संसद सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए CISF ने बदली तैनाती नीति, अवधि बढ़ाकर चार साल की, मनोवैज्ञानिक आकलन भी अनिवार्य

संसद सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए CISF ने बदली तैनाती नीति, अवधि बढ़ाकर चार साल की, मनोवैज्ञानिक आकलन भी अनिवार्य

प्रेषित समय :21:36:59 PM / Thu, Nov 27th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) ने संसद भवन परिसर में तैनात अपने कर्मियों के कार्यकाल और तैनाती की नीति में बड़ा बदलाव किया है. यह कदम कई सांसदों की ओर से सुरक्षा कर्मियों के साथ सहजता और समन्वय में कमी संबंधी शिकायतों के बाद उठाया गया है. अधिकारियों के अनुसार, अब संसद भवन में तैनात कर्मियों का कार्यकाल मौजूदा तीन साल से बढ़ाकर न्यूनतम चार साल कर दिया गया है. इसके अलावा, अब केवल उन्हीं कर्मियों को यहां तैनात किया जाएगा, जिनका सेवा रिकॉर्ड बेदाग होगा और जो मनोवैज्ञानिक आकलन  परीक्षा पास करेंगे.

सीआईएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य ड्यूटी पर तैनात कर्मियों की सांसदों, संसदीय कार्यप्रणाली और परिसर की सुरक्षा जरूरतों से परिचित को बढ़ाना है. सांसदों ने शिकायत की थी कि तीन साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सुरक्षा कर्मी परिसर के विशिष्ट प्रोटोकॉल और सांसदों की जरूरतों को ठीक से समझ नहीं पाते, जिससे कई बार अनजाने में संवादहीनता या असहजता की स्थिति पैदा हो जाती है. कार्यकाल को चार साल तक बढ़ाने से कर्मियों को परिसर की कार्यशैली को गहराई से समझने और सांसदों के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करने का पर्याप्त समय मिल सकेगा.

अधिकारी ने बताया कि सुरक्षा मानकों को और मजबूत करने के लिए, नई नीति में कर्मियों के चयन के मानदंडों को काफी सख्त किया गया है. अब, केवल उन्हीं सीआईएसएफ कर्मियों को संसद में तैनाती के लिए चुना जाएगा जिनका सेवा रिकॉर्ड पूरी तरह से 'स्वच्छ' होगा. इसका मतलब है कि ड्यूटी पर लापरवाही या किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार की कोई शिकायत उनके खिलाफ नहीं होनी चाहिए.

नई नीति का सबसे महत्वपूर्ण और नया पहलू 'मनोवैज्ञानिक आकलन'  को अनिवार्य बनाना है. संसद भवन देश के सबसे संवेदनशील और प्रतिष्ठित स्थानों में से एक है, जहां लगातार उच्च-दांव वाले राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी माहौल में काम करना होता है. ऐसे में, सुरक्षा कर्मियों के लिए तनाव प्रबंधन, निर्णय लेने की क्षमता और सार्वजनिक व्यवहार में उत्कृष्टता आवश्यक है. सीआईएसएफ अधिकारियों का मानना है कि मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन यह सुनिश्चित करेगा कि परिसर में तैनात कर्मियों में उच्च स्तर का धैर्य, संयम और भावनात्मक स्थिरता हो, जिससे वे सांसदों और अन्य आगंतुकों के साथ शिष्टता और पेशेवर तरीके से व्यवहार कर सकें.

नई नीति में तैनाती की अवधि बढ़ाने के साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि केवल वे ही CISF कर्मी संसद परिसर में तैनात किए जाएंगे जिनका सेवा रिकॉर्ड पूरी तरह साफ-सुथरा हो और जो मनोवैज्ञानिक परीक्षण में सफल हों. अधिकारियों के मुताबिक संसद जैसे अति-संवेदनशील और राष्ट्रीय महत्व के संस्थान की सुरक्षा में ऐसे कर्मियों की आवश्यकता होती है जिनमें न केवल तकनीकी दक्षता हो, बल्कि उच्च स्तर की मानसिक स्थिरता, विवेक, संवेदनशीलता और तनाव सहने की क्षमता भी हो. यह जांच सुनिश्चित करेगी कि किसी भी प्रकार की मानसिक असंगति या दबाव सुरक्षा की कमजोरी में न बदले.

