टीम इंडिया की टेस्ट क्रिकेट में हालिया पराजय ने भारतीय क्रिकेट की चयन प्रणाली, टीम प्रबंधन और रणनीति पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 2-0 की करारी हार के बाद चारों ओर आलोचना का माहौल है और मुख्य कोच गौतम गंभीर के साथ चयनकर्ता अजीत अगरकर भी कठघरे में हैं। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि एक वर्ष के भीतर भारत को घरेलू सरजमीं पर यह दूसरा क्लीन स्वीप झेलना पड़ा है—पहले न्यूज़ीलैंड के हाथों और अब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ। भारतीय क्रिकेट के लिए यह एक ऐसा दौर है जहां संक्रमण चरण से टीम का गुजरना अपेक्षित था, लेकिन विराट कोहली, रोहित शर्मा और रविचंद्रन अश्विन जैसे दिग्गजों के बाद टीम के पुनर्निर्माण की यात्रा अप्रत्याशित रूप से कठिन साबित हो रही है।
टीम के बल्लेबाज जहां स्पिन फ्रेंडली पिचों पर भी संघर्ष करते दिखे, वहीं गेंदबाज भी घरेलू परिस्थितियों का लाभ उठाने में नाकाम रहे। भारत की बैटिंग लाइन-अप लगातार अस्थिर दिखी और स्पिन के सामने युवा खिलाड़ी सहजता से टिक नहीं पाए। स्टैंड-इन खिलाड़ियों और नए चेहरों से उम्मीदें थीं, लेकिन कोई भी लंबे समय तक अपनी जगह पक्की करने जैसा प्रदर्शन नहीं कर सका। इसी कड़ी में अब भारतीय क्रिकेट हलकों में यह बहस तेज़ हो गई है कि क्या भारत ने बहुत जल्दबाज़ी में अपने ‘डायमंड्स’ को खो दिया?
पूर्व भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने टीम की मौजूदा स्थिति पर बेहद तीखी प्रतिक्रिया दी है। अपनी टिप्पणी में उन्होंने टीम प्रबंधन पर अस्पष्ट नीतियों, कमजोर योजना और वरिष्ठ खिलाड़ियों के साथ अपर्याप्त संवाद का आरोप लगाया। कैफ का दावा है कि विराट कोहली, रोहित शर्मा और रविचंद्रन अश्विन जैसे अनुभवी और बेहद सफल खिलाड़ियों को हटाने या उन्हें रिटायरमेंट की ओर धकेलने के फैसले ने टीम इंडिया को अस्थिरता के दलदल में धकेल दिया। कैफ के अनुसार, यदि संवाद और पारदर्शिता होती, तो कोहली और अश्विन दोनों को रोका जा सकता था और टीम के लिए एक संतुलित संक्रमण योजना बनाई जा सकती थी।
कैफ ने अपने यूट्यूब चैनल पर कहा कि न्यूज़ीलैंड के खिलाफ 3-0 की हार के बाद भी टीम प्रबंधन ने अपनी आँखें नहीं खोलीं। उन्होंने यह भी कहा कि सरफराज खान का घरेलू क्रिकेट में 150 रन बनाना भी चयनकर्ताओं का दिल नहीं पिघला पाया और उन्हें टीम में जगह नहीं मिली। गुवाहाटी टेस्ट में हुई ग़लतियों को याद करते हुए कैफ ने बताया कि वॉशिंगटन सुंदर को बल्लेबाजी क्रम में नंबर 3 पर भेजा गया, जबकि बाद में उन्हें नंबर 8 पर उतारा गया। कैफ ने इसे टीम के अंदर भ्रमित रणनीति का सबसे बड़ा उदाहरण बताया। उनके अनुसार, यह कबूलना मुश्किल है कि एक ही टीम में सुंदर को इतनी असंगत भूमिकाएँ कैसे दी गईं।
उन्होंने आगे कहा कि टेस्ट क्रिकेट में नंबर 3 की स्थायी समस्या अब भी जस की तस बनी हुई है और चेतेश्वर पुजारा जैसा भरोसेमंद खिलाड़ी आज भी भारत के पास नहीं है। यह स्थिति और ज्यादा गंभीर तब लगने लगती है, जब टीम में प्रयास किए जा रहे युवा खिलाड़ियों को भी स्थिरता से अवसर नहीं मिल रहे। कैफ ने कहा कि भारत ने अश्विन और जडेजा की उस पुरानी विश्वसनीय जोड़ी को नजरअंदाज किया है, जो भारतीय परिस्थितियों में अकेले दम पर मैच जीताने की क्षमता रखती थी। उनकी राय में भारत द्वारा छह गेंदबाजों को खिलाने की रणनीति पूरी तरह भ्रमित करने वाली है और इससे टीम का बैलेंस बिगड़ गया है।
