प्रदीप द्विवेदी. राहुल गांधी को पाॅलटिकली अंडरएस्टीमेट करना पंजाब में बीजेपी को भारी पड़ गया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी विभिन्न मुद्दों को लेकर मोदी सरकार को अक्सर सवालों के घेरे में खड़ा करते रहे हैं. इन वर्षों में नोटबंदी, राफेल सौदा, जीएसटी, कोरोना लापरवाही, बेरोज़गारी सहित अनेक मुद्दों को लेकर राहुल गांधी आक्रामक रहे हैं, लेकिन मोदी टीम का सियासी प्रबंधन ऐसा रहा कि राहुल गांधी को ज्यादातर मुद्दों पर आंशिक सफलता ही मिल पाई.

यह पहला मौका है, जब राहुल गांधी ने केन्द्र के कृषि क़ानूनों को काले कानून करार देते हुए इन्हें रद्द करने के लिए अभियान छेड़ दिया और वे अपनी बात सही तरीके से जनता तक पहुंचाने में कामयाब हो गए हैं. यही कारण है कि इसके बाद किसानों की नाराज़गी पहले पंजाब में और फिर हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में  आंदोलन के रूप में सामने आ गई.

कृषि क़ानूनों से होने वाले सियासी नुकसान को या तो मोदी सरकार समझ नहीं पाई या फिर समझना नहीं चाहती थी, क्योंकि पंजाब में अकाली दल, राजस्थान में आरएलपी जैसे सहयोगी दलों ने बीजेपी से नाता तोड़ा, बावजूद उसके, कृषि क़ानूनों को रद्द नहीं करने पर मोदी सरकार अड़ी रही.

अब पंजाब नगर निगम, नगर परिषद और नगर पंचायतों के चुनावों के नतीजों ने बीजेपी को बेचैन कर दिया है, क्योंकि किसान आंदोलन में सिखों की तरह ही जाट भी पूरी तरह से सक्रिय हैं और यदि जाटों ने भी पंजाब जैसी नाराज़गी दिखाई तो उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा आदि राज्यों में भी बीजेपी को तगड़ा सियासी झटका लगेगा.

उल्लेखनीय है कि पंजाब में हुए नगर निगम, नगर परिषद और नगर पंचायतों के चुनावों में कांग्रेस ने एकतरफ़ा जीत हासिल की है.

ये कृषि क़ानूनों के मद्देनज़र, किसान आंदोलन और अकाली दल के बीजेपी से अलग होने के बाद हुए किसी चुनाव के परिणाम हैं.

अब तक, पंजाब में 8 नगर निगमों और 109 नगर परिषदों के लिए हुए चुनावों में आए 7 नगर निगमों के नतीजों में सभी कांग्रेस ने जीते हैं.

यही नहीं, 190 नगर परिषद में से अब तक 104 के नतीजे आए हैं, जिनमें कांग्रेस ने 98 और विपक्षी दलों ने 6 नगर परिषदों में जीत दर्ज की है, मतलब- पंजाब में कांग्रेस का एकतरफ़ा जीत का परचम लहरा रहा है.

ग़ौरतलब है कि सुखबीर सिंह बादल के ही निर्वाचन क्षेत्र जलालाबाद में कांग्रेस ने 11 सीटें जीती हैं, जबकि अकाली दल ने महज पांच सीटें जीती हैं.

हालांकि, कृषि क़ानूनों का विरोध कर रही आम आदमी पार्टी को पंजाब में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद थी, लेकिन उसके हिस्से में भी सियासी बेचैनी ही आई है.

बीजेपी के लिए ये नतीजे इसलिए चिंता का विषय हैं कि इनका असर पूरे उत्तर भारत में नजर आ सकता है.

