जबलपुर IT पार्क में ताले और सन्नाटा, AI युग में कागज़ी सपनों की पोल खुली

जबलपुर IT पार्क में ताले और सन्नाटा, AI युग में कागज़ी सपनों की पोल खुली

प्रेषित समय :20:12:23 PM / Fri, Dec 5th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर. कभी मध्य प्रदेश की तकनीकी उड़ान का केंद्र बनने का सपना लेकर शुरू हुआ जबलपुर का आईटी पार्क आज सूना पड़ा है। लगभग 100 एकड़ में विकसित यह विशाल प्रोजेक्ट अब वीरान इमारतों, बंद गेटों और जंग लगे बोर्डों की तरह खड़ा है—यह बताते हुए कि योजनाओं और हकीकत के बीच कितनी गहरी खाई हो सकती है। विधानसभा में आईटी पार्क से जुड़ी कैग रिपोर्ट पेश की गई, जिसने इस पूरे मॉडल की गंभीर खामियों को उजागर किया। वहीं ज़मीनी स्थिति इससे कहीं ज्यादा चिंताजनक दिख रही है।

बरगी हिल्स की सरकारी भूमि पर बना यह आईटी पार्क 2017 में बड़े लक्ष्य और बड़े वादों के साथ शुरू हुआ था। दो आधुनिक आईटी इमारतें, चौड़ी सड़कें, अंडरग्राउंड बिजली व्यवस्था और सैकड़ों छोटे-बड़े प्लॉट—सब कुछ तैयार किया गया था ताकि स्टार्टअप, कॉल सेंटर और सॉफ्टवेयर कंपनियाँ यहां आसानी से काम शुरू कर सकें। निवेशकों के लिए रियायतें दी गईं और यह दावा किया गया कि जबलपुर अब आईटी मानचित्र पर एक नई पहचान बनाएगा। लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट निकली।

पहले कोविड ने उद्योग की कमर तोड़ी और फिर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के तेज़ विस्तार ने पूरे आईटी रोजगार ढांचे को बदल दिया। जहाँ पहले 100 कर्मचारियों की ज़रूरत होती थी, अब वही काम 10 लोग कर देते हैं। इसका असर निवेशकों पर सबसे ज़्यादा पड़ा, जिन्होंने करोड़ों रुपये लगाकर बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए थे।

युवा उद्यमी शिशिर पांडे ने मुख्य सड़क पर 40 लाख रुपये में प्लॉट लेकर लगभग 15 करोड़ का ऋण लिया था। उनका कहना है कि “इंफ्रास्ट्रक्चर इस तरह बनाया गया था कि सैकड़ों लोग एक साथ काम कर सकें, लेकिन आज आईटी में ऐसा कोई मॉडल नहीं बचा जिसमें इतने लोगों की जरूरत पड़े। एआई ने काम की प्रकृति ही बदल दी है, जबकि हमारा खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है।”

स्थिति यह है कि बड़े-बड़े ऑफिस परिसर बंद पड़े हैं। कई इमारतों में मानक व्यवसायिक गतिविधियाँ शुरू करने की कोशिश हुई, जैसे नर्सिंग कॉलेज या प्रशिक्षण केंद्र, लेकिन विभाग ने इसकी अनुमति नहीं दी। नियमों के अनुसार यहां आईटी से इतर कोई काम नहीं किया जा सकता। निवेशक शिकायत करते हैं कि “आमदनी के रास्ते बंद हैं, खर्च जारी है, और सरकारी नियम बदले बिना इस इलाके को सांस भी नहीं दी जा सकती।”

कैग की रिपोर्ट में दो साल पुरानी स्थिति का उल्लेख है कि कुछ प्लॉटों पर आईटी की जगह नर्सिंग कॉलेज चल रहे थे। लेकिन वर्तमान वास्तविकता यह है कि ज्यादातर इमारतों में कोई गतिविधि ही नहीं। बोर्ड लगे हुए हैं, लेकिन कामकाज लगभग खत्म हो चुका है। कई भवनों में प्रतियोगी परीक्षाओं के केंद्र बनाए जा रहे हैं—यह खुद इस बात का संकेत है कि आईटी गतिविधियाँ नदारद हैं और इमारतें खाली पड़ी हैं।

जबलपुर के आईटी पार्क में काम शुरू करने आए कई युवाओं ने बताया कि “यह जगह जोश के साथ बनाई गई थी, लेकिन अब इसका उपयोग परीक्षा केंद्र या गोदाम की तरह हो रहा है। इस इलाके की चौड़ी सड़कों और बड़ी इमारतों में मौन पसरा हुआ है।”

इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम के अधिकारियों का कहना है कि पुराने नियमों के चलते वे अन्य गतिविधियों को अनुमति नहीं दे सकते। कई प्लॉटों का आवंटन रद्द भी किया गया है। लेकिन वे भी इस बात से सहमत हैं कि एआई के आने के बाद आईटी उद्योग में रोजगार की संरचना तेजी से बदल गई है और निवेशकों का पैसा फँसा हुआ है।

बाजार के जानकारों का मानना है कि समय बदल चुका है, लेकिन सरकारी नीतियाँ उसी पुराने ढांचे में उलझी हुई हैं। एक तरफ एआई पलक झपकते काम पूरा कर देता है, दूसरी तरफ नीतिगत फैसले वर्षों तक लटके रहते हैं। निवेशक कहते हैं कि “जब तक नीतियाँ बदलने की प्रक्रिया पूरी होगी, तब तक शायद अगली तकनीकी लहर आ जाएगी और यह पूरा मॉडल फिर अप्रासंगिक हो जाएगा।”

जबलपुर आईटी पार्क की स्थिति सिर्फ एक प्रोजेक्ट की कहानी नहीं, बल्कि एक चेतावनी है—यदि नीतियाँ तकनीक की गति के साथ नहीं चलेंगी, तो ऐसे और कई प्रोजेक्ट महज ढांचे बनकर रह जाएंगे। करोड़ों के निवेश, सैकड़ों सपनों और एक शहर की आकांक्षाएँ फिलहाल इस पार्क में बंद ताले और वीरान सड़कों के बीच जवाब मांग रही हैं।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-