कैफ ने ऑस्ट्रेलिया के 2004 के भारत दौरे का उदाहरण देकर बताया कि तब ऑस्ट्रेलिया ने केवल चार मुख्य गेंदबाजों—मैक्ग्रा, ली, गिलेस्पी और वॉर्न—के साथ खेलते हुए भी शानदार परिणाम हासिल किए थे, क्योंकि टीम बैलेंस सात विशेषज्ञ बल्लेबाजों और चार प्रमुख गेंदबाजों पर आधारित था। कैफ ने कहा कि आज भारत इसके बिल्कुल उलट दिशा में चल रहा है, जहां छह गेंदबाजों के साथ खेलकर भी टीम कोई ठोस रणनीति नहीं बना पा रही है।
टीम इंडिया की मौजूदा टेस्ट रणनीति में गंभीर बदलाव नजर आ रहे हैं। गंभीर के कोच बनने के बाद टीम में बल्लेबाजी की गहराई बढ़ाने की कोशिश की गई है, जिसके लिए ऑलराउंडरों की संख्या में बढ़ोतरी की गई। लेकिन विशेषज्ञ खिलाड़ियों की कीमत पर ऐसा करना टीम की नींव को कमजोर कर रहा है। युवा खिलाड़ियों को लगातार मौके मिलने के बावजूद उनका अनिश्चित प्रदर्शन चयनकर्ताओं और टीम प्रबंधन के लिए कठिनाइयाँ पैदा कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ अनुभवी खिलाड़ियों का अचानक बाहर होना टीम के आत्मविश्वास और स्थिरता पर असर डाल रहा है।
भारत की हार के बाद सोशल मीडिया और क्रिकेट सर्कल्स में भी यह चर्चा तेज है कि क्या चयनकर्ता अजीत अगरकर अपने फैसलों में पर्याप्त assertive नहीं हो पा रहे, या फैसलों पर कोच की छाप ज़रूरत से ज़्यादा हावी है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक चयन और टीम प्रबंधन की दिशा स्पष्ट नहीं होगी, भारतीय टेस्ट टीम एक लंबे संक्रमण काल में फंसी रह सकती है।
टीम की बल्लेबाजी में नंबर 3 की समस्या के साथ-साथ ओपनिंग और मिडिल ऑर्डर की अनिश्चितता भी टीम की हार का बड़ा कारण बनी है। गेंदबाजी में भी भारत का प्रदर्शन उम्मीदों के विपरीत रहा। तेज गेंदबाजों ने शुरुआती ओवरों में प्रभाव नहीं छोड़ा और स्पिनरों ने घरेलू परिस्थितियों का फायदा नहीं उठा सके। टेस्ट क्रिकेट में भारत के पारंपरिक मजबूत पक्ष—टर्निंग पिचों पर अटैकिंग स्पिन—का लाभ इस बार बिल्कुल नहीं दिखा।
भारतीय क्रिकेट का भविष्य अभी भी युवा खिलाड़ियों पर निर्भर है, लेकिन यह स्पष्ट है कि संक्रमण को सफल बनाने के लिए सुदृढ़ योजना, पारदर्शिता और वरिष्ठ खिलाड़ियों के अनुभव का समुचित उपयोग जरूरी है। कोहली, रोहित और अश्विन जैसे स्तंभ खिलाड़ियों के बाद टीम के पास वैसा ही नेतृत्व और भरोसा कायम करने वाली नई पीढ़ी अब तक नहीं उभर सकी है। कैफ की टिप्पणी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय टेस्ट टीम आज जिस चरण में है, वहां सुधार केवल गहन समीक्षा और संतुलित चयन रणनीतियों के जरिए ही संभव है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि गंभीर और अगरकर इस दबाव का सामना कैसे करते हैं और भारतीय टेस्ट क्रिकेट को पटरी पर लाने के लिए क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

