गांधी : सदा के लिए, सबके लिए

राष्ट्रपिता अथवा महात्मा को लेकर मत-भिन्नता हो सकती है लेकिन गांधी को लेकर सबके विचार समान ही होना चाहिए, यह माना जा सकता है. लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि राष्ट्रपिता अथवा महात्मा को लेकर सवाल उठाना गलत है. यह सवाल सहज ही उठता है कि एक तरफ गांधी को लेकर सहमति की चर्चा है तो दूसरी तरफ राष्ट्रपिता या महात्मा लेकर मत भिन्नता पर स्वीकृति? आखिर गांधी ही तो राष्ट्रपिता अथवा महात्मा हैं. यहीं पर विचार के मार्ग पृथक हो जाते हैं. राष्ट्रपिता अथवा महात्मा व्यक्ति के रूप में हैं किन्तु गांधी व्यक्ति नहीं विचार के रूप में हमारे बीच मौजूद हैं. गांधी विचार को भारत भूमि पर ही नहीं, समूचे संसार में स्वीकार किया गया है. वर्तमान समय में गांधी विचार पहले से ज्यादा सामयिक और व्यवहारिक हो गया है. लेकिन इसके साथ ही गांधी को लेकर मत-भिन्नता का ग्राफ भी बढ़ा है और यह अस्वाभाविक भी नहीं है. गांधी विचार और राष्ट्रपिता या महात्मा में सूत भर का फकत अंतर है. जो समझना चाहते हैं,  वे जानते हैं या जान जाएंगे कि हम किसके साथ हैं या किसके खिलाफ हैं. राष्ट्रपिता या महात्मा को लेकर मत-भिन्नता इस सवाल के साथ स्वाभाविक है कि उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा किस विधान के तहत दिया गया या कि वे महात्मा किस मायने में हो गए? मोहनदास करमचंद गांधी तो एक बैरिस्टर थे, फिर उनकी इतनी अहमियत क्यों? ऐसे अनेक सवाल हमारे आसपास हैं जिन्हें जवाब की प्रतीक्षा है. क्योंकि जिस आधार पर गांधी को राष्ट्रपिता कहा गया, उन्हें महात्मा कहा गया , उसकी वैधानिक स्वीकृति भले ही ना हो लेकिन लोक समाज की स्वीकृति साथ जरूर है. और इसी लोक स्वीकृति के साथ गांधी विचार कभी राष्ट्रपिता तो कभी महात्मा का संबोधन प्राप्त करते हैं. और शायद यही कारण है कि उनकी साद्र्धशती को हम पूरे उत्साह के साथ उत्सव की तरह मनाते हैं.
लोक समाज की स्वीकृति के साथ ही किसी भी समाज का ताना-बाना बुना जाता है और खासतौर पर भारतीय समाज का ताना-बाना तो लोक समाज की स्वीकृति पर ही रचित है. हमारे समक्ष ऐसे कई पात्र हैं जिनका अस्तित्व नहीं है, वे निराकार हैं लेकिन लोक समाज की उन्हें स्वीकृति प्राप्त है और बिना किसी तर्क हम उन्हें सदियों से मान रहे हैं. संसार का कोई भी लोक समाज हिंसा, पाप, असत्य जैसे विषयों पर अपनी सहमति नहीं देता है. गांधी इन्हीं विषयों पर समाज का ध्यान आकृष्ट करते हैं. सबसे बड़ी बात होती है कि स्वयं की गलती सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना. गांधी ऐसा करते हैं और शायद इसलिए उनकी स्वीकारोक्ति गांधी विचार के रूप में लोक समाज अधिग्रहित करता है. स्वाधीनता के करीब सात दशक बाद हमारे प्रधानमंत्री स्वच्छ भारत अभियान आरंभ करते हैं तो वह रास्ता भी गांधी विचार से उपजा हुआ होता है. ऐसे कई प्रसंग हंै जब स्वयं गांधी ने पाखाना साफ कर स्वच्छता का संदेश दिया था. जब हमारे प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत की चर्चा करते हैं तो यह रास्ता भी गांधी विचार से उपजा होता है. आत्मनिर्भर का रास्ता लघु उद्योग और ग्राम समाज से बनता है. ऐसे कई प्रसंग हैं जो बार-बार और हर बार हमें गांधी विचार की ओर लेकर जाते हैं. इन सब प्रसंग की चर्चा करते हैं तो सहज ही मन में भाव आता है कि गांधी सदा के लिए और सबके लिए हैं. वे लोक समाज के प्रतिनिधि रहे हैं और बने रहेंगे.
