सस्ती बैटरी तकनीक ने सोलर ऊर्जा को रात में भी विश्वसनीय और 24 घंटे उपलब्ध शक्ति स्रोत में बदला

सस्ती बैटरी तकनीक ने सोलर ऊर्जा को रात में भी विश्वसनीय और 24 घंटे उपलब्ध शक्ति स्रोत में बदला

प्रेषित समय :19:59:50 PM / Thu, Dec 11th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र से आई एक नई रिपोर्ट ने दुनिया भर में बिजली व्यवस्था को लेकर बड़ी हलचल मचा दी है। यह खुलासा किसी सरकार ने नहीं, बल्कि लंदन स्थित स्वतंत्र ऊर्जा थिंक-टैंक Ember ने किया है। रिपोर्ट बताती है कि बैटरी अब इतनी सस्ती हो चुकी हैं कि दिन में बनी सूरज की बिजली को बड़े पैमाने पर स्टोर कर रात में भी आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है। यह बदलाव सिर्फ तकनीकी अपग्रेड नहीं, बल्कि ऊर्जा व्यवस्था के पूरे ढांचे को बदल देने वाला मोड़ माना जा रहा है। पहली बार सोलर बिजली को “दिन में बनने वाली अस्थायी बिजली” नहीं, बल्कि “24 घंटे उपलब्ध विश्वसनीय बिजली” के रूप में देखा जाने लगा है।

Ember के ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी विश्लेषण दल की विशेषज्ञ कोस्तांसा रेंगेलोवा ने कहा, “2024 में बैटरी उपकरणों की कीमतों में 40% की गिरावट आई थी और 2025 में भी यह तेज़ी से नीचे जा रही है। बैटरियों की पूरी अर्थव्यवस्था बदल गई है और उद्योग अभी भी इस नई वास्तविकता को समझने की कोशिश कर रहा है।” रेंगेलोवा का यह बयान बताता है कि ऊर्जा परिवर्तन का यह दौर सिर्फ भविष्य की तैयारी नहीं, बल्कि वर्तमान में हो रहे बड़े बदलावों का संकेत है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 में बैटरी स्टोरेज की लागत गिरकर वैश्विक बाज़ार में मात्र 65 डॉलर प्रति मेगावॉट-घंटा रह गई है। पूरी बैटरी स्टोरेज सिस्टम की लागत अब 125 डॉलर प्रति किलोवॉट-घंटा और चीन से आने वाली उपकरण कीमत 75 डॉलर प्रति किलोवॉट-घंटा तक सीमित हो चुकी है। यह कमी सिर्फ कीमतों का उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि बैटरियों के तेज उत्पादन, तकनीकी सुधार, बड़े पैमाने के निर्माण और वैश्विक मांग में आए उछाल का परिणाम है।

सोलर के सामने सबसे बड़ा सवाल हमेशा यही रहा—दिन में तो बिजली मिल जाती है, पर रात के समय क्या होगा? इस चुनौती का समाधान अब बेतहाशा सस्ती होती बैटरियों ने दे दिया है। रिपोर्ट की गणना के अनुसार, यदि दिन की आधी सोलर बिजली बैटरी में स्टोर की जाती है, तो स्टोरेज की लागत कुल उत्पादन लागत पर केवल 33 डॉलर प्रति मेगावॉट-घंटा का अतिरिक्त बोझ डालती है। वैश्विक औसत सोलर लागत 43 डॉलर प्रति मेगावॉट-घंटा है। इस प्रकार, रात के समय उपलब्ध तैयार बिजली की कुल लागत सिर्फ 76 डॉलर प्रति मेगावॉट-घंटा आती है, जो कि कई देशों में अभी भी कोयले से बनने वाली बिजली की लागत से कम है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव उन देशों के लिए ‘गेम-चेंजर’ साबित हो सकता है जिन्हें बढ़ती बिजली मांग के साथ जूझना पड़ रहा है—जिन्हें ऊर्जा सुरक्षा की चिंता है, जहां कोयला और गैस महंगे होते जा रहे हैं, और जहां उपभोक्ता बिजली कटौती और महंगे टैरिफ से परेशान हैं। भारत उन देशों में सबसे ऊपर है, जहां यह बदलाव निर्णायक असर डाल सकता है।

भारत में बिजली की मांग हर साल नए रिकॉर्ड बना रही है। उद्योग, शहरों, गांवों और डिजिटल इकोसिस्टम के विस्तार के बीच पीक डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है। कोयले पर अत्यधिक निर्भरता के कारण भारत की ऊर्जा लागत और पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी बढ़ी हैं। ऐसे में सोलर-बैटरी संयोजन देश की ऊर्जा रीढ़ को बदल सकता है। यह बदलाव सिर्फ पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी निर्णायक है। सस्ती और स्थिर बिजली उत्पादन से औद्योगिक उत्पादन लागत घटेगी, घरों और छोटे व्यवसायों को बिजली का नया भरोसा मिलेगा, और ग्रामीण क्षेत्रों में रात के समय भी स्थायी बिजली उपलब्ध हो सकेगी।

रिपोर्ट इस बात को भी रेखांकित करती है कि बैटरी तकनीक की उम्र अब बढ़ गई है और कुशलता पहले से कहीं बेहतर हो चुकी है। फाइनेंसिंग पर लागत कम हुई है और कई देशों में बैटरी स्टोरेज को स्थिर राजस्व मॉडल मिल रहे हैं, जैसे पावर स्टोरेज नीलामी और फिक्स्ड भुगतान मॉडल। इसका मतलब है कि निवेशकों के लिए भी यह क्षेत्र अधिक सुरक्षित और आकर्षक बन रहा है।

ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि सोलर और बैटरी का यह संगम वैश्विक बिजली व्यवस्था के इतिहास में एक बड़े मोड़ की शुरुआत है। जैसे कभी कोयला औद्योगिक क्रांति की रीढ़ बना, वैसे ही अब सोलर-बैटरी संयोजन 21वीं सदी के ऊर्जा भविष्य की रीढ़ बनने की ओर बढ़ चुका है। यह बदलाव सिर्फ उत्पादन तकनीक का नहीं, बल्कि पूरे अर्थतंत्र का है—जहां बिजली की कीमतें घटेंगी, ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी, प्रदूषण कम होगा और दुनिया तेजी से क्लीन पावर की तरफ बढ़ेगी।

Ember की रिपोर्ट जिस तरह साफ संकेत देती है, उससे यह स्पष्ट है कि दुनिया जिस क्लीन पावर मोमेंट का इंतजार कर रही थी, वह अब सामने आने लगा है। यह भविष्य नहीं—वर्तमान है। और अब वह दिन दूर नहीं जब रात के अंधेरे में भी सूरज की रोशनी उतनी ही सहज उपलब्ध होगी, जितनी दोपहर के उजाले में मिलती है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-