अनिल मिश्र/रांची
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शनिवार को रांची सिविल कोर्ट स्थित एमपी–एमएलए विशेष न्यायालय में उस समय पहुंचे, जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) समन अवहेलना मामले में उच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना था। भारी सुरक्षा इंतज़ामों के बीच मुख्यमंत्री दोपहर में कोर्ट परिसर में पहुँचे और न्यायाधीश सार्थक शर्मा की अदालत में विधिवत उपस्थित हुए। कोर्ट में पेशी के दौरान उन्होंने सात-सात हज़ार रुपये के दो बेल बॉन्ड भरे, जिसके बाद अदालत में उनकी उपस्थिति दर्ज की गई। न्यायिक कार्रवाई पूरी होने के बाद मुख्यमंत्री बिना किसी सार्वजनिक टिप्पणी के सीधे अपने आवास की ओर रवाना हो गए।
मुख्यमंत्री की अदालत में मौजूदगी के दौरान कोर्ट परिसर का माहौल काफी व्यस्त दिखाई दिया। महाधिवक्ता राजीव रंजन सहित बड़ी संख्या में अधिवक्ता भी कोर्ट में मौजूद रहे, जिससे स्पष्ट था कि यह मामला राजनीतिक और कानूनी दोनों स्तरों पर विशेष महत्व रखता है। मुख्यमंत्री की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रदीप चंद्रा ने कार्यवाही के बाद बताया कि उच्च न्यायालय की ओर से जारी निर्देशों के अनुसार भविष्य में इस मामले की सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा कि अगली सुनवाई 12 दिसंबर को तय की गई है, और उस तारीख को मुख्यमंत्री की ओर से उनके अधिवक्ता अदालत में पक्ष रखेंगे।
इस मामले की जड़ ईडी द्वारा दर्ज की गई वह शिकायत है, जिसमें फरवरी 2024 में दर्ज एफआईआर के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आठ समन की अवहेलना का आरोप लगाया गया है। ईडी का दावा है कि जांच संबंधी समन के बावजूद मुख्यमंत्री कई बार उपस्थित नहीं हुए, जिसके आधार पर अवमानना की कार्यवाही शुरू हुई। इसी शिकायत के आधार पर एमपी–एमएलए स्पेशल कोर्ट में सुनवाई प्रारंभ हुई थी। हालांकि बीते 3 दिसंबर को इस मामले में हाईकोर्ट से मुख्यमंत्री को एक बड़ी अंतरिम राहत मिली थी। जस्टिस अनिल कुमार चौधरी की अदालत ने मुख्यमंत्री को केवल 6 दिसंबर को विशेष अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया था और इसके साथ ही पूरे ट्रायल के दौरान व्यक्तिगत पेशी की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि यदि किसी विशेष परिस्थिति में ट्रायल कोर्ट को मुख्यमंत्री की उपस्थिति आवश्यक लगे, तो वह या तो व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित हो सकते हैं।
शनिवार की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार और मुख्यमंत्री की कानूनी टीम इस बात पर भी दृढ़ रही कि मुख्यमंत्री ने अब तक कानून का पूरा सम्मान किया है और हाईकोर्ट के निर्देशानुसार उपस्थित होकर उन्होंने परिपालन का परिचय दिया है। कोर्ट परिसर में सुरक्षा बलों की बड़ी तैनाती, बैरिकेडिंग और नियंत्रित प्रवेश की व्यवस्था से यह साफ झलक रहा था कि सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम को अत्यधिक संवेदनशील माना हुआ है। कोर्ट में पेशी के दौरान कोई राजनीतिक बयानबाजी नहीं हुई, लेकिन बाहर मौजूद कई नेताओं और समर्थकों ने इसे न्यायिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण पड़ाव बताया।
इस मामले से जुड़ी कानूनी कार्यवाही आने वाले दिनों में और दिलचस्प होने की संभावना है, क्योंकि ईडी की शिकायत और उससे जुड़े समनों की वैधता पर भी बहस जारी है। मुख्यमंत्री की कानूनी टीम यह दावा करती रही है कि ईडी के समन राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित हैं, जबकि ईडी अपनी जांच को गंभीर और तथ्यों पर आधारित बताते हुए आगे बढ़ाना चाहती है। हाईकोर्ट की ओर से व्यक्तिगत पेशी की अनिवार्यता हटाए जाने को राजनीतिक हलकों में राहत और कानूनी रूप से एक महत्वपूर्ण आदेश माना जा रहा है।
अब निगाहें 12 दिसंबर की अगली तारीख पर टिक गई हैं, जब इस मामले में आगे की प्रक्रिया निर्धारित होगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि चूंकि व्यक्तिगत पेशी का दबाव हट चुका है, इसलिए आने वाली सुनवाई अधिक कानूनी तर्कों और तकनीकी पहलुओं पर केंद्रित होगी। वहीं मुख्यमंत्री की आज की पेशी ने यह संदेश भी दिया कि वे न्यायालय की प्रक्रिया में सहयोग करने के लिए तैयार हैं और कानूनी लड़ाई को विधि सम्मत तरीके से आगे बढ़ाना चाहेंगे।
इस तरह शनिवार की पेशी न केवल एक कानूनी औपचारिकता थी, बल्कि राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम भी बन गई। अदालत के निर्देशों और मुख्यमंत्री के रुख ने फिलहाल स्थिति को शांत और नियंत्रित रखा है, हालांकि इस मामले का अंतिम रूप से क्या परिणाम निकलता है, यह आने वाले महीनों में न्यायालय की कार्यवाही तय करेगी।
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