संकट काल में महिलाएं हुई बेहाल

कोरोना वायरस महामारी का महिलाओं के काम पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.  खासकर अकेली महिलाओं, विधवाओं, दैनिक मजदूरी करने या असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली  महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा कानूनों के तहत कोई सुरक्षा नहीं मिली है. उनके सामने कामकाज के दोहरे बोझ के साथ ही वित्तीय संकट भी आ खड़ा हुआ है.सबसे दुखदायी बात ये कि उन्हें दूर-दूर तक आशा की कोई किरण भी नज़र नहीं आ रही.  

इस पुरुषवादी दुनिया में आम तौर पर घर की साफ-सफाई, चूल्हा-चौका, बच्चों की देख-रेख और कपड़े धोने के साथ रसोई  का काम महिलाओं के जिम्मे होता है. हालांकि अब कामकाजी दंपतियों के मामले में यह सोच बदल रही है. लेकिन फिर  भी ज्यादातर परिवारों में यही मानसिकता काम करती है. नतीजतन इस लंबे लॉकडाउन में ज्यादातर महिलाएं कामकाज के बोझ तले पिसने पर मजबूर हैं. भारतीय महिलाएं दूसरे देशों के मुकाबले रोजाना औसतन छह घंटे ज्यादा ऐसे काम करती हैं जिनके एवज में उनको पैसे भी नहीं मिलते. जबकि भारतीय पुरुष ऐसे कामों में एक घंटे से भी कम समय खर्च करते हैं और ज्यादा रुतबा रखते हैं.

कोविद -19 लॉकडाउन ने महिलाओं के लिए रोजगार की उपलब्धता को लगभग कम कर दिया है और देखभाल के काम का बोझ बढ़ गया है. घर पर परिवार के सभी सदस्यों के साथ बच्चों को स्कूल से बाहर खाना पकाने, साफ-सफाई, बच्चों की देखभाल और बुजुर्गों की देखभाल के कार्य अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं .

 मेरे विचार से इसमें कोई संदेह नहीं है कि घरेलू कार्यों के प्रबंधन और कम आय की स्थिति में  महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा. ग्रामीण महिलाओं के बीच मौजूद पहले से ही उच्च स्तर के कुपोषण की भी बढ़ने की पुरजोर संभावना है, क्योंकि घरों में भोजन की मात्रा कम हो रही है  साथ ही लॉकडाउन के दौरान महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा दबाव में रही है, जिसके उलटे परिणाम उनके स्वास्थ्य पर नज़र आने शुरू हो गए है.

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी कहा है कि दुनिया में कोरोना वायरस (कोविड-19) के लगातार बढ़ते हुए संक्रमण का महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जिसके कारण उनके प्रति मौजूद सामाजिक असमानता काफी बढ़ी है.  उन्होंने कहा कि इस महामारी के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य से लेकर उनकी आर्थिक स्थिति और सामाजिक सुरक्षा पर काफी बुरा असर पड़ा है. महिलाओं के खिलाफ हिंसा भी काफी बढ़ गयी है.  

आज कोरोना की वजह से ग्रामीण महिलाओं को नियमित रोजगार के संकट का सामना पहले की अपेक्षा ज्यादा करना पड़ रहा है.  एक सर्वे के अनुसार महामारी के समय में नौकरी का नुकसान पुरुषों की तुलना में ग्रामीण महिलाओं के लिए बड़ा रहा है. वैसे भी महिलाओं को श्रमिकों के रूप में रिपोर्ट नहीं किया जाता है और नियमित रोजगार का यह संकट महामारी और तालाबंदी के दौरान तेज हो गया होगा.

छोटी और अधिक शिक्षित महिलाएं अक्सर छोटे काम की तलाश की बजाय  कुशल गैर-कृषि कार्य की आकांक्षा रखती हैं, जबकि बड़ी उम्र की महिलाएं  घरेलू कामों  की अधिक इच्छुक होती हैं. इसलिए इनके कामों की चर्चा अर्थव्यवस्था की सुर्खिया नहीं बन पाती.  डेटा बताता है कि  लॉकडाउन के बाद 71% महिलाओं ने अपनी नौकरी खो दी है. और जो नौकरी कर रही है वहां महिलाओं का वेतन पुरुषों के वेतन के बराबर नहीं है.  