कुछ और ऐसे मुद्दे हैं जिन पर विमर्श करना सामयिक प्रतीत होता है. किसी भी महापुरुष ने नहीं कहा कि उनके नाम के स्मारक बनाओ, सडक़, चौराहे बनाओ या ऐसे कोई प्रकल्प तैयार करो जिसमेंं उनकी छवि उकेरी जाती हो लेकिन हमने ऐसा किया क्योंकि लोक समाज का मानना है कि इससे एक संदेश जाता है कि ये कौन थे. इसे भी आप उचित मान लें तो आपने गांधी मार्ग का निर्माण किया लेकिन उसे सडक़ में बदल दिया और सडक़ की जो दुर्दशा होती है, वह कोई विमर्श नहीं मांगता है. गांधी मार्ग को छोडक़र हम सडक़ पर चल रहे हैं और सडक़ हमें अपनी गंतव्य के आसपास ही छोड़ देती है लेकिन गांधी मार्ग अपनाते तो हम जीवन के निश्चित लक्ष्य तक पहुंच सकते थे.  गांधी मार्ग सडक़ नहीं है, यह विचारों का सफर है जो आपके लक्ष्य को सुनिश्चित करता है. यह भी बेहद पीड़ादायक है कि किसी भी ग्रंथ का, विचारधारा का पठन-पाठन करने के पहले ही हम अपनी प्रतिक्रिया हवा में उछाल देते हैं. यह अधिकार तो किसी ने नहीं दिया कि आप सतही और तर्कहीन बातें करें और खासतौर पर लोक समाज में ऐसी प्रतिक्रियाओं के लिए कोई स्थान शेष नहीं हैं. स्वाधीन भारत में हमारे 70 साल का समय गुजर रहा है और स्वाधीनता संग्राम के समय बहुत कुछ अच्छा हुआ तो कुछेक प्रसंग दुखदायी भी होंगे लेकिन आज आवश्यकता इस बात की है कि हम लोक समाज में उन स्वर्णिम प्रसंग को लेकर जाएं जो नयी पीढ़ी के लिए प्रकाश का कार्य करे. हम एक नये भारत के निर्माण की चर्चा करते हैं तो स्वाभाविक है कि विचार भी नए होंं. गांधी के विचार इसलिए हमेशा सामयिक हैं कि उन्हें जिस खाने में रखना चाहेंगे, आकार ले लेगा. सत्य, अहिंसा, नैतिक मूल्य, आत्मनिर्भरता, महिला शिक्षा, किसान आदि इत्यादि ऐसे विषय हैं जो यक्ष प्रश्र की तरह हमारे समक्ष खड़े होकर जवाब मांग रहे हैं. यह समय बदलाव का है और बदलते समय में जो भी प्रासंगिक है, उसे लोक समाज को परिचित कराने की जवाबदारी हमारी है. गांधी का सबसे बड़ा अस्त्र दूसरों की गलतियों को माफ करना रहा है तो आज हम संकल्प लें कि आज से हम इस अस्त्र को अपने विकास के लिए उपयोग करेंगे क्योंकि दूसरों को माफी देने के लिए नैतिक साहस की जरूरत होती है और जब नैतिक साहस होगा तो अनेक समस्याओं का समाधान स्वयमेव हमें मिल जाएगा. 

मनोज कुमार के अन्य अभिमत

© 2023 Copyright: palpalindia.com
CHHATTISGARH OFFICE
Executive Editor: Mr. Anoop Pandey
LIG BL 3/601 Imperial Heights
Kabir Nagar
Raipur-492006 (CG), India
Mobile – 9111107160
Email: [email protected]
MADHYA PRADESH OFFICE
News Editor: Ajay Srivastava & Pradeep Mishra
Registered Office:
17/23 Datt Duplex , Tilhari
Jabalpur-482021, MP India
Editorial Office:
Vaishali Computech 43, Kingsway First Floor
Main Road, Sadar, Cant Jabalpur-482001
Tel: 0761-2974001-2974002
Email: [email protected]