हल्द्वानी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले हाई अलर्ट 50 हजार लोगों को प्रभावित करने वाले भूमि विवाद पर शहर में तनाव बढ़ा

हल्द्वानी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले हाई अलर्ट 50 हजार लोगों को प्रभावित करने वाले भूमि विवाद पर शहर में तनाव बढ़ा

प्रेषित समय :20:12:04 PM / Tue, Dec 2nd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

देहरादून. हल्द्वानी में उस ऐतिहासिक घड़ी का इंतज़ार गहरा होता जा रहा है, जिसके बारे में पूरे शहर से लेकर देहरादून और दिल्ली तक चर्चा है. सुप्रीम कोर्ट अब उस बहुप्रतीक्षित आदेश को सुनाने वाला है, जो सीधी तौर पर 50,000 से अधिक लोगों की ज़िंदगी पर असर डालेगा. फैसला एक ऐसी ज़मीन पर होने वाले कथित अतिक्रमण के विवाद से संबंधित है, जिस पर वर्षों से तीन बस्तियाँ बसी हैं और जिसे रेलवे अपनी संपत्ति बता रहा है. मंगलवार को शहर में सुरक्षा की ऐसी तैनाती देखी गई, जैसी किसी बड़े आंतरिक संकट या दंगा-नियंत्रण की स्थिति में होती है. पूरा बमभूलपुरा क्षेत्र चार जोनों में बांटकर घेर लिया गया है, और पुलिस ने साफ कर दिया है कि हालात बिगड़ने पर कोई ढील नहीं दी जाएगी.

नैनीताल पुलिस ने 23 लोगों को एहतियातन हिरासत में रखा है और 123 लोगों को “बॉन्ड” पर छोड़ा है, ताकि फैसला आते ही कोई भी भीड़, विरोध या उग्र प्रतिक्रिया की स्थिति पैदा न हो. पुलिस की कार्रवाई से साफ है कि प्रशासन किसी भी स्थिति को हल्के में लेने के मूड में नहीं है. शहर की गलियों में फोर्स की आवाजाही और लगातार फ्लैग मार्च ने लोगों की धड़कनें तेज कर दी हैं. कई घरों में रातभर जागरण जैसा माहौल है—न लोग चैन से बैठ पा रहे हैं, न दुकानें सामान्य तरीके से खुल पा रही हैं.

मामले की जड़ में वह भूमि विवाद है, जो दशकों से धधकता रहा है. रेलवे कहता है कि 1959 की नोटिफिकेशन और 1971 के रिकॉर्ड यह साबित करते हैं कि 2.2 किलोमीटर में फैला यह इलाक़ा उनकी संपत्ति है. वहीं स्थानीय लोग दावा करते हैं कि वह “नज़ूल भूमि” पर पीढ़ियों से बसे हैं और उनके पास बिजली-पानी से लेकर स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र तक की मौजूदगी बतौर प्रमाण है. यहां तीन सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, 10 मस्जिदें, 12 मदरसे, एक मंदिर और एक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र भी मौजूद है—जिसे देखकर शायद ही कोई यह सोच सके कि यह पूरा इलाका कभी खाली, निर्जन ज़मीन रहा होगा.

यह विवाद अचानक बड़ा नहीं हुआ, बल्कि 2022 में तब सुर्खियों में आया, जब उत्तराखंड हाई कोर्ट ने रेलवे की अपील पर बस्तियों को हटाने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा था कि रेलवे केवल एक सप्ताह में सभी परिवारों को नोटिस दे और उसके बाद आवश्यकता पड़ने पर “किसी भी हद तक बल का प्रयोग” करके अतिक्रमण हटाए. इस आदेश के बाद हल्द्वानी में इतना बड़ा जन-आंदोलन खड़ा हुआ कि हजारों लोग सड़कों पर उतर आए. महिलाएं, बुजुर्ग, बच्चे—हर कोई एक ही आवाज़ में यह सवाल पूछ रहा था कि “हम जाएंगे तो जाएंगे कहां?” हाई कोर्ट का आदेश पूरे शहर में डर की लहर लेकर आया, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सर्वोच्च अदालत ने आदेश पर रोक लगाते हुए कहा था कि “क्या 50,000 लोगों को एक रात में बेघर किया जा सकता है?”, और इसी टिप्पणी के बाद लोगों में उम्मीद की किरण जगी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2024 में राज्य सरकार को पुनर्वास की विस्तृत योजना पेश करने को कहा था, लेकिन कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश के मुताबिक राज्य ने आज तक कोई ठोस योजना कोर्ट में दाखिल नहीं की. इस वजह से हल्द्वानी के लोग फैसले से पहले गहरी चिंता में हैं—कहीं ऐसा न हो कि अदालत निर्णय सुना दे और अगले ही दिन पुलिस घर खाली कराने पहुंच जाए. विधायक हृदयेश इसे प्रशासनिक लापरवाही बताते हैं और दावा करते हैं कि स्थानीय लोग रेल की भूमि पर नहीं, बल्कि नज़ूल भूमि पर बसे हैं. दूसरी ओर रेलवे वर्षों से कहता आया है कि 2017 की संयुक्त सर्वे रिपोर्ट में 4,365 “अतिक्रमणों” की पहचान की गई थी, और यह जमीन पूरी तरह उसकी संपत्ति है.

