अनिल मिश्र/रांची
झारखंड की राजधानी रांची स्थित झारखंड उच्च न्यायालय ने दुमका के तत्कालीन शहीद पुलिस अधीक्षक अमरजीत बलिहार के हत्यारों की मौत की सजा को उम्रकैद में अब बदल दिया गया है. झारखंड उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच के दो जज जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय और जस्टिस संजय प्रसाद दोष तय करने के मुद्दे पर अलग-अलग राय रखते रहे.इस बीच इस मामले को तीसरे जज जस्टिस गौतम कुमार चौधरी को मामला भेजा गया, जिन्होंने तय किया कि दोष साबित होने के बावजूद मौत की सजा बरकरार नहीं रखी जा सकती. इसके बाद जज ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया.इस संबंध में अभियोजन के अनुसार, दुमका के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक एक सशस्त्र एस्कॉर्ट टीम के साथ पाकुड़ की ओर जा रहे थे. रास्ते में जंगल के इलाके में उग्रवादियों ने पुलिस टीम पर अचानक हमला कर दिया.भीषण गोलीबारी में दुमका पुलिस अधीक्षक समेत कुल छह पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे. वहीं कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल भी हुए. बाद में जांच के दौरान अपीलकर्ताओं को हमले में शामिल माना गया और ट्रायल कोर्ट ने उन्हें कई गंभीर धाराओं में दोषी ठहराकर मौत की सजा सुनाई गई थी.इस बीच जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा कि घायल पुलिसकर्मियों की सीधी चश्मदीद गवाही से यह साबित होता है कि अपीलकर्ता इस हमले में शामिल थे.इसलिए उनकी दोषसिद्धि बरकरार रखी गई, लेकिन सजा के सवाल पर कोर्ट ने माना कि चूंकि पहले दो जजों की राय दोषसिद्धि पर एक जैसी नहीं थी, इसलिए मौत की सजा को बनाए रखना कानूनन संभव नहीं है.इसी वजह से कोर्ट ने दोनों आरोपियों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. इस संबंध में जस्टिस चौधरी ने साफ कहा कि यह हमला सोची-समझी साजिश का हिस्सा था, जिसमें एसपी समेत छह पुलिसकर्मियों की जान चली गई.यह हमला केवल पुलिस बल पर नहीं, बल्कि राज्य की संप्रभु शक्ति यानी सरकार की ताकत पर सीधी चुनौती रहा है.
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