 देश के बड़े हिस्से में  महिलायें कृषि कार्यों में संलग्न है जहां वर्षा आधारित कृषि प्रचलित है और इस बार मार्च से मई के बीच के महीनों में कृषि कार्य नहीं हुआ. कृषि से संबद्ध गतिविधियों में रोजगार और आय, जैसे कि पशु पालन, मछली पालन और फूलों की खेती भी तालाबंदी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई. गैर-कृषि रोजगार निर्माण स्थलों, ईंट भट्टों, पेटी स्टोर और भोजनालयों, स्थानीय कारखानों और अन्य उद्यमों के पूरी तरह से बंद हो जाने के कारण अचानक बंद हो गए.

हमें महिलाओं के योगदान को श्रम बाजार की तस्वीर में सही से उजगार करना होगा और महिला-विशिष्ट रोजगार उत्पन्न  करने पर जोर देना होगा. दीर्घकालिक योजनाओ और नए उद्यमों में महिला-विशिष्ट रोजगार उत्पन्न करने की वर्तमान में निसंदेह आवश्यकता है. महिलाओं के लिए उनके घरों से कार्यस्थलों तक सुरक्षित और आसान परिवहन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. इसकी कमी की वजह से ही लॉक डाउन हटने के बाद भी युवा और बुजुर्ग महिलाएं अभी भी घर पर हैं.

  पिछले कुछ दशकों में महिलाओं के रोजगार के नए स्रोतों में से सरकारी योजनाएं आई हैं, विशेष रूप से स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों में,उदाहरण के लिए जहाँ महिलाएँ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या मिड-डे मील बनाने वाली कुक के रूप में काम करती हैं. महामारी के दौरान, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या आशाएं, जिनमें से 90% महिलाएं हैं, फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता बन गई हैं और अपने आपको साबित कर चुकी है.  अब  हमें ग्रामीण परिवारों के लगभग सभी वर्गों की महिलाओं को शामिल करने की आवश्यकता है.  

 साथ ही महिलाओं के रोजगार के  कुशल व्यवसायों में और नए उद्यमों में महिला-विशिष्ट रोजगार उत्पन्न करने की आवश्यकता है. देश में स्वास्थ्य क्षेत्र के अलावा अन्य सभी क्षेत्रों में महिलायें कहीं न कहीं  जमीनी स्तर की महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, इन सभी को श्रमिकों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए और उचित एवं पुरुषों के बराबर मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए. आत्म निर्भर भारत अभियान और कोरोना से जुडी योजनाओं में अकेली महिलाओं, विधवाओं, दैनिक मजदूरी करने या असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं  को सामाजिक सुरक्षा कानूनों के तहत कोई विशेष पैकेज या सुरक्षा नहीं मिली है. उनके सामने आज और ज्यादा कामकाज और दोहरे वित्तीय संकट है.

वैसे भी  ऐसतिहासिक तथ्य है कि युद्ध या दैवीय आपदाओं के संकटकाल में महिलाओं को ही सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. लेकिन कोरोना तमाम आपदाओं पर भारी साबित हो रहा है. आज इसकी वजह से गांव- शहर में  गृहिणी या कामकाजी, कोई भी महिला सुरक्षित नहीं है. ऐसे गंभीर हालात में भारत सरकार एवं राज्य सरकारों को इस आधी आबादी की सेहत और सुरक्षा के साथ-साथ वित्तीय समस्याओं पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना चाहिए. महिलाओं के भविष्य को केन्द्र में रखकर सामाजिक एवं आर्थिक नीतियां बनाई जानी चाहिए जिसका परिणाम बेहतर होगा.     
 

डॉ. सत्यवान सौरभ के अन्य अभिमत

© 2023 Copyright: palpalindia.com
CHHATTISGARH OFFICE
Executive Editor: Mr. Anoop Pandey
LIG BL 3/601 Imperial Heights
Kabir Nagar
Raipur-492006 (CG), India
Mobile – 9111107160
Email: [email protected]
MADHYA PRADESH OFFICE
News Editor: Ajay Srivastava & Pradeep Mishra
Registered Office:
17/23 Datt Duplex , Tilhari
Jabalpur-482021, MP India
Editorial Office:
Vaishali Computech 43, Kingsway First Floor
Main Road, Sadar, Cant Jabalpur-482001
Tel: 0761-2974001-2974002
Email: [email protected]