तमिलनाडु की चुनावी बिसात पर बीजेपी का नया दांव, पीयूष गोयल को सौंपी कमान, असम में पांडा की जिम्मेदारी

तमिलनाडु की चुनावी बिसात पर बीजेपी का नया दांव, पीयूष गोयल को सौंपी कमान, असम में पांडा की जिम्मेदारी

प्रेषित समय :22:21:41 PM / Mon, Dec 15th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी ने आने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए संगठनात्मक स्तर पर एक अहम राजनीतिक कदम उठाया है। पार्टी ने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को तमिलनाडु चुनाव का प्रभारी नियुक्त किया है, जबकि लोकसभा सांसद बैजयंत पांडा को असम में पार्टी के चुनावी अभियान की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब दक्षिण भारत में बीजेपी अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने की लगातार कोशिशों में जुटी है और उत्तर-पूर्व में अपनी पकड़ को बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रही है।

सोमवार को जारी पार्टी के आधिकारिक निर्णय के अनुसार, पहले तमिलनाडु का प्रभारी बनाए गए बैजयंत पांडा को अब असम की जिम्मेदारी दी गई है। असम वह राज्य है जहां पांडा पहले भी पार्टी के चुनाव प्रभारी रह चुके हैं और 2021 के विधानसभा चुनावों के दौरान उन्होंने संगठन और प्रचार रणनीति में अहम भूमिका निभाई थी। उनके अनुभव को देखते हुए पार्टी नेतृत्व ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है। वहीं तमिलनाडु जैसे जटिल और राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण राज्य की कमान अब पीयूष गोयल के हाथों में सौंपी गई है।

पीयूष गोयल का नाम तमिलनाडु की राजनीति के लिए नया नहीं है। वे इससे पहले भी राज्य में पार्टी के मामलों को संभाल चुके हैं और 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी और एआईएडीएमके के बीच गठबंधन को आकार देने में उनकी भूमिका को अहम माना जाता है। उस दौर में दक्षिण भारत में गठबंधन राजनीति की बारीकियों को समझते हुए उन्होंने स्थानीय नेतृत्व और केंद्रीय नेतृत्व के बीच संतुलन साधने की कोशिश की थी। पार्टी को उम्मीद है कि उनका वही अनुभव और रणनीतिक समझ आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए उपयोगी साबित होगी।

तमिलनाडु लंबे समय से द्रविड़ राजनीति का गढ़ रहा है, जहां राष्ट्रीय दलों के लिए अपनी जगह बनाना आसान नहीं रहा है। डीएमके और एआईएडीएमके जैसे क्षेत्रीय दल दशकों से सत्ता और विपक्ष की राजनीति पर हावी रहे हैं। बीजेपी ने बीते कुछ वर्षों में राज्य में अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश की है, लेकिन अब तक उसे सीमित सफलता ही मिली है। ऐसे में पीयूष गोयल की नियुक्ति को पार्टी की गंभीरता और आक्रामक रणनीति के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पीयूष गोयल न केवल एक अनुभवी केंद्रीय मंत्री हैं, बल्कि वे संगठनात्मक कामकाज और गठबंधन प्रबंधन में भी दक्ष माने जाते हैं। तमिलनाडु में बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती स्थानीय मुद्दों को समझना, क्षेत्रीय पहचान के सवालों पर संतुलित रुख अपनाना और सहयोगी दलों के साथ तालमेल बैठाना है। गोयल की जिम्मेदारी होगी कि वे राज्य इकाई को मजबूत करें, नए सामाजिक समूहों तक पार्टी की पहुंच बढ़ाएं और एक ऐसा चुनावी नैरेटिव तैयार करें जो स्थानीय मतदाताओं को आकर्षित कर सके।

दूसरी ओर, असम में बैजयंत पांडा की नियुक्ति भी रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। असम में बीजेपी फिलहाल सत्ता में है और पार्टी का लक्ष्य अपनी उपलब्धियों को जनता के सामने प्रभावी ढंग से पेश करना है। 2021 के चुनावों में पांडा ने संगठन को एकजुट रखने और प्रचार अभियान को धार देने में योगदान दिया था। पार्टी नेतृत्व को भरोसा है कि वे एक बार फिर जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करेंगे और विपक्ष के हमलों का जवाब देने के लिए सशक्त रणनीति तैयार करेंगे।

बीजेपी के इस फैसले को व्यापक राजनीतिक परिदृश्य में देखा जाए तो यह स्पष्ट होता है कि पार्टी 2026 के विधानसभा चुनावों को लेकर अभी से तैयारियों में जुट गई है। तमिलनाडु और असम दोनों ही राज्यों का राजनीतिक महत्व अलग-अलग है। जहां तमिलनाडु में बीजेपी अपनी पैठ बढ़ाकर दक्षिण भारत में नई संभावनाओं के द्वार खोलना चाहती है, वहीं असम में वह अपनी मौजूदा स्थिति को मजबूत बनाए रखना चाहती है।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह फेरबदल केवल नामों का बदलाव नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक सोची-समझी रणनीति है। तमिलनाडु में पीयूष गोयल को भेजकर पार्टी यह संदेश देना चाहती है कि वह राज्य को हल्के में नहीं ले रही है। वहीं असम में अनुभवी हाथों में कमान सौंपकर बीजेपी किसी भी तरह की ढील नहीं देना चाहती।

आने वाले महीनों में इन नियुक्तियों का असर पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियों और चुनावी तैयारियों में साफ दिखाई देगा। तमिलनाडु में जहां बीजेपी को स्थानीय स्तर पर खुद को स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, वहीं असम में उसे सत्ता विरोधी माहौल से निपटने और अपनी उपलब्धियों को मतदाताओं तक पहुंचाने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा।

कुल मिलाकर, पीयूष गोयल और बैजयंत पांडा की नई जिम्मेदारियां बीजेपी की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा हैं। यह बदलाव संकेत देता है कि पार्टी नेतृत्व हर राज्य की राजनीतिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अपने अनुभवी नेताओं को आगे कर रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ये दोनों नेता अपनी-अपनी जिम्मेदारियों में किस तरह पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं और चुनावी मैदान में बीजेपी को कितना लाभ पहुंचा पाते हैं।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-