अब धन सबको चाहिए आजकल. हर कोई राज योग चाहता है. जिसको देखो अपनी कुंडली मे धन ढूंढता है. लेकिन मिलता कुछ नही. कारण है हमारे जड़ कर्म.
धन आता कहा से है मुख्य रूप से. लाभ स्थान है एकादश. धन स्थान, मतलब संचय किया हुआ धन द्वितीय स्थान. और लग्न सबसे मुख्य. तो ये 3 भाव तो मुख्य हो गए पैसा आने के.
लेकिन बाकी के भाव और ग्रहः भी आगमन के कोई न कोई साधन होते ही है. अब समझ लो पंचम भाव बलि है तो वो जनता का धन हो गया. कुछ लोग ऐसे होते है जो जनता के पैसे से मौज करते है अपना कोई पैसे नही लगते. मंत्री, चिट फण्ड , lic, आदि जितनी भी चीजे है जिसमे पब्लिक का पैसा लगता है. पंचम भाव संतान भाव भी है. पंचम भाव वली हुआ तो संतान से लाभ, विद्या से लाभ. जातक अपनी बुद्धि के बल पे पैसा कमाएंगे.
अब अगर षष्टम भाव देखे तो संतान का धन हो गया. ये बलि हुआ तो संतान के पास धन रहेगा. तो अगर हमारे पैसे बच नही रहे तो संतान के नाम से बचत कर सकते है. यही षष्टम भाव सप्तम का नाश भाव है. सप्तम ग्राहक, बैंक आदि हो गया. तो कर्ज या ग्राहक हमे पैसा देगा कि नही वो षष्टम भाव से देख सकते है. अगर आब बिज़नेस करते है तो इस भाव को देखना बहुत ही जरूरी है.
अब ग्रहो को देखे तो बुद्ध धन का मुख्य कारक ग्रह है. बिज़नेस का भी. गुरु तो धन और एकदश दोनो का कारक भी है. गुरु तो मुख्य हो गया लेकिन गुरु उतना ही दिलाएगा जितनी जरूरत होगी.
तो इस तरह अगर लग्न, एकादश ओर द्वितीय भाव अगर हमारे पक्ष में नही है तो बाकी भावो ओर ग्रहो का विश्लेषण भी करना चाहिए. कौन सा भाव कौन सा ग्रहः बलि है और उनके किन कारकत्वों से धन आगमन संभव है.
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-कुंडली में लग्नेश बलवान नहीं हो तो लग्न दोष का निर्माण हो जाता
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