संसद की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पिछले कुछ वर्षों में कई बार बहस छिड़ी है. संसद परिसर में सांसदों और सुरक्षा कर्मियों के बीच तालमेल की कमी, पहचान प्रक्रिया के दौरान पैदा होने वाली असहज स्थितियां और अचानक बदलते सुरक्षा प्रोटोकॉल जैसी समस्याओं को सदस्यों ने कई बार उठाया है. इसके अलावा नए संसद भवन के निर्माण, परिसर के फैलाव और आगंतुकों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ सुरक्षा तंत्र पर दबाव भी बढ़ा है. इसे देखते हुए सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय और कर्मियों की स्थिर तैनाती को लेकर मांग बढ़ी थी.

CISF के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार यह निर्णय विस्तृत समीक्षा और फीडबैक के आधार पर लिया गया है. कई सांसदों ने शिकायत की थी कि सुरक्षा कर्मियों का बार-बार बदलना उनके साथ संवाद को प्रभावित करता है. सांसदों के अनुसार सुरक्षा कर्मियों के चेहरे और व्यवहार की पहचान का अपना महत्व है, जिससे प्रवेश प्रक्रिया सहज रहती है और किसी भी संदिग्ध गतिविधि को तुरंत पहचानने में आसानी होती है. तैनाती अवधि बढ़ाने से सुरक्षा कर्मी परिसर की गतिशीलता, सांसदों के नियमित रूटीन, आने-जाने के रास्तों और सुरक्षा की सूक्ष्म आवश्यकताओं से बेहतर परिचित हो सकेंगे.

एक अधिकारी ने बताया कि मनोवैज्ञानिक परीक्षण की व्यवस्था पहले भी मौजूद थी, लेकिन अब इसे अधिक कठोर और अनिवार्य बनाया गया है. यह परीक्षण सिर्फ तनाव प्रबंधन या निर्णय क्षमता ही नहीं देखता, बल्कि यह भी मूल्यांकन करता है कि सुरक्षा कर्मी संसद जैसी अत्यंत संवेदनशील जगह पर काम करने के लिए कितने उपयुक्त हैं. संसद भवन में हर पल सतर्कता, अत्यधिक धैर्य और हर प्रकार की स्थिति का अनुमान लगाने की क्षमता आवश्यक होती है. मनोवैज्ञानिक रूप से सक्षम कर्मी संभावित जोखिमों को बेहतर समझ सकते हैं और तकनीकी प्रशिक्षण के साथ मिलकर वे समग्र सुरक्षा कवच को अधिक प्रभावी बनाते हैं.

संसद सुरक्षा को लेकर पिछले वर्षों में कई घटनाओं ने चिंता बढ़ाई थी. दिसंबर 2023 में हुए सुरक्षा उल्लंघन के बाद भी संसद सुरक्षा को लेकर नए मानक और प्रशिक्षण मॉड्यूल तेज़ी से लागू किए गए थे. हालांकि, तब से अब तक कई प्रोटोकॉल अपडेट हुए हैं, लेकिन कर्मियों की स्थिरता और मानसिक योग्यता सुनिश्चित करने की मांग निरंतर बढ़ती रही. अब तैनाती अवधि बढ़ाने और साफ रिकॉर्ड वाले कर्मियों को प्राथमिकता देने की नीति उस बहस को कुछ हद तक संतुलित कर सकती है.