कांग्रेस पर लोगों ने भरोसा इसलिए भी किया है कि राहुल गांधी पहले दिन से ही कृषि क़ानूनों का खुलकर विरोध कर रहे हैं, जबकि आप और अकाली दल को किसानों की भावना समझने में थोड़ा वक्त लग गया. फिर भी समय रहते अकाली दल बीजेपी से दूर हो गया, वरना और भी खराब हालत होती.

याद रहे, अकाली दल ने पहले तो कृषि विधेयक संसद में पारित होने दिए और जब किसानों की नाराज़गी सामने आई, तो बीजेपी से किनारा कर लिया.

पंजाब में वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी के लिए तो पहले भी वहां कुछ खास संभावनाएं नहीं थी, परन्तु आप और अकाली दल के लिए तो अब यह यक्ष-प्रश्न है कि सियासी हालात कैसे सुधरेंगे?

राहुल गांधी तीसरे दौर के प्रयास में पीएम मोदी को एक्सपोज करने में कामयाब हो गए हैं, यही वजह है कि....

* पल-पल इंडिया (28 दिसंबर 2020)  

कांग्रेस ने सोमवार को अपना 136वां स्थापना दिवस मनाया, लेकिन इस मौके पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी विदेश दौरे पर हैं.

वे व्यक्तिगत यात्रा पर गए हुए हैं, लेकिन राहुल गांधी की इस यात्रा पर उनके विरोधियों ने सियासी हमला बोला है, खासकर बीजेपी के कई नेताओं ने उन पर सियासी निशाना साधा है.

बड़ा सवाल यह है कि राहुल गांधी को लेकर मोदी टीम इतनी परेशान क्यों है.

दरअसल, राहुल गांधी तीसरे दौर के प्रयास में पीएम मोदी को पाॅलिटिकली एक्सपोज करने में कामयाब हो गए हैं, यही वजह है कि मोदी टीम अब लगातार राहुल गांधी को लेकर आक्रामक है.

पहले दौर में राहुल गांधी ने पीएम मोदी को राफेल सौदे को लेकर सियासी हमला किया था, लेकिन- चौकीदार चोर है, के मुद्दे पर अदालत का हवाला देकर राहुल गांधी खुद उलझ गए थे. इस मामले में अदालत की कार्रवाई को राफेल सौदे में क्लीन चिट की तरह प्रचारित किया गया. आज भी प्रमुख प्रश्न है कि क्या कोर्ट ने राफेल मामले में मोदी सरकार को यह क्लीन चिट दी थी कि उसमें कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ था.

इसके बाद दूसरे दौर में राहुल गांधी ने रोजगार के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरा था, जिसमें उन्हें आंशिक सफलता मिली और इसके नतीजे में बिहार के विधानसभा चुनाव में पहली बार इमोश्नल मुद्दों पर बेरोजगारी जैसे वास्तविक मुद्दे भारी पड़े.

लेकिन, राहुल गांधी को असली कामयाबी मिली तीसरे दौर में, जब उन्होंने कृषि कानून के मुद्दों पर पीएम मोदी को पाॅलिटिकली एक्सपोज किया कि ये कानून किसानों के खिलाफ हैं और पीएम मोदी के कारोबारी मित्रों को लाभ पहुंचाने के मकसद से लाए गए हैं.

इस बार कृषि कानूनों को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ न केवल किसान आंदोलन बेहद प्रभावी है, बल्कि पीएम मोदी के कारोबारी मित्रों को लेकर भी खुलकर बोला जा रहा है.

जाहिर है, पहली बार पीएम मोदी को प्रभावी तरीके से पाॅलिटिकली एक्सपोज करने में राहुल गांधी कामयाब हो गए हैं.

यही खास वजह है कि मोदी टीम लगातार राहुल गांधी पर सियासी हमले कर रही है, किन्तु यक्ष प्रश्न यह है कि आंदोलन किसान कर रहे है, सवाल भी किसान संगठन मोदी सरकार से कर रहे हैं, तो फिर, सरकार किसानों को जवाब देने के बजाय बार-बार कांग्रेस को क्यों टार्गेट कर रही है?

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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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