राधाकृष्णन की आरएसएस विचारधारा से चिंतित विपक्ष ने भी घोषित किया प्रत्याशी

भारत के उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के समयपूर्व इस्तीफे के बाद 09 सितंबर को होने वाले उप राष्ट्रपति चुनाव की गहमागहमी ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की पृष्ठभूमि वाले नेता सी.पी. राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार घोषित किया है. तो विपक्ष ने राधाकृष्णन की आरएसएस से जुड़ाव के चलते उन्हें वॉकओवर देने से इंकार कर दिया. विपक्षी गठबंधन ने इस बार मजबूत जवाबी रणनीति अपनाई है और पूर्व न्यायाधीश सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा है. राधाकृष्णन के आरएसएस से गहरे जुड़ाव के कारण विपक्ष ने यह कदम उठाया है, जिससे यह चुनाव एक वैचारिक और रणनीतिक टकराव का केंद्र बन गया है.

गौरतलब हो, सी.पी. राधाकृष्णन का राजनीतिक सफर चार दशक से अधिक का है. मात्र 16 वर्ष की आयु में वह आरएसएस और भारतीय जनसंघ से जुड़ गए थे. तमिलनाडु में बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और कोयंबटूर से दो बार लोकसभा सांसद रह चुके राधाकृष्णन ने संगठनात्मक कार्यों में अपनी गहरी पकड़ बनाई है. उनकी उम्मीदवारी को बीजेपी की दक्षिण भारत में पैठ बढ़ाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, खासकर तमिलनाडु में, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. राधाकृष्णन की ओबीसी पृष्ठभूमि (वेल्लाला गौंडर जाति) को भी बीजेपी ने सामाजिक समीकरण साधने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक माना है.

उधर, राधाकृष्णन की आरएसएस पृष्ठभूमि विपक्ष के लिए चिंता का विषय बनी है. विपक्ष का मानना है कि राधाकृष्णन की विचारधारा संवैधानिक पद की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है, जैसा कि पूर्व उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के कार्यकाल में उनके पक्षपात के आरोपों के बाद देखा गया था. विपक्ष ने इस बार रणनीतिक रूप से पूर्व न्यायाधीश सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार चुना है. रेड्डी, जो अपनी निष्पक्ष और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं, को विपक्ष ने एक मजबूत चेहरा माना है. उनकी उम्मीदवारी का मकसद यह संदेश देना है कि विपक्ष संवैधानिक पदों पर निष्पक्षता और स्वतंत्रता को प्राथमिकता देता है. रेड्डी का चयन न केवल राधाकृष्णन की विचारधारा को चुनौती देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि विपक्ष इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता.

इस पूरे घटनाक्रम पर कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा, राधाकृष्णन का नामांकन आरएसएस को खुश करने और तमिलनाडु में बीजेपी को मजबूत करने की रणनीति है. हमें एक ऐसा उम्मीदवार चाहिए जो संविधान की रक्षा करे, न कि किसी विचारधारा का प्रवक्ता बने. बता दें उप राष्ट्रपति का चुनाव परोक्ष रूप से होता है, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा के सांसद मतदान करते हैं. एनडीए के पास राज्यसभा में बहुमत होने के कारण राधाकृष्णन की जीत की संभावना मजबूत मानी जा रही है. जेडीयू, टीडीपी, लोजपा (रामविलास), हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और वाईएसआरसीपी जैसे सहयोगी दलों ने राधाकृष्णन को समर्थन देने की घोषणा की है. हालांकि, विपक्ष के पास भी गठबंधन के तहत कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी और अन्य क्षेत्रीय दलों का समर्थन है, जो इस मुकाबले को रोमांचक बना सकता है.

8 जुलाई 1946 को जन्मे रेड्डी ने 27 दिसंबर 1971 में न्यायिक पारी की शुरुआत की थी. तब वह आंध्र प्रदेश बार काउंसिल में वकील के तौर पर शामिल हुए थे. साल 1990 में वह करीब 6 महीनों के लिए केंद्र सरकार के लिए अतिरिक्त स्थायी वकील भी रहे. वह उस्मानिया यूनिवर्सिटी के स्थायी वकील और कानूनी सलाहकार के तौर पर काम कर चुके हैं. 2 मई 1995 में उन्हें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का स्थायी जज बनाया गया था. 5 दिसंबर 2005 को वह गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और 12 जनवरी 2007 को सुप्रीम कोर्ट जज बने. 8 जुलाई 2011 को वह रिटायर हो गए थे. विपक्ष की रणनीति एनडीए के सहयोगी दलों, जैसे जेडीयू और टीडीपी, में असहजता पैदा करने की है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि बिहार या आंध्र प्रदेश से उम्मीदवार उतारकर विपक्ष नीतीश कुमार या चंद्रबाबू नायडू को दबाव में ला सकता था, लेकिन रेड्डी के चयन ने इस रणनीति को बदल दिया. रेड्डी की निष्पक्ष छवि विपक्ष को नैतिक बढ़त दे सकती है, जिससे कुछ तटस्थ सांसद उनके पक्ष में मतदान कर सकते हैं.

वहीं राधाकृष्णन की उम्मीदवारी बीजेपी की दक्षिण भारत में विस्तार की रणनीति का हिस्सा है. तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके के दबदबे के बीच बीजेपी ओबीसी वोटों को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है. दूसरी ओर, रेड्डी की उम्मीदवारी विपक्ष के लिए एक वैचारिक जवाब है, जो संवैधानिक मूल्यों और निष्पक्षता को केंद्र में रखता है. कुल मिलाकर 9 सितंबर 2025 को होने वाला उप राष्ट्रपति चुनाव अब केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि विचारधाराओं का टकराव बन गया है. राधाकृष्णन की आरएसएस पृष्ठभूमि और रेड्डी की निष्पक्ष छवि इस चुनाव को एक दिलचस्प मुकाबला बनाती है. हालांकि एनडीए की संख्याबल के आगे राधाकृष्णन का जीतना तय माना जा रहा है, लेकिन विपक्ष का यह कदम एक मजबूत संदेश देता है कि वह संवैधानिक पदों पर अपनी आवाज को बुलंद करने के लिए तैयार है. यह चुनाव न केवल संसद में, बल्कि देश की जनता के बीच भी एक वैचारिक बहस को जन्म दे सकता है.

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