फैसले के इंतजार में हल्द्वानी की तस्वीर आज पूरी तरह बदली हुई दिखाई देती है. जहां पहले बच्चे खेलते थे, वहां अब वीआईपी मूवमेंट जैसी सुरक्षा व्यवस्था है. बमभूलपुरा की हर गली में सीसीटीवी पर नज़र रखने वाले जवान तैनात हैं. सोशल मीडिया की निगरानी कर रही टीमें हर पोस्ट को स्कैन कर रही हैं, ताकि कोई अफवाह या भड़काऊ संदेश माहौल को बिगाड़ न सके. जिला सीमाओं पर सख्त चेकिंग चल रही है और संवेदनशील इलाकों में पुलिस की अतिरिक्त तैनाती से माहौल और भारी महसूस हो रहा है.

नैनीताल के एसएसपी मंजीनाथ टी. सी. ने बताया कि शहर को चार हिस्सों में बांटकर सुरक्षा घेरे को मजबूत किया गया है. तीन एसपी, चार सीओ, आठ इंस्पेक्टर, आठ एसएचओ, 400 से अधिक पुलिसकर्मी, दो पीएसी कंपनियां, फायर यूनिट, ट्रैफिक दस्ते, एंटी-रायट टीम और टियर गैस स्क्वॉड को लगाया गया है. इसके अलावा आईटीबीपी और सीआरपीएफ की कंपनियां बैकअप में तैनात हैं. उनके शब्दों में—“फैसला जो भी हो, कोई भी गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी.”

स्थानीय लोगों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वे अपने घर बचा पाएंगे? कई परिवारों ने छोटे-छोटे वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपील की है कि उन्हें बेघर न किया जाए. यही वजह है कि आज हल्द्वानी में सोशल मीडिया सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है—डर भी वहीं से फैल रहा है और उम्मीद भी. कई लोग पुराने दस्तावेज़, बिजली बिल, कर रसीदें दिखाकर यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि वे वर्षों से यहां रह रहे हैं. वहीं अन्य लोग इस बात से डरे हुए हैं कि कहीं हाई कोर्ट का पुराना आदेश फिर से लागू न हो जाए.

हल्द्वानी का यह संकट केवल एक भूमि विवाद भर नहीं है, बल्कि यह उन हजारों परिवारों की मूलभूत असुरक्षा का प्रतीक है, जो दशकों तक घर बनाकर रहने के बाद अचानक सरकारी नोटिसों से घिर जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला अब केवल कानून का निपटारा नहीं करेगा, बल्कि यह यह भी तय करेगा कि इन परिवारों का भविष्य किस दिशा में जाएगा—क्या वे यहीं रहेंगे, क्या उन्हें पुनर्वास मिलेगा, या फिर उन्हें पूरी तरह नए जीवन की शुरुआत करनी होगी?

राज्य सरकार, रेलवे, स्थानीय लोग—सभी अपने-अपने पक्ष पर अड़े हुए हैं, और इसी बीच फैसले की घड़ी नज़दीक आ गई है. हल्द्वानी की हवा में तनाव साफ महसूस किया जा सकता है. हर कोई मोबाइल फोन पर अपडेट्स देख रहा है, हर मिनट खबरों पर निगाहें टिकी हैं और शहर की सांसें थमी हुई हैं.

अब पूरा हल्द्वानी सुप्रीम कोर्ट की ओर देख रहा है. फैसले के साथ ही यह स्पष्ट होगा कि 50,000 से अधिक लोगों के चेहरे पर उभर आई यह चिंता की लकीरें मिटेंगी या और गहरी हो जाएंगी.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-