केंद्र पर झारखंड का 19,080 करोड़ रोककर विकास बाधित करने और सहकारी संघवाद कमजोर करने का आरोप

केंद्र पर झारखंड का 19,080 करोड़ रोककर विकास बाधित करने और सहकारी संघवाद कमजोर करने का आरोप

प्रेषित समय :19:41:12 PM / Thu, Dec 11th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अनिल मिश्र/रांची

झारखंड में केंद्र से मिलने वाले फंड पर जारी खींचतान एक बार फिर सियासी गरमाहट का कारण बन गई है. राज्य की विभिन्न योजनाओं के लिए निर्धारित करीब ₹19,080 करोड़ की राशि केंद्र सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों में अटकी होने का आरोप लगाते हुए झारखंड के वरिष्ठ नेता विजय शंकर नायक ने कहा है कि यह सिर्फ बकाया फंड का मामला नहीं, बल्कि राज्य के विकास को धीमा करने का एक सुनियोजित प्रयास है. उनके अनुसार यह कदम संविधान की भावना और सहकारी संघवाद की मूल आत्मा का खुला उल्लंघन है, जिसका खामियाजा सीधे तौर पर राज्य के सबसे कमजोर तबकों—गरीब, आदिवासी, मूलवासी, दलित, पिछड़े और ग्रामीण परिवारों—को उठाना पड़ रहा है.

नायक ने कहा कि झारखंड की वित्तीय स्थिति पर इसका सीधा असर दिख रहा है. कई महत्वपूर्ण योजनाएँ या तो ठहर गई हैं या धीमी पड़ चुकी हैं. छात्रवृत्ति योजनाओं से लेकर मनरेगा मजदूरों के भुगतान तक, सड़क निर्माण से लेकर पेयजल परियोजनाओं तक, लगभग हर क्षेत्र में प्रभाव दिखाई दे रहा है. उन्होंने बताया कि फंड की देरी से कुपोषण, बेरोजगारी और सामाजिक सुरक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है.

आंकड़ों का हवाला देते हुए नायक ने कहा कि मनरेगा के तहत राज्य को ₹2,100 करोड़, प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत ₹1,850 करोड़ और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत ₹1,150 करोड़ की राशि का भुगतान लंबित है. इसी तरह अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग के छात्रों की छात्रवृत्ति के लगभग ₹1,260 करोड़ अटके हुए हैं. ग्रामीण सड़कों और आधारभूत संरचना के लिए PMGSY और CRIF के तहत ₹2,750 करोड़, जबकि खनन प्रभावित जिलों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण DMF के ₹1,540 करोड़ पिछले कई महीनों से जारी नहीं किए गए.

नायक ने कहा कि जल जीवन मिशन के तहत ₹1,780 करोड़, शहरी विकास और स्मार्ट सिटी मिशन के ₹920 करोड़, सामाजिक सुरक्षा पेंशन के ₹310 करोड़ तथा SDRF/NDRF के लगभग ₹870 करोड़ की राशि भी फंसी हुई है. वन अधिकार और जनजातीय कल्याण योजनाओं के लिए ₹600 करोड़ तथा केंद्रीय उपकर व राजस्व हिस्सेदारी के रूप में राज्य को मिलने वाले करीब ₹3,950 करोड़ अभी तक जारी नहीं किए गए हैं. कुल मिलाकर लगभग ₹19,080 करोड़ की राशि अपने मंजूरी बिंदु पर अटकी हुई है, जिससे लगभग सभी प्रमुख विभागों के कामकाज पर प्रभाव पड़ा है.

उन्होंने आरोप लगाया कि देश के कई राज्यों को समय पर फंड जारी कर दिया जाता है, लेकिन झारखंड के मामले में लगातार देरी की जा रही है. इससे यह संदेह पैदा होता है कि कहीं जानबूझकर राज्य के साथ भेदभाव तो नहीं किया जा रहा. उनके अनुसार झारखंड एक खनिज-समृद्ध राज्य होने के बावजूद विकास के कई पैमानों पर पीछे है, और ऐसे में आवश्यक फंड का देर से मिलना राज्य को और पीछे धकेल देता है.

नायक ने मनरेगा मजदूरों की स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि मजदूरी अटके होने से लाखों परिवार प्रभावित हुए हैं. ग्रामीण आवास योजना में पैसा न मिलने के कारण हजारों घर अधूरे पड़े हैं. छात्रवृत्ति भुगतान न होने से गरीब और आदिवासी छात्र-छात्राओं का भविष्य दांव पर लग गया है. सड़क निर्माण में देरी से कई जिलों का संपर्क प्रभावित हुआ है और पेयजल परियोजनाएँ ठप पड़ने से ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी का संकट गहरा रहा है. उन्होंने कहा कि DMF फंड के बिना खनन प्रभावित क्षेत्रों का पुनर्विकास ठहर गया है, जिससे वहां रहने वाले लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है.

उन्होंने केंद्र सरकार पर सीधा सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या झारखंड को अब भी दोयम दर्जे का राज्य समझा जाता है? क्या आदिवासी और मूलवासी आबादी वाले इस प्रदेश को आर्थिक रूप से कमजोर बनाए रखने की कोई नीति है? नायक ने कहा कि यह सवाल सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि राज्य की पहचान और सम्मान से जुड़े हैं. झारखंड की जनता को विकास योजनाओं से वंचित रखना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता.

नायक ने चेतावनी दी कि यदि केंद्र सरकार तुरंत बकाया भुगतान की प्रक्रिया शुरू नहीं करती, तो राज्य की जनता आंदोलन का रास्ता अपनाने के लिए मजबूर होगी. उन्होंने कहा कि झारखंड के लोग अपने अधिकारों और विकास के लिए संघर्ष करने से कभी पीछे नहीं हटे हैं, और आगे भी नहीं हटेंगे. यह सिर्फ फंड का मुद्दा नहीं, बल्कि राज्य के भविष्य का सवाल है.

उन्होंने कहा कि बकाया राशि रोककर विकास को धीमा करना सहकारी संघवाद की वह मूल भावना है, जिसे देश की संघीय संरचना की रीढ़ माना जाता है. इसे कमजोर करना न केवल राज्य के साथ अन्याय है बल्कि केंद्र-राज्य संबंधों के संतुलन के लिए भी खतरा है. उन्होंने कहा कि झारखंड अब अपने अधिकारों से वंचित नहीं रहेगा और जनहित योजनाओं को बाधित करने का कोई भी प्रयास जनता स्वीकार नहीं करेगी. राज्य को उसके हिस्से की राशि मिलना उसका संवैधानिक अधिकार है और इसे किसी भी स्थिति में टाला नहीं जा सकता.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-