय में यह अभियान कितना आगे जाएगा और इसका अपराध ग्राफ पर क्या असर पड़ेगा, यह देखना दिलचस्प होगा. इतना साफ है कि सम्राट चौधरी के एक्शन ने बिहार की राजनीति को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है, जहां सुशासन बनाम एनकाउंटर मॉडल की नई बहस शुरू हो चुकी है.
सम्राट चौधरी को यह जिम्मेदारी मिलना और उनका त्वरित एक्शन दिखाता है कि नीतीश कुमार ने उन्हें 'सुशासन बाबू' की विरासत को बहाल करने के लिए खुली छूट दी है, जिससे बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो गया है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

