एमपी सरकार का बड़ा फैसला: बच्चों को परीक्षा में नहीं बैठाया तो 3 साल की जेल, जुर्माना भी लगेगा

एमपी सरकार का बड़ा फैसला: बच्चों को परीक्षा में नहीं बैठाया तो 3 साल की जेल, जुर्माना भी लगेगा


भोपाल/जबलपुर. निजी स्कूलों द्वारा फीस वसूली के लिए अलग-अलग तरह से विद्यार्थियों और पालकों को प्रताडि़त किया जा रहा है. तमाम नियम-निर्देशों के बावजूद स्कूल संचालक मनमानी पर उतारू हैं. इसी बीच, मध्यप्रदेश के लोक शिक्षण संचालनालय ने एक निर्देश जारी किया है. इसके बाद प्रदेशभर के प्राइवेट स्कूल संचालकों में हड़कंप मच गया है. संचालनालय ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2015 की धारा-75 का हवाला देते हुए कहा है कि स्कूलों की ओर से किसी भी तरह से विद्यार्थियों को प्रताडि़त करने पर स्कूल संचालक को 1 लाख जुर्माना या 3 वर्ष का कारावास हो सकता है.

स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा ऑनलाइन कक्षाओं को लेकर फीस निर्धारण पहले ही किया जा चुका है. इसके बावजूद निजी स्कूलों द्वारा पालकों पर दबाव बनाते हुए फीस जमा नहीं कर पाने पर बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई और परीक्षा से वंचित किया जा रहा है. जागृत पालक संघ के एडवोकेट चंचल गुप्ता ने बताया कि लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा एक आदेश जारी किया गया, जिसमें जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देशित किया गया है कि बच्चों की फीस समय पर प्राप्त न होने का मुद्दा स्कूल प्रबंधन व अभिभावकों से संबंधित है. इसे अभिभावकों से चर्चा कर दूर किया जाना चाहिए.

किसी भी स्थिति में बच्चों को स्कूल आने से, ऑनलाइन कक्षा, परीक्षा इत्यादि में समिलित होने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. यदि कोई निजी स्कूल फीस के कारण बच्चों को स्कूल आने से रोकता है या ऑनलाइन पढ़ाई, परीक्षा इत्यादि से वंचित करता है तो यह बालकों की देखरेख और संरक्षण अधिनियम की धारा-75 के अंतर्गत दण्डनीय अपराध है, जिसमें संबंधित स्कूल संचालक या प्राचार्य को 3 वर्ष कारावास या 1 लाख रुपए तक का दंड हो सकता है. या दोनों सजा भी मिल सकती है. एडवोकेट गुप्ता ने बताया कि इंदौर के जागृत पालक संघ द्वारा मनमानी स्कूल फीस के विरोध में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका भी लगाई है, जो कि वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है. इसमें माननीय कोर्ट द्वारा राज्य सरकार, सीबीएसई बोर्ड, आईसीएसई बोर्ड व एसोसिएशन ऑफ अनएडेड प्राइवेट स्कूल को नोटिस जारी किए हैं.

लगातार मामले सामने आते रहे

मध्य प्रदेश में लगातार इस तरह के मामले सामने आते रहे, जहां कई स्कूल संचालकों ने गाइडलाइन के विपरीत जाते हुए ऑनलाइन कक्षाएं बंद कर दी है. इसके अलावा उन्हें स्कूल आने पर मजबूर किया जा रहा है. जब बच्चे स्कूल जाते हैं तो उन्हें बैठने से पहले फीस भरने के लिए कहा जा रहा है. कई स्कूलों से ऐसी शिकायतें आ रही हैं कि जब कोविड के खतरे के कारण कई बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, उसके बावजूद भी बसों की फीस वसूली की जा रही है. कई पालकों ने स्कूल संचालक से चर्चा की लेकिन वे दिसंबर माह से ही स्कूल बसों की फीस भी मांग रहे हैं. पालकों का कहना है कि एक तो कोरोना पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है, ऐसे में बच्चों को स्कूल बुलाया जाना गलत है. पूरे सालभर बच्चे अपने घर से पढ़ाई करते रहे और एक माह के लिए स्कूल बुलाकर बच्चों और परिवार को खतरे में डाला जा रहा है.

जबलपुर में लिटिल किंगडम स्कूल ने भी परीक्षा मेें नहीं बैठने दिया

वहीं जबलपुर में भी इसी तरह का मामला सोमवार को सामने आया, जहां अधारताल क्षेत्र स्थित रामनगर में लिटिल किंगडम स्कूल ने 9वीं कक्षा के एक छात्र को इसलिए परीक्षा में नहीं बैठने दिया, क्योंकि उसकी फीस नहीं भरी गई थी, जबकि छात्र के पिता ने लिखित में स्कूल प्रबंधन से अनुरोध किया था कि वह इस माह फीस चुका पाने में असमर्थ है, वह अगले माह पूरी फीस चुकता कर देगा. इसके बावजूद स्कूल प्रबंधन का दिल नहीं पसीजा और छात्र को परीक्षा में नहीं बैठने दिया.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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