सिनेमा की रूपहली दुनिया में मध्यप्रदेश की दशकों से धाक रही है. लता ताई से बात शुरू होती है और उसके बाद तो सिलसिला जैसे खत्म ही नहीं होता है. किशोर कुमार और अशोक कुमार मध्यप्रदेश के आईकान हैं तो जॉनी वॉकर को आप कैसे भूल सकते हैं. प्रेमनाथ का मध्यप्रदेश प्रेम के रूप में जबलपुर में उनका अपना छविगृह था तो कृष्णाजी के साथ शोमैन राजकपूर दाम्पत्य जीवन का आरंभ किया था. मध्यप्रदेश के जर्रे जर्रे पर आपको ऐसे ही सितारे मिल जाएंगे. ज्यादतर पुराने सितारे सिनेमा की जान हैं तो नई पीढ़ी के कलाकारों की पहचान टेलीविजन धारावाहिक से है. अविभाजित मध्यप्रदेश की चर्चा करें तो आपको स्मरण दिला दें कि सुलक्षणा पंडित और विजेयता पंडित रायगढ़ से आती हैं. अन्न कपूर, सलीम खान और जावेद अख्तर भी मध्यप्रदेश की रौशनाई हैं. निदा फाजली के गीत-गजल को भला कौन बिसरा सकता है. टेलीविजन धारावाहिक ‘महायज्ञ’ में अपने किरदार को जीवंत बनाने वाले गोविंद नामदेव आज ‘ओएमजी’ फिल्म के लिए जाने जाते हैं. खलनायकी में मुकेश तिवारी की संवाद अदायगी तो जैसे दिलों पर छाप छोड़ जाती है. निरंतर सक्रिय रहने वाले हिन्दी के पक्षकार आशुतोष राणा की ‘सडक़’ फिल्म आप भूल नहीं पाए होंगे. अन्नू कपूर के भीतर की शास्त्रीयता उन्हें एक अलग पायदान पर खड़ा करती है। सलमान खान भी तो इंदौर के ही हैं. सिनेमा की गुड्डी जया भादुड़ी बच्चन को भूल ना जाइएगा. गीतकार प्रदीप मध्यप्रदेश की अस्मिता हैं.
इतने सारे सितारे, इतने सारे नाम कि किसे याद रखें और किसे भूल जाएं. मध्यप्रदेश देश का ह्दय प्रदेश है और सिनेमा आम आदमी के जीवन का हिस्सा. सिनेमा केेवल मनोरंजन नहीं देता है बल्कि रोजगार के विपुल अवसर भी देता है. ऐसे में मध्यप्रदेश में करीब करीब दो दशक बाद सिनेमा के लिए स्पेस क्रिएट करने की तैयारी हो गई है तो इसका वेलकम किया जाना चाहिए. साल 2003 के पहले दिग्विजयसिंह सरकार में संस्कृति मंत्री रहीं डॉ. विजयलक्ष्मी साधो ने भोपाल में फिल्मसिटी बनाने के लिए प्रयास किया था. डेढ़ दशक के अंतराल के बाद कांग्रेस सरकार की वापसी हुई और संयोग से डॉ. विजयलक्ष्मी साधो एक बार फिर संस्कृति मंत्री हैं. एक बार फिर उन्होंने भोपाल में फिल्मसिटी बनाने की कोशिशों को अमलीजामा पहनाने की कोशिश शुरू कर दी है. इस बार मुख्यमंत्री कमल नाथ और जनसम्पर्क मंत्री पीसी शर्मा भी इस कोशिश को साकार करने में जुट गए हैं.
संभवत: सरकार के सहयोग के साथ मध्यप्रदेश में पहली बार आइफा अवार्ड का आयोजन किया जा रहा है. यह आयोजन उस जमीन को तलाशने की कोशिश के रूप में देखना चाहिए जिसमें मध्यप्रदेश में सिनेमा उद्योग को स्थापित किया जाना है. बीते दो दशकों से कई बड़ी फिल्मों की शूटिंग मध्यप्रदेश में हुई लेकिन राजस्व का लाभ ना तो सरकार को मिला और ना ही यहां के कलाकारों को काम के अवसर मिला. अभी भी कई छोटी-बड़ी फिल्में और टेलीविजन धारावाहिकों की शूटिंग हो रही है. मध्यप्रदेश में जब फिल्म उद्योग के रूप में स्थापित होगा तो उसके नियम-अधिनियम बनेंगे. सरकार को एक निश्चित राजस्व की प्राप्ति होगी और कलाकारों के साथ सिनेमा निर्माण के विभिन्न ट्रेंड में काम करने वाले लोगों को रोजगार मिलेगा. अर्थात सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं करता है बल्कि रोजगार भी दिलाता है. इसकी शुरूआत के रूप में आईफा अवार्ड को देखा जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि किसी समय मध्यप्रदेश में फिल्म निर्माण के लिए आर्थिक सहयोग देने के लिए मध्यप्रदेश फिल्म विकास निगम काम करता था. रूचिवान और कल्पनाशील लोगों के अभाव में यह निगम बंद कर दिया गया. फिल्म विकास निगम को पुन: जीवित किया जाना, वर्तमान समय की जरूरत है. ध्यान रहे कि निगम के पास सैकड़ों की संख्या में बेहतरीन फिल्मों के कैसेट्स एवं डीवीडी उपलब्ध थे जो बंद होने के साथ ही गुम हो गए हैं या गुमा दिए गए हैं. इनमें से कई फिल्मों के प्रिंट तो अब उपलब्ध ही नहीं हैं. यह भी एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि जब मध्यप्रदेश में फिल्म उद्योग साकार होगा तो फिल्म आर्काइव की जरूरत होगी. एक फौरी जरूरत तो यह है कि मध्यप्रदेश में जन्मे और मुंबई में अपना स्पेस बनाने वाले कलाकारों एवं सिनेमा के दूसरे क्षेत्रों में महारथ रखने वालों की डायरेक्ट्री तैयार की जाए ताकि जैसे जैसे फिल्म उद्योग की परिकल्पना साकार होने लगे, उनका उपयोग किया जा सके. अभी इस तरह की कोई कोशिश नहीं हुई है. यह एक वजह है कि सिनेमा में मध्यप्रदेश के योगदान की प्रामाणिक और तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध नहीं है.
