डॉ. कुंजन आचार्य. मैं आठवीं क्लास में था. कविताएं लिखता था. गुरु मां ज्योत्स्ना दीदी लेखन के संस्कार दे रही थी. पहली बार जब दीदी के घर गया तो उनके जीवनसाथी डॉ देवेंद्र इंद्रेश से मुलाकात हुई.
उन्होंने मुझे अखबार में छपे अपने सैकड़ों व्यंग्य दिखाए तो मैं हतप्रभ रह गया. मेरी भी बड़ी इच्छा होती थी कि अपनी भी कोई कविता अखबार में छपे, लेकिन तरीका पता नहीं था. ऐसे में ऐसे लेखक से मिलना जो देश भर के अखबारों में छप रहा हो तो उनसे मिलना मेरे लिए कितनी ऊर्जा की बात होगी, ये सिर्फ मैं ही महसूस कर सकता था. मेरे लिए इंद्रेश अंकल उस समय से ही एक सेलिब्रेटी रहे. दीदी मुझे लिखने को प्रेरित करती तो अंकल छपने को. यह सिलसिला मुझे अखबारी दुनिया और खबरों के महासमुद्र की ओर खींच ले गया.
ऐसे कलम के धनी हम सब के प्रिय डॉ देवेंद्र इंद्रेश अब हमारे बीच नहीं रहे. यह वह शख्सियत थी, जिन्होंने बहुत छोटे शब्दों में बड़ी व्यंग्य भरी बातें कह कर देश के ख्यातनाम व्यंग्यकारों में अपना स्थान बनाया. करीब दो दशक पहले 'मेरा श्रद्धांजलि समारोह' पुस्तक लिखकर उसमें खुद के मरने और खुद के श्रद्धांजलि समारोह की कल्पना करने वाले अद्भुत व्यंग्यकार हम सब को छोड़ कर चले गए.
अस्सी के दशक में उनकी पुस्तक' निंदक नियरे राखिए' अखबारों की सुर्खियां बना वहीं पिछले साल ही आया उनका व्यंग्य संग्रह 'लोकतंत्र के हम खरबूजे' काफी चर्चित रहा. जब भी उनसे मिलता तो अंकल मुझे 'प्रोफेसर' शब्द से संबोधित करते और कुछ न कुछ खाने का अनुरोध करते. मैं मना करता तो व्यंग्य भरे लहजे में कहते -'खाओ यार खाओ.. पूरा देश खा रहा है'.
उनकी निश्चल हंसी, उनका पुत्रवत स्नेह और अनवरत मार्गदर्शन अविस्मरणीय रहेगा. यह निराशा का दौर आपको भी सहयात्री बना लेगा, पता न था. क्षमा करना अंकल, हम सबने बहुत कोशिश की लेकिन हाथ से अचानक छूटी आपकी जीवन डोर वापस नहीं पकड़ सके. परमपिता परमेश्वर ज्योत्स्ना दीदी को यह वज्रपात सहने की ताकत, हौंसला दे और अंकल को अपने श्री चरणों में स्थान दे, सद्गति प्रदान करें. ऐसी कामना करता हूं. प्रार्थना करता हूं. ॐ शांति.
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-गुलाल गोटा से होली को रंगीन बनाते हैं जयपुर के कलाकार
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