सुप्रीम कोर्ट ने कहा- रिलेशनशिप टूटने पर नहीं लगा सकते बलात्कार का आरोप, एफआईआर खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- रिलेशनशिप टूटने पर नहीं लगा सकते बलात्कार का आरोप, एफआईआर खारिज की

प्रेषित समय :16:49:35 PM / Fri, Nov 28th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि लंबे समय तक चले सहमति वाले रिश्ते को बाद में रेप का मामला नहीं बनाया जा सकता. अदालत ने 24 नवंबर 2025 को एक वकील के खिलाफ दर्ज रेप केस को खारिज करते हुए कहा कि ऐसा करना आपराधिक कानून का दुरुपयोग है.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला जिससे यह साबित हो कि महिला ने बिना इच्छा या दबाव में संबंध बनाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, शिकायतकर्ता के व्यवहार से साफ है कि संबंध पूरी तरह सहमति पर आधारित था, न कि किसी धोखे या दबाव का नतीजा.

पिछले साल दर्ज हुआ था मामला

यह एफआईआर 31 अगस्त 2024 को छत्रपति संभाजीनगर के सिटी चौक पुलिस स्टेशन में दर्ज हुई थी. महिला जो पहले से अपने पति के साथ वैवाहिक विवाद में थी उसने आरोप लगाया था कि मार्च 2022 से मई 2024 के बीच आरोपी वकील के साथ कई बार शारीरिक संबंध बने. उसने दावा किया कि वह तीन बार गर्भवती भी हुई और आरोप है कि वकील ने ही गर्भपात करवाया. वकील ने इन आरोपों को झूठा बताया और कहा कि आरोप तभी लगाए गए जब उसने महिला को 1,50,000 रुपये देने से इनकार कर दिया.

हर टूटे रिश्ते को रेप का मामला बनाना खतरनाक

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एक अहम चिंता दोहराई कि निजी रिश्तों की विफलता को बढ़ते हुए रेप जैसे गंभीर अपराध में बदलने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, हर खराब हो चुके रिश्ते को रेप में बदलना न सिर्फ एक गंभीर अपराध है, बल्कि आरोपी के जीवन पर स्थायी दाग लगा देता है.

रेप के असली मामलों में होता है डर, दबाव का प्रभाव

अदालत ने समझाया कि आईपीसी की धारा 376(2)(एन) के तहत आने वाले असली मामलों में एक पैटर्न होता है. जहां रिश्ता डर, दबाव, धमकी, कैद या धोखे पर आधारित होता है और महिला बाहर निकल नहीं पाती. लेकिन इस मामले में ऐसा कोई संकेत नहीं मिला. दोनों पक्ष तीन साल तक भावनात्मक रूप से जुड़े रहे, साथ में समय बिताते थे और रिश्ता पूरी तरह मित्रतापूर्ण था.

शादी के भरोसे पर बनाए गए संबंध हमेशा धोखा नहीं होते

बेंच ने कहा कि भारत जैसे समाज में शादी का वादा कई बार रिश्तों का महत्वपूर्ण आधार होता है. यदि कोई पुरुष सिर्फ शारीरिक संबंध बनाने के लिए झूठा वादा करता है, तो वह अपराध हो सकता है, लेकिन उसके लिए स्पष्ट सबूत जरूरी हैं. इस केस में अदालत ने कहा, कहीं भी यह नहीं दिखा कि वकील ने गलत इरादे से विवाह का वादा किया या किसी तरह की चाल चली.

प्रक्रिया को जारी रखना न्याय का दुरुपयोग

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए पूरा मामला खारिज कर दिया और कहा कि इस तरह की एफआईआर, एक सहमति वाले रिश्ते के बाद विवाद के कारण दर्ज की गई शिकायत का क्लासिक उदाहरण है. अदालत ने इसे न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग करार दिया.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-