मध्यप्रदेश के साथ एक बड़ा संकट भाषा का है. अन्य प्रदेशों की तरह मध्यप्रदेश की कोई भाषा नहीं है. मध्यप्रदेश के शीर्षक से बनने वाली फिल्मों की संख्या नगण्य है जबकि क्षेत्रीय भाषाओं यथा बुंदेली, बघेली, मालवीय आदि-इत्यादि में फिल्मों का निर्माण होता रहा है. जो फिल्में मध्यप्रदेश की जमीं पर बनी, वह मुंबईया फिल्मकारों ने बनायी है. प्रकाश झा नामचीन फिल्मकार हैं और उन्होंने आरक्षण, राजनीति और चक्रव्यह का निर्माण किया. यह निर्माण अवधि 2010 से 2012 थी लेकिन उसके बाद उन्होंने मध्यप्रदेश में कोई रूचि नहीं दिखायी. लगातार शूटिंग का सिलसिला जारी है और अनेक फिल्में रिलीज भी हो चुकी हैं लेकिन मध्यप्रदेश को इससे कोई पहचान नहीं मिल पायी है. इस दिशा में भी गंभीरता से काम करने की जरूरत होगी क्योंकि चंदेरी में ‘सुई धागा’ बन जाती है लेकिन इस व्यवसाय में लगे लोगों की जिंदगी वहीं खड़ी रहती है. फिर ‘टॉयलेट एक प्रेमकथा’ में स्वच्छता को लेकर बागी बनने वाली बहू की कहानी तो दर्शायी जाती है लेकिन मध्यप्रदेश हाशिये में रह जाता है. ऐसे बहुत सारी फिल्में हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि मध्यप्रदेश पर प्रकृति का अनुपम वरदान है. किसी फिल्म की जरूरत के अनुरूप शूटिंग के लिए पर्याप्त स्थल हैं और सुविधाएं भी. एक वर्ष में हवाई सुविधाओं में विस्तार हुआ है और हो रहा है. मध्यप्रदेश के प्रमुख शहरों भोपाल, इंदौर, उज्जैन, धार, ग्वालियर, जबलपुर, छतरपुर सहित अन्य जगह हैं जहां फिल्मकार मोहित हुए हैं. इधर मध्यप्रदेश में फिल्म फेस्टिवल का भी विस्तार हुआ है. सीधी जिले में फिल्म फेस्टिवल का आयोजन होना बहुत मायने रखता है तो राजा बुंदेला का खजुराहो में कई वषों से फिल्म फेस्टिवल हो रहा है. राज्य शासन की इकाई ‘वन्या’ जो कि आदिम जाति कल्याण विभाग से संबद्ध है, ने कुछ वर्षों तक इंटरनेशनल ट्रॉयबल फिल्म फेस्टिवल का आयोजन करती थी. अब वह बंद है. ऐसे आयोजनों को पुन: जारी रखने की जरूरत है. निश्चित रूप से आज बेरोजगारी के इस दौर में फिल्म उद्योग एक ऐसा क्षेत्र है जहां हर व्यक्ति की जरूरत होती है. यह भी सच है कि रायसेन, सीहोर और ऐसी छोटी जगहों में रहने वाले मुंबई जाकर संघर्ष नहीं कर सकते लेकिन जब मध्यप्रदेश में ही अवसर मिलेगा तो उन सबके लिए यह स्वर्णिम अवसर होगा.
मध्यप्रदेश में फिल्म उद्योग आने की संभावना बढ़ रही है तब फिल्म के पाठ्यक्रम की जरूरत भी होगी क्योंकि बिना शिक्षा के फिल्म उद्योग में संभावना कम हो जाती है. जिस तरह से टेक्रॉलाजी बढ़ रही है, उस दक्षता के साथ शिक्षण की जरूरत है. वर्तमान समय में ऐसी कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं दिखती है. अंशकालिक पाठ्यक्रम के सहारे प्रतिभा को तराशा नहीं जा सकता है. स्क्रिप्ट राइटिंग, फिल्म समीक्षा, जैसे पाठ्यक्रम के साथ साथ तकनीकी शिक्षा की सबसे बड़ी जरूरत है. जो लोग अभी फिल्म निर्माण के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, उन्हें और दक्षता की जरूरत होगी क्योंकि सिनेमा रोजगार देता है तो प्रतिभा का आंकलन भी करता है. ऐसे में पूर्णकालिक फिल्म पाठ्यक्रम की जरूरत है जिस पर अभी से ध्यान देना होगा.