CISF अधिकारियों के अनुसार संसद परिसर में तैनाती देश की सबसे संवेदनशील नियुक्तियों में से एक मानी जाती है. यहां न सिर्फ देश के विधायकों और मंत्रियों की सुरक्षा का प्रश्न होता है, बल्कि यह लोकतंत्र की प्रतिष्ठा से जुड़ी जिम्मेदारी भी है. ऐसे में कर्मियों को यह जिम्मेदारी देने से पहले हर स्तर की जांच और तैयारी अनिवार्य है. कार्यकाल बढ़ाने से न केवल सुरक्षा में निरंतरता आएगी बल्कि कर्मियों को अपने अनुभव को बेहतर ढंग से इस्तेमाल करने का समय भी मिलेगा.

नई नीति से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि अब संसद सुरक्षा में तैनात कर्मियों पर निरंतर आकलन की प्रणाली लागू की जाएगी. मनोवैज्ञानिक परीक्षण केवल तैनाती से पहले ही नहीं बल्कि कार्यकाल के दौरान भी समय-समय पर किए जाएंगे, ताकि कर्मियों की मानसिक स्थिति स्थिर बनी रहे. यह कदम सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा सराहा गया है, क्योंकि लंबे समय तक अत्यधिक सतर्क वातावरण में काम करने से मानसिक थकान या तनाव की संभावना बढ़ जाती है. नियमित मूल्यांकन से ऐसे किसी भी जोखिम की पहचान समय रहते की जा सकेगी.

नीति बदलाव के बाद कर्मियों के प्रशिक्षण मॉड्यूल में भी संशोधन किया जा रहा है. संसद परिसर की नई संरचना, सुरक्षा उपकरणों, डिजिटल प्रविष्टि प्रणाली और वीआईपी सुरक्षा प्रोटोकॉल को देखते हुए कर्मियों को अद्यतन प्रशिक्षण दिया जाएगा. अधिकारियों ने बताया कि MPs के साथ संवाद कौशल, शिष्टाचार, त्वरित पहचान क्षमता और संकट प्रबंधन भी प्रशिक्षण के अहम हिस्से होंगे.

MPs की शिकायतों के संदर्भ में अधिकारियों ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कदम सिर्फ सदस्यों की सहजता के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक ढांचे को मजबूत करने के लिए है. किसी भी लोकतांत्रिक स्थान में सुरक्षा के नाम पर अनावश्यक कठोरता और असहजता दोनों ही अवांछनीय मानी जाती हैं. इस संतुलन को बनाए रखने के लिए सुरक्षा कर्मियों का अनुभव, व्यवहार और परिपक्वता महत्वपूर्ण होती है. कार्यकाल बढ़ने से कर्मियों में स्थिरता आएगी, जिससे अनावश्यक टकराव या भ्रम की स्थिति कम होगी.

इस नीति परिवर्तन को कई विशेषज्ञ संसद सुरक्षा में बड़ा सुधार मान रहे हैं. उनका कहना है कि स्थिर और अनुभवी बल न केवल बेहतर सुरक्षा देता है बल्कि आपात स्थितियों में अधिक दक्षता से प्रतिक्रिया करता है. संसद जैसे स्थान पर तैनाती में केवल तकनीकी ज्ञान ही काफी नहीं, बल्कि वातावरण की गहरी समझ, निरंतर सतर्कता और संस्थागत संस्कृति की जानकारी भी जरूरी होती है, जो लंबी तैनाती में सहजता से विकसित हो पाती है.

इस प्रकार CISF द्वारा संसद सुरक्षा नीति में किया गया यह बदलाव सुरक्षा तंत्र को अधिक पेशेवर, उत्तरदायी और आधुनिक बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. सांसदों की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए और सुरक्षा की जरूरतों का व्यापक विश्लेषण करने के बाद लिया गया यह निर्णय आने वाले समय में संसद परिसर में अधिक स्थिर, पारदर्शी और संवेदनशील सुरक्षा ढांचा तैयार करने में सहायक हो सकता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-